'नेल्सन मंडेला’: 'दक्षिण अफ्रीका के गांधी’


 '18 जुलाई’ का दिन पूरी दुनिया के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन एक ऐसी हस्ती का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर रंगभ्ोद का विरोध करने का प्रतीक बन गए थ्ो। वह कोई और शख्स नहीं, बल्कि 'दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति’ 'नेल्सन मंडेला’ हैं। वह दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति रहे। उनका पूरा नाम नेल्सन रोलीहलला मंडेला था। उनका जन्म म्वेजो, केप प्रांत दक्षिण अफ्रीका में 18 जुलाई 1918 को हुआ था। 95 साल की उम्र में 5 दिसंबर 2०13 को उनकी मृत्यु हुई थी। 'रंगभ्ोद विरोधी संघर्ष’ के कारण उन्होंने 27 वर्ष 'रॉबेन द्बीप के कारागार’ में बिताए, जहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था। वह अब्राहन लिंकन और मार्टिन लूथर किंग के विचारों को मानने वाले थ्ो। उन्हें 'दक्षिण अफ्रीका का गांधी’ भी कहा जाता है। 
    संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके जन्म दिवस को 'नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ के रूप में मानने का निर्णय भी लिया। वह गेडला हेनरी म्फाकेनिस्वा और उनकी तीसरी पत्नी नेक्यूफी नोसकेनी की संतान थ्ो। वह अपनी मां नोसकेनी की प्रथम और पिता की सभी संतानों में 13 भाइयों में तीसरे थ्ो। मंडेला के पिता हेनरी म्वेजो कस्बे के जनजातीय सरदार थ्ो। स्थानीय भाषा में सरदार के बेटे को मंडेला कहते थ्ो, जिससे उन्हें अपना उपनाम मिला। उनके पिता ने उन्हें रोलीहलाला प्रथम नाम दिया था, जिसका खोजा में अर्थ उपद्रवी होता है। उनकी माता मेथोडिस्ट थी। जब मंडेला 12 वर्ष के थ्ो, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। मंडेला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से पूरी की। उसके बाद की स्कूली शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से ली, एवं स्नातक हेल्डटाउन में हुई थी। हेल्डटाउन अश्वेतों के लिए बनाया गया विश्ोष कॉलेज था। इसी कॉलेज में नेल्सन की मुलाकात ऑलिवर टॉम्बो से हुई, जो जीवनभर एक-दूसरे के दोस्त और सहयोगी बने रहे।
 194० तक नेल्सन मंडेला और ऑलिवर ने कॉलेज कैंपस में अपने राजनीतिक विचारों और क्रियाकलापों से लोकप्रियता हासिल कर ली थी। कॉलेज प्रशासन को जब इसकी सूचना लगी तो दोनों को कॉलेज से निकाल दिया गया था। 1941 में मंडेला जोहन्सबर्ग चले गए, जहां उनकी मुलाकात वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन से हुई। उन दोनों ने राजनीतिक रूप से मंडेला को काफी प्रभावित किया। जीवनयापन के लिए वे एक कानूनी फर्म में क्लर्क बन गए, लेकिन धीरे-धीरे उनकी सक्रियता राजनीति में बढ़ती चली गई। रंग के आधार पर होने वाले भ्ोदभाव को दूर करने के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1944 में वे अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए, जिसने रंगभ्ोद के विरूद्ध आंदोलन चला रखा था। इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिलकर अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्पाथना की। 1947 में वे लीग के सचिव चुने गए। वहीं, 1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला, लेकिन उसमें उन्हें निर्दोष माना गया। एक तरफ सरकार का दमन चक्र बढ़ रहा था तो दूसरी तरफ नेल्सन का जनाधार बढ़ रहा था। रंगभ्ोद सरकार आंदोलन तोड़ने का हर संभव प्रयास कर रही थी। सरकार स्तर पर बहुत से ऐसे कानून पास किए गए, जो अश्वेतों के हित में नहीं थ्ो। नेल्सन ने इन कानूनों का विरोध किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान ही शार्पविले शहर में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी, जिसमें लगभग 18० लोग मारे गए, जिसके चलते सरकार के इस कू्रर दमन चक्र से नेल्सनका अहिंसा पर से विश्वास उठ गया। उन्होंने आत्याचारों की परकाष्ठा को देखते हुए एएनसी ने हथियार बंद लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। 
एएनसी के लड़ाके दल का नाम 'स्पियर ऑफ द नेशन’ रखा गया, जिसका अध्यक्ष 'नेल्सन मंडेला’ को बनाया गया। सरकार इस संगठन को खत्म कर नेल्सन को गिरफ्तार करना चाहती थी, जिससे बचने के लिए नेल्सन देश से बाहर चले गए और अदीस अबाबा में अपने आधारभूत अधिकारों की मांग करने चले गए। उसके बाद अल्जीरिया गए, जहां गोरिल्ला तकनीक का प्रशिक्षण लिया, इसके बाद मंडेला लंदन चले गए, जहां उनकी मुलाकात फिर से ऑलिवर टॉम्बो से हुई। लंदन में विपक्षी दलों के साथ मिलकर उन्होंने पूरी दुनिया को अपनी बात समझाने का प्रयास किया। इसके बाद जब वह दक्षिण अफ्रीका पहुंचे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान नेल्सन को पांच साल की सजा सुनाई गई। उन पर आरोप लगाया गया कि वह अवैधानिक तरीके से देश छोड़कर चले गए थ्ो। सरकार उन्हें क्रांति का नेता नहीं मान रही थी। सरकार इतने गुस्से में थी कि उसने लीलीसलीफ में छापा मारकर एमके मुख्यालय को तोड़फोड़ दिया। एमके के साथ बड़े नेता गिरफ्तार किए गए और मंडेला समेत सभी को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। मंडेला को 'रोबन द्बीप’ भ्ोजा गया, जो 'दक्षिण अफ्रीका का कालापानी’ माना जाता है। 
आगे चलकर 1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदारवादी नेता एफ डब्ल्यू क्लार्क देश के मुखिया बने। उन्होंने अश्वेत दलों पर लगा प्रतिबंध हटा दिया। उन सभी बंदियों को रिहा कर दिया, जिन पर अपराधिक मुकदमा नहीं चल रहा था। 11 फरवरी 199० को मंडेला पूरी तरह से आजाद हो गए। 1994 में देश के पहले लोकतांत्रिक चुनाव में जीतकर वह दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने। 1993 में नेल्सन मंडेला और डी क्लार्क, दोनों को संयुक्त रूप से शांति के लिए 'नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। वहीं, इससे पहले 199० में भारत सरकार ने उन्हें देश के सवोच्च पुरस्कार 'भारत रत्न’ से सम्मानित किया था। मंडेला भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं। नेल्सन मंडेला बहुत हद तक 'महात्मा गांधी’ की तरह अहिंसक मार्ग के समर्थक थ्ो। उन्होंने गांधी को प्रेरणास्रोत माना था और उनसे अहिंसा का पाठ सीखा था। मंडेला को दक्षिण अफ्रीका का गांधी कहा जाता है। मंडेला के व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उन्होंने तीन शादियां कीं, जिनसे उनकी छह संतानें हुईं।
 उनके परिवार में 17 पोते-पोती थ्ो। अक्टूबर 1944 को उन्होंने अपने मित्र व सहयोगी वॉल्टर सिसुलू की बहन इवलिन मेस से शादी की। 1961 में मंडेला पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया था, लेकिन उन्हें अदालत ने निर्दोष पाया था, इसी दौरान उनकी मुलाकात अपनी दूसरी पत्नी नोमजामो विनी मेडीकिजाला से हुई थी। 1998 में अपने 8०वें जन्मदिन पर उन्होंने ग्रेस मेकल से विवाह किया था। नवंबर 2००9 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभ्ोद विरोधी संघर्ष में उनके योगदान के सम्मान के लिए उनके जन्मदिन को मंडेला दिवस घोषित किया। 67 साल तक मंडेला के इस आंदोलन से जुड़े होने के उपलक्ष्य में लोगों से दिन के 24 घंटों में से 67 मिनट दूसरों की मदद करने में दान देने का आग्रह किया गया। मंडेला को नोबल शांति पुरस्कार समेत विश्व विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्बारा 25० से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार हासिल हुए हैं। 95 साल की उम्र में 5 दिसंबर 2०13 को फेफड़ों में संक्रमण के चलते उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु उनके अपने घर मंडेला की हॉटन, जोहान्सबर्ग में हुई। उस वक्त सारा परिवार घर पर ही मौजूद था। 




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