'चालबाज’ पड़ोसी

May 21, 2018
लगभग एक माह पूर्व भारत के पीएम नरेंद्र मोदी चाइना के दौरे पर गए थ्ो। बड़ी अवाभगत हुई उनकी वहां। चाइना के वुहान शहर में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से उन्होंने औपचारिक बातचीत की। डोकलाम में चले लंबे विवाद के बाद इस बैठक को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा था। लग रहा था कि अब दोनों देशों के बीच विवादों की झड़ी कम होगी और चाइना अपनी चालबाजी से ऊपर उठकर सामारिक, शांति और व्यवसायिक रिश्तों को भारत के साथ प्रगाढ़ करेगा, क्योंकि भारत व्यापारिक दृष्टिकोण से चाइना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन चालबाज पड़ोसी ने अरुणाचल प्रदेश के सीमा से लगे इलाके में जिस प्रकार बड़े पैमाने पर खनन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, उससे लगता है कि चाइना न तो अपनी चालबाजी खत्म करना चाहता है और न ही सीमाओं पर तनाव कम करने की मंशा रखने वाला है।

 यहां बता दें कि भारत और चाइना के बीच 4 हजार किलोमीटर से अधिक लंबी वास्तवितक नियंत्रण रेखा तीन सेक्टरों पूर्वी, मध्य और पश्चिमी सेक्टर में बंटी है। पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश का इलाका पड़ता है, जिसके 9० हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर चीन ने अपना कब्जा जताया है। मध्य सेक्टर में उत्तराखंड, हिमाचल और सिक्किम हैं। इस इलाके में भी उत्तराखंड क्ष्ोत्र पर चीन दावा जताता रहा है। सीमाओं को लेकर जिस प्रकार चाइना हरकत कर रहा है, उससे तनाव की संभावना बढ़ना लाजिमी है।
 दरअसल, चाइना ने अरुणाचल प्रदेश के साथ लगती जिस सीमा में खनन का काम शुरू किया है, इस क्ष्ोत्र में सोना, चांदी और दूसरे कीमती खनिजों का विशाल भंडार है। जिसकी कीमत करीब 6० हजार डॉलर आंकी जा रही है। यहां यह भी बता दें कि चाइना के लंुझ काउंटी में माइन प्रोजेक्ट चल रहा है, लिहाजा इस माइनिंग ऑपरेशन को चीन द्बारा अरुणाचल प्रदेश को अपने कब्जे में लेने की उसकी रणनीति के हिस्से तौर पर बताया जा रहा है, क्योंकि यह माइन्स प्रोजेक्ट पेइचिंग के लिए एक महत्वाकांक्षी प्लान का हिस्सा है, जिससे वह दक्षिण तिब्बत क्ष्ोत्र में अपने दावे को और मजबूत कर सके। इससे यह होगा कि क्ष्ोत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर चीन के दावा जताने की उसकी कोशिश और तेजी से निर्माण कार्य करने के चलते यह इलाका दूसरा साउथ चाइना भी बन सकता है, क्योंकि चीन के भूवैज्ञानिक और सामरिक मामलों के विश्ोषज्ञ हाल ही में इस क्ष्ोत्र का दौरा कर चुके हैं। यहां यह साबित होता है कि चाइना भी पाकिस्तान की भांति ही काम करता है। एक तरफ, दोस्ती का हाथ बढ़ता है और दूसरी तरफ पीठ में खंजर भोंकने का काम करता है।
 चीन की चालबाजी कोई डोकलाम और अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद तक ही सीमित नहीं है बल्कि 1962 के युद्ध से लेकर कई मौकों पर उसकी भारत विरोधी नीति उजागर होती रही है। सीमा विवाद के चलते ही चाइना ने 1962 के युद्ध को न्यौता दिया था, हालांकि विवादित हिमालय सीमा युद्ध के लिए एक मुख्य बहाना था, लेकिन अन्य मुद्दों ने भी इस युद्ध में अपनी भूमिका निभाई थी, जिसमें 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद भारत द्बारा दलाई लामा को शरण देना भी मुख्य कारण रहा था, उसके बाद ही सीमा पर चाइना ने हिंसक घटनाओं की कड़ी को शुरू किया था। चीनी सेना ने 2० अक्टूबर 1962 को लदख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किए और पश्चिमी क्ष्ोत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अवैध कब्जा कर लिया था। तवांग भारत चीन सीमा के पूर्वी सेक्टर का सामरिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण क्ष्ोत्र है। तवांग के पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत है, हालांकि 1962 में ही चीनी सेना ने तवांग पर कब्जा करने के बाद उसे खाली कर दिया था, क्योंकि वह मैकमोहन रेखा के अंदर पड़ता है। चीन की चालबाजी का यह भी नमूना रहा है कि वह इसके बाद भी तवांग पर यह कहते हुए अपना हक जताता रहा है कि वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता। अभी पिछले साल ही चीन ने यह संकेत दिए कि भारत उसे अरुणाचल का तवांग वाला हिस्सा लौटा दे तो वह अक्साई चिन पर कब्जा छोड़ सकता है। ऐसी पेशकश चाइना द्बारा कई बार की गई है। यही स्थितियां अन्य मुद्दों पर भी रही हैं। डोकलाम में 73 दिनों तक गतिरोध बनाए रखने में चीन ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
 इन सबके बाद भारत के पीएम नरेंद्र मोदी अगर, दोस्ती का हाथ लेकर चाइना गए तो उस नीति को चाइना को सकारात्मक अप्रोच के तौर पर लेना चाहिए था। वहां चाइना में भारतीय पीएम का किया गया स्वागत तब तक कोई मायने नहीं रखता, जब तक चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आता है। भारत के दृष्टिकोण से भी यह बात इसीलिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि अगर चीन बार-बार सीमाओं पर उंगुली करता रहेगा, तो यह ठीक नहीं है, लिहाजा भारत भी कोई ऐसा रास्ता तलाश्ो, जिससे चाइना अपनी हद में रहे और जबरदस्ती भारतीय सीमाओं पर अपनी कब्जा करने की मंशा से बाज आए।

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