बाढ़ का 'कहर’ Havoc Of 'Flood’


       'प्राकृतिक आपदाओं’ की वजह से हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है। इसमें बाढ़ एक ऐसी आपदा है, जो हर साल आती है। हर साल यह बाढ़ किसी-न-किसी एरिया में अपने ऐसे निशान छोड़ जाती है, जिनको मिटाने में कई वर्ष बीत जाते हैं। दुनिया में भारत उन देशों में शामिल है, जो बाढ़ प्रभावित देशों की सूची में सबसे ऊपर है। 'यूनाइटेड नेशन’ United Nation-(यूएन-UN) की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल आपदा की वजह से करीब 23 लाख लोग बेघर हो जाते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाढ़ व अन्य आपदाओं की वजह से हमें कितनी 'त्रासदी’ झेलनी पड़ती है। हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ती है, हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति को खोना पड़ता है। कृषि, ट्रासपोर्ट, आवागमन से लेकर तमाम ऐसे क्ष्ोत्र होते हैं, जिनमें भारी क्षति उठानी पड़ती है। 



'सूखा’, 'तूफान’ और 'भूकंप’ जैसी 'आपदाओं’ के अलावा बाढ़ एक ऐसी समस्या है, जो जन हानि और उनके घरों की छीनने का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है। भारत में जिन राज्यों में सबसे अधिक विस्थापन रिकॉर्ड स्तर हुआ है, उनमें 'बिहार’ सबसे ऊपर है। पिछले वर्षों में बिहार में सबसे अधिक बाढ़ आई, जिनमें सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और 1.75 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हुए और 9 लाख लोग बेघर हुए। 'बिहार’ के अलावा देश के दूसरे राज्य जैसे 'मध्यप्रदेश’, 'असम’, 'मुंबई’, 'तमिलनाडु’, 'उत्तराखंड’, 'जम्मू-कश्मीर’ भी इस सूची में शामिल हैं। भारत के अलावा चीन में भी बाढ़ से ऐसे हालात बनते हैं। वहां भी हर साल बाढ़ की वजह से लाखों लोग बेघर हो जाते हैं। 'यूएस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन’US Office For Disaster Risk Reduction-(यूएनआईएसडीआर-UNISDR) की रिपोर्ट के मुताबिक 'चीन’ में सालाना करीब 13 लाख लोग आपदा की वजह से बेघर होते हैं। 'भारत’ India, 'चीन’ China के अलावा 'बांग्लादेश’ Bagladesh, 'नेपाल’ Nepal भी बाढ़ व अन्य तरह की 'प्राकृतिक आपदाओं’ के लिए बहुत संवेदनशील जगहें हैं। 
 केरल की 'त्रासदी’ Kerala Floods
 लगातार दो स’ाह तक बारिश रहने की वजह से आई बाढ़ ने 'केरल’ में भयंकर तबाही मचाई। वहां हालात बद-से-बदत्तर हुए। अगस्त, 2०17 में भारी बारिश के चलते आई बाढ़ ने पिछले 96 साल का रिकॉर्ड तोड़ा। इस भयंकर त्रासदी में 370 लोगों ने अपनी जान गंवाईं और दो लाख 23 हजार 139 लोग बेघर हुए हैं। यहां भारी तबाही को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के बाद केंद्र सरकार ने राज्य को 6०० करोड़ रुपए के राहत आर्थिक पैकेज देने का ऐलान किया। इस बाढ़ में 26 हजार से अधिक घरों को नुकसान पहुंचा, जिसमें 8 हजार घर बाढ़ के पानी में बह गए। राज्य के खराब हालातों को देखते हुए वहां 5,645 राहत शिविर लगाए गए थ्ो। 1० हजार किलोमीटर से अधिक की सड़कें और पुलों का नुकसान पहुंचा। तीनों सेनाओं के अलावा 'एनडीआएफ’ NDRF की जवानों ने यहां अपनी पूरी ताकत झौंकी। जिसकी बदौलत करीब 3० हजार लोगों को बचाया गया। कृषि भूमि भी पूरी तरह जलमग्न रही, जिसकी वजह से 4० हजार से अधिक की कृषि भूमि क्षतिग्रस्त हो गई। बाढ़ ने एयरपोर्ट तक भी नहीं बख्शा। कोच्चि एयरपोर्ट इसका बड़ा उदाहरण रहा, जिसे करीब 5०० करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचा।
 बाढ़ में, घायल लोगों व बारिश खत्म होने के बाद फैलने वाली बीमारियों के उपचार हेतू बाढ़ प्रभावित ईलाकों में 3,7०० मेडिकल कैंप लगाए गए हैं। इस पूरे घटनाक्रम में 2० हजार करोड़ रुपए का नुकसान राज्य को पहुंचा है। 
 आर्थिक मदद को कई राज्य आए आगे
 केरल में बाढ़ की भयंकर त्रासदी को देखते हुए कई राज्य आगे आए हैं, जिनमें दिल्ली, पंजाब, आंध्र प्रदेश तेलंगाना आदि मुख्य रूप से शामिल रहे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रश्ोखर ने केरल को 25 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया। इसके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 1०-1० करोड़ रुपए की आर्थिक मदद देने का ऐलान किया है। विभिन्न राज्यों के अलावा सर्विस सेक्टर की कंपनियां भी राज्य के खराब हालातों का देखते हुए आगे आईं हैं, इनमें खासकर, टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियां मुख्य रूप से शामिल हैं। कंपनियों ने एक स’ाह तक राज्य में मुफ्त सेवाएं देने का ऐलान किया है। इसमें फ्री कॉलिंग और डेटा की सुविधा शामिल है। साथ ही बिल भुगतान और अन्य सेवाओं को लेकर भी इतने ही दिनों की राहत दी है। सरकार 'टेलीकॉम’ कंपनी 'बीएसएनएल’ और रिलांयस जियो ने अपने ग्राहकों को फ्री कॉलिंग की सुविधा दी है, जबकि 'भारती एयरटेल’, 'वोडाफोन’ और 'आइडिया सेल्यूलर’ ने अपने प्रीपेड ग्राहकों को सीमित संख्या में मुफ्त कॉलिंग की सुविधा दी है।
'यूएई’ UAE भी देगा मदद
 इसके अलावा मदद के लिए 'संयुक्त अरब अमीरात’ (यूएई UAE) भी आगे आया है। 'यूएई’ ने केरल के लोगों की जिदंगी पटरी लाने के लिए 7०० करोड़ रुपए की सहायता देने की बात कही। स्वयं यह जानकारी केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने दी है। वहीं, यूएई के वीपीएस हेल्थ केयर के प्रबंध निदेशक डॉक्टर शमशीर वायलील ने बाढ़ पीड़ितों को 5० करोड़ रुपए दान किए हैं। 
14 में से 13 जिले हैं बाढ़ प्रभावित
राज्य के 14 जिलों में से 13 जिले बाढ़ प्रभावित हैं। इन जिलों में इडुक्की, जो सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित जिला है। इसके अलावा कोट्टायम, इर्नाकुलम, पलक्कड़, मुलाप्पुरम, कोझीकोड, पट्टममित्ता, त्रिशूर, कन्नूर, वायनाड आदि जिले शामिल हैं। यह सभी जिले बाढ़ के पानी से जलमग्न हैं और यहां भूस्खलन भी हुआ है। आलम यह है कि केरल का 8० फीसदी से ज्यादा क्ष्ोत्र पानी में डूबा हुआ है। बाढ़ की वजह से टूरिज्म को काफी नुकसान पहुंचा है, क्योंकि यह समय वहां टूरिज्म का होता है। लिहाजा, टूरिज्म के मद्देनजर राज्य को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इसके अलावा धान की फसलें बर्बाद हुई हैं। जैव विविधता और मसालों की ख्ोती पर भी इस बाढ़ का काफी बुरा असर पड़ा है। 
 तीन जिलों में बारिश का औसत ज्यादा
 राज्य में इडुक्की जिला तो सबसे अधिक प्रभावित रहा ही, बल्कि इसके अलावा दो अन्य जिले भी इस सूची में शामिल हैं, जहां औसत से कहीं ज्यादा बारिश हुई, जिसके चलते इन तीनों जिलों में सबसे अधिक नुकसान पहुंचा है। 
 तीन जिलों में बारिश का औसत
 इडुक्की में 84 फीसदी ज्यादा बारिश हुई।
 कोट्टायम में 47 फीसदी ज्यादा बारिश हुई।
 एनाकुलम में 44 फीसदी ज्यादा बारिश हुई।



 बांधों व जलाश्यों की स्थिति
 जानकार बता रहे हैं के केरल में बारिश की वजह से इस तरह की तबाही 96 साल पहले हुई थी। इतनी बढ़ी तबाही के चलते राज्य के हालात बहुत ज्यादा खराब हो गए हैं। आलम यह रहा कि 37 में से 34 बांधों को खोलना पड़ा, ऐसी स्थिति राज्य में इससे पहले कभी नहीं आई। इसके अतिरिक्त 39 में से 35 रिजर्व वायर के गेट खोलने पड़े, जिनमें कई ऐसे रिजर्व वायर हैं, जो पिछले कई सालों से भर नहीं पाते थ्ो। 
 जून से सितंबर के बीच आता है मानसून
 मानसून के मामले में अगर केरल की स्थिति देख्ों तो यहां दक्षिण पश्चिमी हवाएं जून से सितंबर चलती हैं। ये हवाईं अरब सागर से बनती हैं और केरल के साथ देश के अन्य हिस्सों में प्रवेश करती हैं। वहीं, उत्तरी पूर्व हवाएं अक्टूबर से दिसंबर तक चलती हैं, ये वो मानसूनी हवाएं होती हैं, जो सितंबर के बाद उत्तर से वापस लौटती हैं और बारिश करती हैं। हर बार केरल से देश में प्रवेश करने वाली मानसूनी हवाएं केरल में सामान्य बारिश करती रही हैं। आलम यह भी था कि ये हवाएं केरल में हल्की-फुल्की या सामान्य बारिश करके आगे बढ़ जाती रहीं, लेकिन इस बार स्थिति अलग रही। इस बार करीब 37 फीसदी ज्यादा बारिश अगस्त के दूसरे हफ्ते तक ही हो चुकी थी। जिस परिणाम राज्य को भयंकर बाढ़ से गुजरना पड़ा है। 
 मौसम व्ौज्ञानिक बताते हैं कि केरल में इस बार काफी बड़े एरिया में चक्रवाती सर्कुलेशन की स्थिति बनी हुई थी। इसके बाद बंगाल और आसपास के क्ष्ोत्रों में कम दबाव का क्ष्ोत्र होने से मानसूनी हवाएं आगे बढ़ने के बजाए केरल में रूक रहीं थीं और बारिश कर रहीं थीं। 
 भारत में आई अब तक की सात बड़ी बाढ़
 बिहार(1987)
 बिहार बाढ़ के लिहाज से बहुत संवेदनशील राज्य है। यहां हर साल बाढ़ अपना कहर ढहाती है, लेकिन यहां 1987 को आई बाढ़ ने सबसे अधिक तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा में 3० जिलों के 382 ब्लॉक, 6,112 पंचायत और 24,518 गांवों के कुल 2.9 करोड़ लोगों को प्रभावित किया। बाढ़ का सबसे दर्दनाक पहलू यह रहा कि इस त्रासदी में 1,399 से अधिक लोगों व लगभग 5,3०2 जानवरों की मौत हो गई थी। इस बाढ़ से फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा। बताया जाता है कि इस भंयकर बाढ़ से करीब 68 सौ करोड़ रुपए के फसल को क्षति पहुंची थी। इसके अतिरिक्त 2००4 में भी बिहार बाढ़ आई थी, जिसमें 885 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी और 3272 जानवरों की भी मौत हो गई थी। वहीं, 2००8 में भी बिहार बाढ़ की चपेट में आया, जिसकी वजह से 2.3 मिलियन लोग बाढ़ की वजह से प्रभावित हुए थ्ो।
महाराष्ट्र(2००5)
 महाराष्ट्र भी बाढ़ की चपेट में आता रहता है। खासकर, मुंबई में तो हर साल काफी बारिश होती है। महाराष्ट्र में 2००5 में आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। इस बाढ़ में डेढ़ हजार से भी अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इसके अतिरिक्त परिवहनों को भी काफी नुकसान पहुंचा था। बताया जाता है कि करीब 37 हजार ऑटो, चार हजार टैक्सी, लगभग एक हजार बीइएसटी बसें, 1० हजार ट्रक और 5० से अधिक लोकल ट्रेनें या फिर बर्बाद हो गए या फिर पूरी तरह खराब हो गए थ्ो। इस आपदा में राज्य को 5०० करोड़ से भी अधिक का नुकसान झेलना पड़ा था। 
गुजरात(2००5)
2००5 में गुजरात को भी भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ा था। बाढ़ की वजह से राज्य में काफी तबाही हुई थी। इस आपदा में 123 लोगों की मौत हो गई थी। कुल मिलाकर ढाई लाख लोग इस बाढ़ की वजह से प्रभावित हुए थ्ो। राज्य को कुल आठ हजार करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा था। 


उत्तराखंड(2०13)
 आपदा के परिदृश्य ने उत्तराखंड बहुत संवेदनशील क्ष्ोत्र है। 17 जून 2०13 में उत्तर भारत में भारी बारिश के कारण उत्तराखंड और हिमाचल में भूस्खलन की स्थिति पैदा हो गई थी। उत्तराखंड में, बादल फटने के बाद आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। यह भारतीय इतिहास की सबसे भयानक बाढ़ मानी जाती है। इस बाढ़ में 5 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसके अलावा सैकड़ों लोगों के गायब होने की जानकारी सामने आई। लाखों लोग इस बाढ़ की वजह से प्रभावित हुए थ्ो। इसमें सबसे अधिक प्रभावित वे लोग थ्ो, जो चार धाम यात्रा पर आए हुए थ्ो। लैंड स्लाइड के चलते अधिकांश लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। हर बार की तरह यहां भी सेना, वायुसेना और पैरा मिलिट्री फोर्स देवदूत बनकर आई थी, जब जवानों ने 1 लाख 1० हजार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला था। इस त्रासदी का सर्वेक्षण करने के बाद केंद्र सरकार द्बारा राज्य को आर्थिक सहायता के रूप में 1 हजार करोड़ रुपए का पैकेज देने का ऐलान किया गया था। 
 जम्मू-कश्मीर(2०14)
जम्मू-कश्मीर में 2०14 में लगातार बारिश की वजह से बाढ़ आई थी, जिसमें सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाईं। इस प्राकृतिक आपदा से करीब ढाई हजार गांव प्रभावित हुए थ्ो, जबकि 39० गांव पूरी तरह जलमग्न हो गए थ्ो। इस त्रासदी में 2०० लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
ब्रहमपुत्र बाढ (2०12)
 2०12 में ब्रहमपुत्र नदी में बाढ़ आ गई थी, जिसकी वजह से भारी नुकसान हुआ था। इस बाढ़ की वजह से 124 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। आलम यह रहा कि नदी का जलस्तर इतना बढ़ गया था कि पानी काजीरंगा नेशनल पार्क में घुस गया था, जिसमें 5०० जानवरों की मौत हो गई थी। 
लदाख(2०1०)
 लदाख में 6 अगस्त 2०1० को भंयकर बाढ़ आई थी, जिनमें अधिकांश हिस्सा जलमग्न हो गया था। करीब 71 शहरों में बाढ़ के पानी ने भंयकर तबाही मचाई थी। आकड़ों के मुताबिक इस बाढ़ की त्रासदी में 255 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी और सैकड़ों करोड़ की सार्वजनिक संपत्ति को भी इस बाढ़ की वजह से नुकसान हुआ था। 
प्रकृति से छेड़छाड़ से बढ़ रही समस्या
 हम नुकसान पर कितना ही रोए-सिर पीटे। लेकिन इसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। चाहे बड़े स्तर पर पेड़ों का कटान हो, पहाड़ों का कटान हो, नदियों से बड़े स्तर पर खनन का काम होगा या फिर नदियों के आसपास कंक्रीट के जंगलों का बनाया जाना हो या फिर दुनिया में जनसंख्या बढ़ने से खतरनाक क्ष्ोत्रों में खतरा बढ़ना हो जैसे तमाम ऐसे प्राथमिक कारण हैं, जो प्रकृति को रोद्र रूप धारण करने के लिए मजबूर कर रही हैं। 
बाढ़ आने के प्रमुख कारण
औसत से अधिक बारिश
 जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का कॉन्सेप्ट लगातार बदलता जा रहा है। सर्दी, गर्मी के अलावा बारिश का पैटर्न भी तेजी से बदल रहा है। कभी बारिश होती ही नहीं है, जबकि कभी इतनी बारिश एक साथ हो जाती है कि बाढ़ के हालात पैदा हो जाते हैं। लिहाजा, नदियों उफान मारने लगती हैं, जिसकी वजह से बाढ़ आ जाती है।
बांधों का टूटना
बाढ़ आने का दूसरा सबसे बड़ा कारण है बांधों और तटबंधों का टूटना जाना। जब औसत से अधिक बारिश होती है तो बांधों और तटबंधों पर अत्यधिक दबाव पड़ जाता है, जिसकी वजह से बांध और तटबंध टूट जाते हैं। बांध और तटबंधों को इसीलिए बनाया जाता है, क्योंकि बाढ़ के प्रभाव को कम किया जाए और नदियों का पानी इनमें समा जाए, लेकिन औसत से अधिक बारिश होती है तो अत्यधिक दवाब के कारण ये बांध और तटबंध टूट जाते हैं।
सुनामी आने पर
सुनामी भी बाढ़ आने का प्रमुख कारण होता है। असल में, सुनामी से समुद्र में पानी की बड़ी तरंगे बनने लगती हैं। जिसके कारण पानी का आसपास व नए क्ष्ोत्र में आगमन होने लगता है। जिससे भंयकर बाढ़ के हालात बन जाते हैं। जापान, भारत से लेकर कई देशों के हलिया उदाहरण हम सबके सामने हैं, जब सुनामी के चलते भारी तबाही हुई थी। 
असामान्य बारिश
बारिश का असमान्य होना भी बाढ़ आने का बड़ा कारण होता है। खासकर, पर्वतीय ईलाकों में बारिश में इस तरह की असमानता देखने को मिल रही है। इसकी वजह से नदियों उफान पर चली जाती हैं। इससे पहाड़ी ईलाकों में तो बाढ़ आती ही है बल्कि शहरी ईलाके भी बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं,क्योंकि नदियां पहाड़ों से निकलकर मैदानी क्ष्ोत्रों से होते हुए समुद्र तक पहुंचती हैं। बारिश के दौरान पर्वतीय ईलाकों में बादल भी फट जाते हैं, जिसकी वजह से बाढ़ के हालात और तीव्र हो जाते हैं।
बाढ़ से होने वाले नुकसान
 जान माल की व्यापक हानि।
 ख्ोती-किसानी को नुकसान।
 ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को हानि।
 मवेशियों और जानवरों पर प्रभाव।
 संक्रामक बीमारियों की उत्पत्ति।
बाढ़ से बचने के तात्कालिक उपाय
 सुरक्षित स्थान का कर लें चयन।
 जरूरी चीजों को कर लें एकत्रित, इसमें खाने-पीने की चीजें व दवाइयां आदि मुख्य रूप से शामिल हों।
 प्लास्टिक व तिरपाल साथ लेकर जाएं।
 टार्च व अतिरिक्त बैटरियों को भी साथ रख्ों।
 रस्सी व काटने के चाकू भी रखें साथ।
इन उपायों पर ध्यान दे सरकार
पर्यावरण संरक्षण पर विश्ोष जोर।
नदियों का राष्ट्रीयकरण जरूरी है। 
अगर, सभी नदियों को एक साथ जोड़ दिया जाएगा तो इससे पानी का संतुलन बना रहेगा। इसके जरूरी है और बांधों और तटबंधों का निर्माण।
अधिक-से-अधिक नहरों का निर्माण। 
नहरों के निर्माण से बारिश के दौरान शहरों में पानी के फैलने का खतरा कम रहता है, क्योंकि शहरी ईलाकों में नहर भी नदी और बांध की तरह काम करता है।इसके अतिरिक्त नेपाल से आने वाले पानी का हल खोजना भी जरूरी है, क्योंकि जब भी नेपाल में भारी बारिश होती है तो इसका असर भारत के दो राज्यों बिहार और उत्तर-प्रदेश पर भी पड़ता है। लिहाजा, सरकार इस समस्या का हल खोजें।


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