सरस्वती नदी: धरा पर थी 'धारा’



 By Bishan Papola May 24, 2018
    
   डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के संस्कृति विभाग ने सरस्वती नदी के अध्ययन संबंधी एक योजना को खत्म कर दिया था, जिसका कारण संस्कृति मंत्री ने 6 दिसंबर, 2००4 को संसद में यह बताया कि इसका कोई मूर्त प्रमाण नहीं है कि सरस्वती नदी का कभी 'अस्तित्वथा, लेकिन कई भू-वैज्ञानिकों की रिर्पोटों और वर्तमान केंद्र सरकार के साथ-साथ राजस्थान और हरियाणा सरकारों द्बारा सरस्वती नदी की धारा को खोजने के दौरान जो प्रमाण सामने आए हैं, उससे तो स्पष्ट होता है कि कभी धरा पर सरस्वती नदी की धारा बहती थी। मौजूदा समय में हुए सर्वे में जो डाटा जुटाए गए हैं, उसमें कहीं चट्टान की परतें, कहीं बालू तो कहीं गीली मिट्टी होने के संकेत मिले हैं। जगह-जगह बोरिंग का काम चल रहा है। जिन-जिन जगहों में बोरिंग की जा रही है, वहां डाटा संतोषजनक मिल रहा है। सर्वे में लगे वैज्ञानिक भी सरस्वती नदी की धारा को लेकर बड़े आशावान दिख रहे हैं। ऐसे में उम्मीद है कि एक बार फिर प्राचीनतम अदृश्य सरस्वती नदी की धारा धरा पर      बहने लगेगी। 

ग्रंथों में है उल्लेख
-प्राचीन ग्रंथों में तो पवित्र सरस्वती नदी का उल्लेख है ही, इस नदी को लेकर देश में कई अध्ययन भी किए गए हैं। इन अध्ययनों में भारत सहित विदेशों के कई विद्बानों ने अहम भूमिका निभाई है। ऋगवेद, महाभारत सहित कई प्राचीन ग्रंथों में भी सरस्वती नदी का वर्णन है। ऋगवेद में सरस्वती नदी की प्रशंसा बड़ी और राजसी नदी के रूप में की गई है। इसे एक स्रोत में नदियों की मां तक कहा गया है। इसके प्रवाह की शक्ति से पर्वतों के कमल के समान बिखरते चले जाने की भी चर्चा है। ऋगवेद के 6 से अधिक स्रोतों में इस नदी का उल्लेख है। विश्ोषज्ञों का स्पष्ट मत है कि सरस्वती नदी पहाड़ से निकलकर समुद्र में जाकर गिरती थी, पर ऋगवेद की यह विशाल नदी सरस्वती, महाभारत काल में समुद्र तक जाकर बीच में ही मरूस्थल में ही लुहो गई थी। 
शोधों में मिले विवरण
-आधुनिक वैज्ञानिकों के शोध निष्कर्ष भी प्राचीन ग्रंथों में दिए गए तथ्यों से मिलते हैं। प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी के बारे में जो विवरण दिए गए हैं, उनसे जुड़े तथ्य अध्ययनों में भी सामने आए हैं। यहां कुछ सर्वेक्षणों और अध्ययनों का उल्लेख जरूरी है, जिससे यह बात पुख्ता हो सके कि कभी सरस्वती नदी की धारा धरा पर बहती थी। भू-विज्ञान सर्वेक्षण के उप-निरीक्षक आरडी ओल्ढ़म ने सरस्वती के प्राचीन तल (रिवर बैंड) और सतलुज यमुना को उसकी सहायक नदियां होने के बारे में पहली बार भू-व्ौज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ठ किया था, यह सर्वेक्षण बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी जर्नल (1886) में प्रकाशित हुआ था। इसके ठीक सात वर्ष बाद (1893) में एक अन्य प्रसिद्ध भू-व्ौज्ञानिक सीएफ ओल्ढ़म ने उसी जर्नल में इस विषय पर विस्तृत व्याख्या करते हुए सरस्वती के पुराने नदी तल की पुष्टि की। उनके अध्ययन के अनुसार सरस्वती पंजाब की एक अन्य नदी हाकड़ा के सूख्ो नदी तल पर बहती थी। स्थानीय जन मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में हाकड़ा रेगिस्तान क्ष्ोत्र से होती हुई समुद्र तक जाती थी। ओल्ढ़म (1893) की भी यही धारणा थी कि सूखा नदी तल कभी यमुना नदी से पानी पाता था। 
सिरसा के पास हुई लुप्त
-विश्ोषज्ञों के मुताबिक महाभारत काल में सरस्वती नदी समुद्र तक पहुंचने से पहले विनासन (अनुमानत: वर्तमान सिरसा ) के पास लुप्त हो गई थी। ओल्ढ़म ने अपने लेख के अंत में यह भी कहा है कि वेदों में यह विवरण कि सरस्वती समुद्र में जाकर गिरती थी और महाभारत का विवरण कि यह पवित्र नदी मरूस्थल में खो गई, अपने-अपने समय के सही वर्णन हैं, लेकिन इस तरफ जनमानस का ध्यान दिलाने में प्रमुख भूमिका एक अन्य विद्बान औरेल स्टाइन की रही। उन्होंने (194-41) में बीकानेर (राजस्थान) और बहावलपुर (अब पाकिस्तान में ) में सरस्वती, घग्घर, हाकड़ा के नदी किनारे सर्वेक्षण यात्रा की। स्टाइन की इस यात्रा ने इस परंपरागत विश्वास की पुष्टि की कि हाकड़ा, घग्घर की सूखी नदी पर ही सरस्वती बहती थी। उनके अध्ययन ने ओल्ढ़म के इस निष्कर्ष से भी सहमति प्रकट की कि सरस्वती नदी के लुप्त होने का मुख्य कारण सतलुज नदी की धारा का बदलना था, जिससे वह सरस्वती में मिलकर सिधु नदी में मिलने लगी थी। यमुना की धारा बदलने को (पश्चिम में बहकर पूर्व में गंगा से मिलना) उन्होंने इसका एक और कारण बताया है।

जर्मन विद्बान ने भी किया अध्ययन
-एक जर्मन विद्बान ने भी इस विषय पर गहन अध्ययन किया। इस अध्ययन का निष्कर्ष जेड जियो मोरफोलोजी नामक पत्रिका में (1969 में) एक विस्तृत लेख के रूप में छपा। भू-विज्ञान शास्त्रियों के अनुसार हर्बल विल्हेमी ने अपने अध्ययन में सरस्वती नदी और उसके विकास के विभिन्न चरणों का उल्लेख किया है। 1892 से 1942 के अध्ययनों का संदर्भ देते हुए उनका मुख्य निष्कर्ष है कि सिधु नदी का वह भाग, जो उत्तर दक्षिण में बहता है। उसके 4 से 11 किलोमीटर पूर्व में एक पुराना सूखा नदी तल वास्तव में सरस्वती का ही नदी तल है। यह विभिन्न स्थानों पर हाकड़, घग्घर, सागर, संकरा के नाम से जानी जाती रही है। सिधु में इसका नाम वाहिद, नारा और हाकड़ा था। 
नदी किनारे रहे थ्ो ऋगवेद रचियता
-हावर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एडविन ब्रायेंट का आर्यों से संबंधित गहन अध्ययन अत्यंत निष्पक्ष माना गया है। अध्ययन में यह कहा गया है कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ऋगवेद रचियता उस समय सरस्वती नदी के किनारे ही रह रहे थ्ो, उस समय वह एक विशाल नदी थी और तब उन्हें इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं था कि वह कहीं बाहर से आए हैं। अमेरिका की नेशनल ज्योग्रॉफिक सोसाइटी के ज्योग्रॉफिक इनफोरमेशन सिस्टम और रिमोट-सेसिग यूनिट ने भी सेटेलाइट इमेजिग द्बारा ऋगवेद में दिए गए सरस्वती के विवरण की पुष्टि की है। अबांला के दक्षिण में तीन सूख्ो पुराजल मार्ग, जो पश्चिम की ओर मुड़ते दृष्टिगत होते हैं, वे निश्चय ही सरस्वती, घग्घर और दृषाद्बति की सहायक धाराओं के थ्ो। अमेरिका की रिमोट सेसिग एजेंसी ने भारतीय रिमोट सेसिग सेटेलाइट के माध्यम से जो चित्र हासिल किए थ्ो, उनमें भी सरस्वती का नदी तल स्पष्ट है।
कच्छ के रण में गिरती थी धारा
-जाने-माने भारतीय शिक्षाविद्ध प्रोफेसर यशपाल ने भी इस विषय पर गहन अध्ययन किया है। उनके अध्ययन की रिपोर्ट 198 में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस के जर्नल में प्रकाशित हुई थी। इस अध्ययन का यह निष्कर्ष है कि इस बात का पूरा साक्ष्य है कि वैदिक काल की सरस्वती नदी हिमालय से निकलकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और बहावलपुर (पाकिस्तान) में घग्घर, हाकड़ा के नदी तल पर ही बहती हुई सिधु (पाकिस्तान) में नारा के नदी तल से होती हुई कच्छ के रण में गिरती थी। यह अनुमान भी लगाया गया है कि यमुना भी सरस्वती की सहायक नदी थी, लेकिन कालांतर में सतलुज और यमुना दोनों ने सरस्वती में मिलना छोड़ दिया था। सरस्वती नदी में पानी कम होने का मुख्य कारण भी यही था। इस दिशा में पाकिस्तान के बहावलपुर के चोलिस्तान रेगिस्तान में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता रफील मुगल ने भी बेहतर कार्य किया है। उनके अनुसार पूरी सिधु नदी में अब तक 35 से 36 उत्खनन स्थल (साइट्स) रिकॉर्ड हो पाए हैं। रफील मुगल ने 1993 में सरस्वती के किनारे 414 ऐसे स्थलों को चिन्हि्त किया, जिनसे इस नदी के अस्तित्व के बारे में संकेत मिलते हैं। यहां यह बात भी स्पष्ट कर दें कि रिमोर्ट सेसिग के जरिए इसरो ने भी इस जानकारी को पुख्ता किया है कि उत्तराखंड के आदी बद्री से लेकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के इलाके में इस नदी का स्रोत हैं। ऐसे में, स्पष्टत: माना जा सकता है कि कभी धरा पर सरस्वती नदी की धारा बहती थी। इस मामले में हरियाणा और राजस्थान सरकार की भी सराहना की जानी चाहिए, क्योंकि दोनों सरकारों की तरफ से सरस्वती नदी के अस्तित्व की खोज के प्रयास अध्ययनों की प्रमाणिकता को पुष्ट करने वाले हैं। 

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