'खाकी’ का सच


     एक सिपाही द्बारा डीजीपी को अवैध उगाही से होने वाले बंटवारे का जो 'रेट कार्ड’ भ्ोजा गया है, वह 'खाकी’ पर दाग तो है ही, बल्कि यह 'खाकी’ का सच भी है। 'जनसेवा’ के नाम पर 'मेवा’ कैसे ली जाती है, यह उसका बड़ा ही कुरूप चेहरा है। क्या ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि कोई जिम्मेदारी वाले पद में बैठा हो तो वह दूध का धुला होगा। ऐसे बिरले उदाहरण तो मिल सकते हैं, लेकिन हम यह मानें कि इसका औसत 1०० फीसदी होगा, ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है।

   अवैध उगाही का बंटवारा किस तरह सिपाही से लेकर एसपी स्तर के अधिकारी तक होता है, यह तो उसकी बानगी मात्र है। ख्ोल इससे व्यापक और बड़े स्तर का भी होता है। उस पर कौन बोले और विरोध क्यों करें, क्योंकि उसमें मंत्री, बड़े-बड़े अफसरों से लेकर हर कोई डूबकी लगा रहा होता है। सरकार का दम तो सिर्फ जनता की आंखों में धूंल झौंकने के लिए होता है। जिस देश में बड़ी आबादी के पास न तो खाने का जुगाड़ है और न ही रहने का। एक वक्त की रोटी के लिए उन्हें हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। फैक्ट्रियों, कल-कारखानों से लेकर दूसरे उद्यमों में लगे मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी और वेतन बढ़ाने के संबंध में गुजारिश की भी जाती है तो सरकार का दम फूलने लगता है, लेकिन एक सरकारी अफसर, कर्मचारी जिसे सरकार जनसेवा के लिए मोटी पगार देती है, अगर वही अवैध उगाही से मिलने वाले धन के बंटरबांट में जुटा हो तो उससे कैसे न्याय की उम्मीद की जा सकती है। आम आदमी किस दर पर जाए, जहां उसे न्याय मिले। 
  कोई पीड़ित अगर पुलिस थानों में जाता है तो उसकी रिपोर्ट तक नहीं लिखी जाती है, अगर कहीं से कुछ मिलने की उम्मीद हो तो पुलिसकर्मियों से लेकर पुलिस अधिकारियों के नियम कानून बदल जाते हैं। प्रदेश सरकार बार-बार कह रही है- शहरों से अवैध कब्जों और अतिक्रमण को हटाएंगे, भ्रष्टाचार खत्म करेंगे, बदमाशों को मारेंगे, जिससे समाज भयमुक्त हो सके, लेकिन भ्रष्टाचार की इस सीमा के बीच न तो अवैध कब्जे और अतिक्रमण हट सकता है और न ही गुंडे बदमाशों की फौज कम हो सकती है, क्योंकि इसमें सारा ख्ोल संरक्षण का है। पुलिस-प्रशासन से सबसे अधिक संरक्षण ऐसे लोगों को मिल रहा है, जो अपराध, और माफियागिरी के धंधों में लगे हुए हैं। इन्हें पुलिस से इसीलिए संरक्षण मिलता है, क्योंकि जिस प्रकार सरकार पुलिस महकमे में बैठे अफसरों और अन्य कर्मियों को पगार देती है, उसी प्रकार इनके अवैध उगाही के ठिए भी बंध्ो रहते हैं, जिसकी हिस्सेदारी नीचे से लेकर ऊपर तक होती है। 
  निचले स्तर के कर्मचारियों को अगर पसीना बहाकर हिस्सा मिलता है तो अधिकारियों का हिस्सा उनके एसी से लैस घरों और दफ्तरों में चलकर जाता है। यह दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र तस्वीर है, जो हर किसी को शर्मशार तो करती ही है, बल्कि इस बात के लिए भी हतोत्साहित करती है कि इस दौर में किसी भी दर पर न्याय नहीं मिल सकता है, क्योंकि न्याय का पलड़ा तो अवैध उगाही से आने वाली रकम के बंदरबांट में दबा हुआ है।


-         - इन तस्वीरों में गौतमबुद्धनगर स्पेशल ऑपरेशन गु्रप-एसओजी में तैनात सिपाही द्बारा डीजीपी को भ्ोजा गया वह 'रेड कार्ड’ है, जिसमें दर्शाया गया है कि अवैध उगाही से आने वाली रकम का हिस्सा किस तरह एसपी, इंस्पेक्टर से लेकर दूसरे पुलिसकर्मियों के बीच बांटा जाता है और बकाया रकम को किन मदों में खर्च किया जाता है। यह 'रेड कार्ड’ सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।






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