अटल बिहारी वाजपेयी का सियासी सफर...


   राष्ट्रीय राजनीति में अटल का सियासी सफर 1951 से शुरू हुआ। जब वह भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य बने। अपनी कुशल वक्तव्य श्ौली से उन्होंने राजनीति के शुरूआती दिनों में ही अपना प्रभाव छोड़ना शुरू कर दिया था। अपनी बेजोड़ वाणी और उसके उपयोग की कला में महारत हासिल रखने की वजह से उन्होंने न केवल संसद के अंदर, बल्कि बाहर भी खूब रंग जमाया। उनकी भाषण-श्ौली के प्रशंसक देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी रहे। सबसे पहले वह सन् 1957 में बलरामपुर से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। 1968 से 1973 तक वह भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। 

सन् 1957 से 1977 तक यानि जनता पार्टी की स्थापना तक वह 2० वर्षों तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता भी रहे। इसके बाद मारोरजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहकर उन्होंने विदेशों में भारत की बेहतर छवि का परचम लहराया। असल में, आपात के कारण विपक्ष संगठित होने में सफल रहा था। फिर लोकसभा चुनाव संपन्न हुए, जिसमें इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं थीं। संगठित विपक्ष द्बारा मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। उन्हें विदेशी मामलों का विश्ोषज्ञ माना जाता था। उन्होंने कई देशों की यात्रा की और विदेशी मंचों पर भारत की पक्ष बेहद मजबूती से रखा। धीरे-धीरे वह भारतीय राजनीति में अपनी बेजोड़ समझ के चलते स्वयं को स्थापित करते गए। 
सांसद से पीएम तक...
 अटल बिहारी वाजपेयी कुछ 9 बार लोकसभा के लिए चुने गए थ्ो। दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक, बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति भी रही, जब वह 1984 में ग्वालियर में कांग्रेस नेता माधव राव सिंधिया के खिलाफ चुनाव हार गए थ्ो। श्री वाजपेयी 1962 से 1967 और 1986 में वह राज्यसभा के सदस्य   भी रहे। 
 16 मई 1996 को वह पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन दुर्भाग्यवश लोकसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें 31 मई 1996 को त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आम चुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया, लेकिन इस बार भी वह महज 13 महीने ही देश के प्रधानमंत्री रह सके, क्योंकि एआईएडीएमके द्बारा गंठबंधन से समर्थन वापस लिए जाने की वजह से उनकी सरकार गिर गई थी। इसके बाद 1999 में आम चुनाव हुए। यह चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणा-पत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। वह मई, 2००4 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी को सांसद के रूप में लगभग चार दशक का अनुभव रहा, जबकि राजनीति में उन्होंने 5० साल से भी अधिक का समय खपाया। जब वह पहली बार सांसद बनकर आए तो पंडित जवाहरलाल नेहरू से काफी प्रभावित हुए। पंडित नेहरू से उन्हें प्रतिभाशाली सांसद बताया और कहा कि यह आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बनेगा। संसद सदस्य के रूप में चार दशक के सफर में वह पांचवीं, छठवीं, सातवीं, और फिर दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं लोकसभा के सदस्य रहे। जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जनांदोलन छेड़ा गया, तब आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 के बीच श्री अटल बिहारी वाजपेयी को जेल भी जाना पड़ा। 


यूएन में हिंदी में दिया भाषण
 श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्बारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में दिया गया भाषण न केवल देश के लिए गौरव की बात थी, बल्कि वाजपेयी ने भी इसे अपने लिए सबसे अधिक प्रसन्नतापूर्वक क्षण मानते रहे। वाजपेयी का वह भाषण ऐतिहासिक था। संयुक्त राष्ट्र महासभा में ये पहली बार हुआ, जब किसी भारतीय ने हिंदी में भाषण दिया। 



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