असुरक्षा में 'मासूम’
बिहार के 'मुज्जफरनगर’ के बाद 'देवरिया’ में 'श्ोल्टर होम्स’ में रहने वाली बच्चियों के साथ घिनौनी हरकत की जो वारदातें सामने आईं हैं, वह हतप्रद करने वाली हैं। क्या स्थानीय प्रशासन, पुलिस और सरकार इतनी गहरी में नींद में सोई रहती है कि उन्हें यह जरूरत ही महसूस नहीं होती है कि ऐसे श्ोल्टर होम्स का समय-समय पर निरीक्षण किया जाए और लड़कियों की सुरक्षा के संबंध में पुख्ता जानकारी ली जाए, लेकिन जिस प्रकार जिले के बड़े पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के ऐसे श्ोल्टर होम्स में आने और वहां रात भर रुके रहने की बात सामने आ रही है, ऐसे में स्थानीय पुलिस-प्रशासन से भी कोई उम्मीद करना बेमानी साबित होगा।
सच तो यही है कि अगर, पुलिस-प्रशासन समय रहते सक्रिय रहता तो क्या मासूम बच्चियों के साथ इस तरह की घिनौनी हरकत होती। ऐसे में मामले में देश की व्यवस्था इसीलिए भी समझ परे लगती है, क्योंकि जब सबकुछ बर्बाद हो चुका होता है, तब शासन की नींद खुलती है। शासन, प्रशासन और जनप्रतिनिधि क्यों होते हैं, क्या हर चीज की मॉनटिरिंग करना उनके लिए जरूरी नहीं होना चाहिए।
बिहार के मामले में तो सरकार की जिस तरह की भूमिका सामने आ रही है, वह वाकई शर्मनाक है। सरकार संबंधित श्ोल्टर हाउस को फंड मुहैया कराती थी, इसके बावजूद श्ोल्टर का निरीक्षण तक नहीं किया जाता था। क्या 'नीतीश कुमार’ व उनका प्रशासन आंख मूंदकर फंड मुहैया करा रहा था। ऐसे मामले में दोषियों को तत्काल कड़ी-से-कड़ी सजा देनी चाहिए, साथ ही संबंधित क्ष्ोत्र के पुलिस-प्रशासनिक और जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी तय होनी चाहिए। उनके खिलाफ भी इस मामले में गंभीर एक्शन लिया जाना चाहिए। कम-से-कम अपनी सोच के आधार पर शासन और प्रशासन की आत्मा न भी जागे तो कम-से-कम 'सुप्रीम कोर्ट’ की फटकार लगने के बाद वह अपनी सोई हुई आत्मा को जगा लें। सुप्रीम कोर्ट ने व्यथित लहजे में कहा है कि देशभर में यह क्या हो रहा है। 'लेफ्ट, राइट और सेंटर’, सब जगह रेप हो रहा है।
बकायदा, सुप्रीम कोर्ट ने 'नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो’ (एनसीआरबी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि हर छह घंटे में एक लड़की का रेप हो रहा है। देश भर में हर साल 38 हजार 'रेप’ हो रहे हैं। इन हालातों में यह कहना गलत नहीं होगा कि देश के अंदर मासूम बच्चियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से यह बेहद खतरनाक स्थिति है। क्या इसमें राजनीतिक पार्टियों की कथनी और करनी में अंतर नहीं दिखता।
महिलाओं की सुरक्षा का दम भरने वाली बीजेपी के शासनकाल में स्थिति और भी बदत्तर दिख रही है। देश में दो बड़े प्रदेश जहां बीजेपी का शासन है और वहीं महिलाओं और बच्चियों के साथ सबसे अधिक रेप की घटनाएं घटित हो रही हैं। इनमें पहले नबंर पर मध्यप्रदेश है और दूसरे नंबर पर देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर-प्रदेश है। बिहार के हालात सभी को पता हैं, वहां भी बीजेपी समर्पित सरकार ही चल रही है। बिहार में राज्य सरकार 2००4 से ही तमाम श्ोल्टर होम्स को पैसा दे रही है, लेकिन उन श्ोल्टर होम्स में हो क्या रहा है, इसको जानने तक की जहमत शासन में बैठे लोगों ने नहीं उठाई। आज नतीजा सबके सामने है। इसमें शासन-प्रशासन का क्या बिगड़ा। बिगड़ा तो उन मासूम बच्चियों का और उन परिवारों का, जिनसे इन मासूम बच्चियों का ताल्लुक है।
ऐसे मामलों में हैरानी तब और बढ़ जाती है, जब अधिकारी जांच-पड़ताल में देर लगाते हैं और राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की फिराक में दिखती हैं। लोकतंत्र के विकास की दौड़ में अगर इस तरह के खतरे और असुरक्षा बढ़ती जाएगी तो आने वाले समय में स्थिति और भी जटिल हो जाएगी। कम-से-कम सरकारों और स्थानीय पुलिस-प्रशासन को महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अगर, ऐसे मामलों में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत भी सामने आती है तो तात्कालिक कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, तभी अधिकारी और जन-प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी का सही से निर्वहन करेंगे। ऐसा नहीं हुआ तो इसमें देर नहीं लगेगी कि मुज्जफरनगर और देवरिया के बाद कुछ और नाम सामने आ जाएं।
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