'गलाघोंट’ परिवेश
By Bishan Papola June 5, 2018
आज विश्व पर्यावरण दिवस है। आज के परिपेक्ष्य में यह उतना ही महत्वपूर्ण विषय है, जितना विकास का एजेंडा। लेकिन इस विकास के एजेंडे में हम पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं, शायद ही हमें इसका अंदाजा है। विकास जरूरी है तो पर्यावरण संरक्षण उससे भी ज्यादा जरूरी है। अगर, सरकारें विकास के एजेंडे के तहत पर्यावरण संरक्षण की सबसे बड़ी अमानत पेड़ों, जंगलों इत्यादि का कटान कर रही हैं तो उसकी भरपाई कैसे की जाए, इन विकल्पों पर भी उसी रफ्तार से काम किया जाना चाहिए, जिस रफ्तार से पर्यावरण संरक्षण के मूल धरोहरों को नष्ट किया जा रहा है।
इस विषय पर महज चिंता करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उस प्रवृत्ति को बढ़ावा देना होगा, जिसमें पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए जा रहे कार्यों में और निरंतरता और तेजी आ सके। इसके लिए पर्यावरण की संवेदनशीलता को समझना जरूरी होगा। सरकार तो अपना काम करें, लेकिन हर व्यक्ति को इसमें सहयोग देना होगा। अपने स्तर पर ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर अलख जगानी होगी। इस दौर में तमाम ऐसे कारक उत्पन्न हो गए हैं, जो पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं। जिस अनुपात में पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम किया जा रहा है, उससे भी कहीं अधिक अनुपात में ये कारक पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लिहाजा, इन कारकों की पहचान करना और उनके खिलाफ मुहिम छेड़ना जरूरी है। ऐसा भी नहीं है कि विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण नहीं हो सकता है। ये दोनों पहलू महत्वपूर्ण है, बस इसके लिए जरूरी है कि हम पर्यावरण की संवदेनशीलता को पहचानें। पेड़, पहाड़, पानी आदि के महत्व को समझें।
विकास की रफ्तार के बीच तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। अगर, पहाड़ों की छाती को चीर दिया जाएगा तो निश्चित ही उनकी आह निकलेगी। पेड़ काटे जाएंगे तो उनका दर्द भी छलेगा। इन सबकी वजह से तापमान में वृद्धि और बारिश के समय में बदलाव होते जा रहा है। मौसम सामान्य की तुलना में ज्यादा गरम व ठंडा हो रहा है। तापमान बढ़ रहा है तो धुव्रीय क्ष्ोत्रों में बर्फ पिघल रही है और इससे बाढ़ आने के साथ-साथ तटीय शहरों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। इसके अतिरिक्त वन्य जीव भी तमाम तरह के खतरे झेल रहे हैं।
दूसरी तरफ, बढ़ता प्रदूषण बड़ी चिंता का कारण है। यह पर्यावरण की सांस रोकने का काम कर रहा है। कई तरह का प्रदूषण पर्यावरण की छाती पर सवार है, जिसकी वजह से पर्यावरण का दम तो घुट ही रहा है बल्कि प्राणियों का भी दम घुट रहा है। बढ़ता प्लास्टिक, वायु, जल प्रदूषण काफी घातक सिद्ध हो रहा है। शहरों में जिस गति से प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका धीरे-धीरे असर ग्रामीण क्ष्ोत्रों में भी पड़ने लगा है, ऐसे में, चिंता इस बात की है कि आने वाली पीढ़ी का क्या होगा ? हम उन्हें किस तरह का परिवेश देने जा रहे हैं। क्या यह गला घोंट परिवेश, जिसमें घुटन और भी बढ़ती जाएगी। आबादी का जिस तरह से दबाव बढ़ रहा है, उससे भी खतरे बढ़ रहे हैं।
इस वक्त दुनिया की आबादी लगभग 7.6 अरब के आसपास है। इसके उपाय भी खोजे जाने चाहिए, जिससे धरती की छाती पर आबादी का बोझ कम हो सके। आबादी बढ़ेगी तो उसका असर हर तरफ पड़ेगा। पेड़-पौद्यों और पहाड़ों के कटान की वजह से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि पेड़-पौद्ये सीध्ो तौर पर ग्लोबल वार्मिंग से लड़ते हैं। लिहाजा, अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने की तरफ लोगों को रुचि पैदा करनी होगी। इसके लिए जरूरी है कि जंगलों का संरक्षण किया जाए। जंगलों में रहने वाले जीव-जंतुओं का भी अपना विश्ोष महत्व है, उनका संरक्षण भी जरूरी है। अगर, हम जंगल बचा कर रख्ोंगे तो जंगली जीव-जंतुओं का संरक्षण आसान हो जाएगा।
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