उम्मीदों की 'मुलाकात’



  By Bishan Papola June 13, 2018
  'अमेरिकी राष्ट्रपति’ 'डोनाल्ड ट्रंप’ और 'उत्तर-कोरिया’ के नेता 'किम जोंग-उन’ के बीच होने वाली बहुप्रतीक्षित मुलाकात बड़े अच्छे माहौल में संपन्न हो गई है। इस मुलाकात का जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, वह यह है कि 'उत्तर-कोरियाई तानाशाह’ 'किम जोंग’ 'परमाणु निरस्त्रीकरण’ के लिए राजी हो गए हैं। बकायदा, इस मामले में 'संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर’ भी हुए हैं। इस मुलाकात के बाद माना जा रहा है कि दुनिया में चल रही परमाणु शास्त्रों की होड़ में कमी आएगी, जो परमाणु हथियारों के नाम पर एक-दूसरे को आंख दिखाने का प्रचलन-सा चल पड़ा था, इसके बाद थोड़ा उसमें नरमी आएगी। 
 संयुक्त दस्तावेज में किम ने जहां पूर्णत: परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए प्रतिबद्धता जताई है, तो वहीं बदले में अमेरिका ने उत्तर-कोरियाई नेता किम-जोंग को सुरक्षा की पूरी गारंटी दी है। इसके बाद लगता है कि दोनों देशों के बीच रिश्तों का एक नया अध्याय शुरू होगा। यह दोनों नेताओं के बीच पहली शिखर वार्ता थी और दोनों ने यह भी उम्मीद जताई है कि वे भविष्य में भी मिलते रहेंगे। 'सिंगापुर’ में हुई इस मुलाकात के बाद न केवल अमेरिका और उत्तर-कोरिया के बीच आपसी संबंधों में मधुरता आएगी, बल्कि दुनिया में भी इस मुलाकात का सकारात्मक संदेश गया है, क्योंकि जिस तरह से हाल के वक्त में दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति पैदा हुई थी, उससे लग रहा था कि कहीं वास्तव में युद्ध जैसी स्थिति न छिड़ जाए। इस गंभीर स्थिति के बाद अगर परिस्थितियां बेहतर हुईं हैं तो यह दुनिया भर के अच्छी बात है। 
 बनते-बिगड़ते 'रिश्ते’
 'अमेरिका’ और 'उत्तर-कोरिया’ के बीच रिश्तों की डोर बहुत पुरानी है, जो बनती भी रही है और बिगड़ती भी रही है, लेकिन रिश्तों के खराब होने का दौर थोड़ा लंबा चला है। अगर, दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब होने की बात करें तो इसका सिलसिला 1945 से शुरू हुआ था। असल में, 1945 में कोरिया के दो हिस्से हुए, जिसके बाद साउथ और नॉर्थ कोरिया बने। उत्तर कोरिया पर किम संुग का शासन हुआ, जिसको 'सोवियत संघ का संरक्षण’ प्रा’ हुआ, जबकि अमेरिका ने साउथ कोरिया को संरक्षण दिया।
  इन सब परिस्थितियों के बाद स्थिति खराब होती चली गई और उत्तर कोरिया ने 195० में साउथ कोरिया पर आक्रमण कर दिया, यहां साउथ कोरिया को अमेरिका का साथ था, लिहाजा उसने फिर से सियोल पर कब्जा कर लिया। लंबे संघर्ष के बाद 1953 में युद्धविराम संधि हुई, जिसका परिणाम यह हुआ कि अमेरिका ने उत्तर-कोरिया पर बहुत से प्रतिबंद्ध लगा दिए। 1968 में एक फिर स्थिति यह हुई कि दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ी, जब अमेरिका के एक जहाज को उत्तर-कोरिया ने जब्त कर लिया था, जिसमें 83 कू्र मेंबर थ्ो। आलम यह रहा है कि उसे 11 महीनों बाद छोड़ा गया। इसके अगले ही वर्ष यानि 1969 में उत्तर-कोरिया ने यूएस के एक जासूसी जहाज को उड़ा दिया था। इसके बाद 1987 में इससे भी भयानक स्थिति उत्पन्न हुई, जब साउथ कोरिया की एक फ्लाइट में बम विस्फोट हुआ, जिसमें 115 लोगों की मौत हो गई। इस घटना को सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि हमले का प्लान उत्तर-कोरिया के दो एजेंट्स पर लगाया गया। इस घटना से बौखलाए अमेरिका ने 1988 में उत्तर-कोरिया को यह कहकर ब्लैक-लिस्ट कर दिया कि यह देश आंतकी गतिविधियों में शामिल है। 
 1994 में रिश्तों को बेहतर करने की मंशा से 'अमेरिकी राष्ट्रपति’ 'जिमी कार्टर’ और 'उत्तर कोरिया’ के 'किंग किम-द्बितीय’ से मुलाकात की, लेकिन इस मुलाकात के परिणाम आगे बढ़ते जुलाई 1994 में किम-द्बितीय की मौत हो गई। तब उनके बेटे किम जोंग-द्बितीय ने पद भार संभाला। इसी साल अक्टूबर में अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के बीच परमाणु कार्यक्रम निरस्त करने पर संधि हुई, लेकिन यह ज्यादा नहीं चल पाई। 1998 में उत्तर-कोरिया ने अपनी पहली लंबी रेंज की मिसाइल टेस्ट कर डाली, लेकिन एक साल के अंतराल में रिश्तों में फिर नरमी आई, जब किम जोंग-द्बितीय ने मिसाइल टेस्ट पर रोक लगाने का फैसला लिया, जब अमेरिका ने प्रतिबंद्धों पर कुछ ढील दी।
सन् 2००० में रिश्तों को और सुधारने की मंशा से यूएस के विदेश मंत्री मेडेलीन अलब्राइट उत्तर-कोरिया गए। एक-दो साल रिश्तों में नरमी रही, लेकिन जब 2००2 में यूएस के राष्ट्रपति बुश ने ईरान, इराक के साथ उत्तर-कोरिया को भी 'बुराई की धूरी’ कहा तो रिश्तों में फिर खटास आ गई। इसी के चलते 2००4 में उत्तर-कोरिया ने बुश के साथ बीतचीत करने से इनकार कर दिया। और 2००5 में उत्तर-कोरिया ने मिसाइट टेस्ट पर लगी रोक को स्वयं खत्म कर दिया और 2००6 में अपना पहला परमाणु टेस्ट किया। इसके बाद 2००9 में उत्तर-कोरिया ने दूसरी बार अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट किया।
  2०11 में किम जोंग-द्बितीय की मौत के बाद उनके बेटे 'किम जोंग उन’ ने सत्ता संभाली, उन्होंने भी न्यूक्लियर टेस्ट को जारी रखा और 2०13 में अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया। इसके बाद 2०16 में उत्तर-कोरिया ने दो और न्यूक्लियर टेस्ट किए। इसके अगले वर्ष यानि 2०17 में कुछ और मिसाइल टेस्ट किए गए, तब किम जोंग ने कहा कि 'पूरा यूएस, उनकी मिसाइलों की जद में है’। इसके बाद एक-दूसरे को चेतावनी देने का सिलसिला ऐसा चला कि ट्रंप और किम जोंग कुछ-न-कुछ धमकी भरे लहजे में कहते रहे। रिश्तों में लगातार कड़वाहट आती रही। इन सब परिस्थितियों के बीच उत्तर-कोरिया ने अपना छठवां न्यूक्लियर टेस्ट किया, जिसको 'हाइड्रोजन बम’ बताया गया था, लेकिन धीरे-धीरे माहौल सुधरने लगा। इसी बीत किम जोंग साउथ कोरिया गए, जिसके बाद रिश्ते और नरम हुए। इसी क्रम में '12 जून 2०18’ को 'किम जोंग’ और 'डोनाल्ड ट्रंप’ के बीच 'ऐतिहासिक मुलाकात’ हुई, जिसे रिश्तों की नई शुरूआत होने की उम्मीद जग गई है। 




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