'क्या हुआ तेरा वादा’...


 
 By Bishan Papola June 9, 2018

  22 नंवबर, 2०13 को आगरा में एक सभा को संबोधित करते हुए बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि अगर, सत्ता में उनकी सरकार आ गई तो प्रतिवर्ष एक करोड़ जॉब्स पैदा किए जाएंगे। उनका यह वादा उनके लिए टर्निंग प्वांइट साबित हुआ और जबरदस्त बहुमत के साथ 2०14 में उनकी सरकार बन गई। पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार को चार साल का समय भी हो गया है। इस दौरान अगर, सरकार किसी मोर्चे पर सबसे अधिक कमजोर साबित हुई है तो वह है रोजगार। पिछले आठ वर्षों में देश में 'जॉब्स जनरेशन’ का औसत इस दौरान सबसे निचले पायदान पर आ गया है। यानि इसमें करीब 14 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इन हालातों में एक गीत की यह लाइन जरूर याद आती है- 'क्या हुआ तेरा वादा’...।
   यह कॉमन सेंस है कि सरकार सभी को जॉब्स तो नहीं दे सकती है, लेकिन वे पद तो भरे जा सकते हैं, जो खाली पड़े हुए हैं। ऐसा भी नहीं किया जा रहा है। देश में बेरोजगारी का आलम कुछ समय पूर्व रेलवे के लिए निकाली गई भर्ती के लिए आए आवेदनों से लगाया जा सकता है। सरकार ने रेलवे में 1 लाख 1० हजार भर्तियों का ऐलान किया, तो ढ़ाई करोड़ से अधिक लोगों ने इसके लिए आवेदन किया। इतनी बड़ी संख्या में आवेदन विश्व रिकॉर्ड हो, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। अभी हाल ही में 'विश्व बैंक’ ने 'दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था’ पर केंद्रित रिपोर्ट 'रोजगार रहित विकास-2०18’ में कहा है कि भारत में तेजी से बढ़ती बेरोजगारी को देखते हुए हर साल 81 लाख नई नौकरियों एवं नए रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है, लेकिन भारत में औसत हर साल पांच लाख लोगों को ही रोजगार मिल रहा है, हालांकि इस सरकार के दौरान यह गिरकर 2-3 लाख के बीच पहुंच गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लक्ष्य से हम कितने नीचे हैं। 81 लाख नौकरियों एवं रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए भारत को 18 फीसदी विकास दर की जरूरत होगी, लेकिन 2०17-18 में विकास दर महज 6.7 फीसदी थी, जबकि मौजूदा हालातों में 7.3 फीसदी तक विकास दर रह   सकती है। 
  रिपोर्ट यह भी मानती है कि भारत नोटबंदी और जीएसटी के निगेटिव असर से बाहर निकल चुका है। इसी क्रम में निजी निवेश और उपभोग में भी वृद्धि हुई है, लेकिन 'जीडीपी’ की जो दर है वह ऐसी ही रही और रोजगार देने की गति भी कछुआ गति से चलती रही तो बढ़ते बेरोजगारी के गैप को भरना आसान नहीं होगा। भले ही हम जनसंख्या के मामले में चीन से पीछे हैं, लेकिन जहां तक युवाओं की संख्या का सवाल है, भारत में दुनिया के सबसे अधिक युवा हैं। भारत की कुल आबादी में युवाओं का औसत 28 फीसदी है। इसीलिए भारत को 'युवाओं का देश’ कहा जाता है, लेकिन हम युवाओं को नौकरियां व रोजगार से जोड़ने के मामले में चाइना से पीछे हैं। देश के 63 फीसदी युवा आज जॉब दरकार से जूझ रहे हैं।
   ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के अंदर बेरोजगारी का क्या आलम होगा। हैरानी इस बात पर होती है कि जब केंद्र व राज्य सरकारों द्बारा जॉब्स के लिए आवेदन निकाले जाते हैं तो भर्ती प्रक्रिया कई वर्षों तक लटकी रहती है। कहीं, पेपर लीक हो जाता है तो कहीं भर्तियां कैंसिल कर दी जाती हैं। राज्य सरकारों द्बारा आयोजित होने वाली भर्ती प्रक्रिया के उदाहरण तो समय-समय पर सामने आते रहते हैं, लेकिन अभी हाल ही में केंद्र सरकार द्बारा आयोजित 'एसएससी की परीक्षा’ में भी इस तरह के हालात सामने आए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश का 'भर्ती बोर्ड’ कितना दोयम दर्जे का है और देश की सरकारें रोजगार के मामले में कितनी लापरवाह हैं। 
 इस दौर में 'मेक इन इंडिया’ 'डिजीटल इंडिया’ जैसी योजनाएं सही हैं, लेकिन क्या प्रतिवर्ष सरकार 81 लाख लोगों को मेक इन इंडिया के तहत अपना रोजगार शुरू करने के लिए तैयार कर सकती है। ऐसा संभव नहीं है। लिहाजा, सरकार इस तरफ कदम बढ़ाए कि देश में कैसे रोजगार बढ़ाए जा सकते हैं। महज इंजीनियरिंग की ही बात करें तो प्रतिवर्ष लगभग 1.5 मिलियन इंजीनियर पास आउट होते हैं। इसके अलावा बहुत सारे क्ष्ोत्र हैं, जहां छात्र पासआउट होने के बाद रोजगार के क्ष्ोत्र में दस्तक देने के लिए तैयार होते हैं, लेकिन जो औसत सरकारों का रोजगार देने का है, वह प्रतिवर्ष पास आउट होने वाले छात्रों के मुकाबले बहुत कम हैं। ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या सरकर को इस गैप को भरने के उपाय नहीं खोजने चाहिए ? 
 अगले साल देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। सरकार से निश्चित पूछा जाएगा कि आखिर रोजगार के क्ष्ोत्र में इतनी सुस्ती क्यों दिखाई गई, जिस राज में 'एक करोड़ रोजगार’ पैदा करने का वादा किया गया था, उसी राज में युवा क्यों परेशान हैं। अपने हक और रोजगार को बरकरार रख्ो जाने के लिए आए दिन युवा आंदोलन करने के लिए क्यों बाध्य हो रहे हैं। 'नोटबंदी और जीएसटी’ देश के लिए बड़ी उपलब्धि है तो इससे रोजगार भी बहुत छिने हैं। क्या सरकार को इस कमी को दूर नहीं करना चाहिए, जिससे उन्हें नोटबंदी और जीएसटी सार्थकता समझ में आ सके। युवाओं के आक्रोश को कम करना है तो सरकार कम-से-कम खाली पदों को भर लें और देश में जिस तरह की भर्ती प्रक्रिया है, उसमें सुधार किया जाए। 
  रोजगार के क्ष्ोत्र में घूसखोरी आदि को बंद किया जाए, एक पारदर्शी प्रणाली के तहत युवाओं को रोजगार से जोड़ा जाए, भारी निवेश के साथ ही विनिर्माण क्ष्ोत्र को भी गतिशील बनाया जाए, स्व-रोजगार, लघु कुटीर उद्योग और कौशल विकास के बल पर भी जोर दिया जाए, तभी देश की असली समृद्धि की सार्थकता समझ में आएगी, क्योंकि जिस तरह बेरोजगारी का आलम बढ़ रहा है, उससे आर्थिक-सामाजिक चुनौतियां बढ़ती ही जाएंगी, जिसका खतरा समय के साथ-साथ बढ़ता ही जाएगा। लिहाजा, सरकार उन तमाम उपायों पर खुलकर काम करें, जिससे युवाओं के हाथ में नौकरी हो या फिर कोई ऐसा काम, जिससे वह अपना जीविकोपार्जन ढ़ग से कर सके। इस महंगाई के दौर में एक अदद रोजगार सभी के लिए आवश्यक है। 


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