'ना’पाक बोल
'पाकिस्तान’ के नव-नियुक्त 'प्रधानमंत्री’ 'इमरान खान’ के शपथ ग्रहण समारोह में जाने और वहां 'पाकिस्तानी फौज’ के 'जनरल बाजवा’ को गले लगाने के बाद घिरे 'नवजोत सिंह सिद्धू’ अपनी सफाई के लिए तरह-तरह की बातें खोज तो रहे हैं, लेकिन उनकी कोई भी बात गले उतरने जैसी नहीं है। वह बहुत ही जोंकिग के अंदाज में कह रहे हैं, मैं मोहब्बत का पैगाम लेकर गया था और वहां जो मुझे मोहब्बत मिली, वह उम्मीद से कई गुना अधिक के साथ-साथ जिस तरह की बातें सामने आती हैं, उससे बिल्कुल ही उलट थी।
नवजोत सिंह सिद्धू की ऐसी बातें सहज ही चौंकाती हैं, क्योंकि उनकी बातों से ऐसा लगता है कि 'पाकिस्तान’ की तरफ से सीमा पार से 'भारतीय फौज’ के खिलाफ जिस तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। भारत की सरकार और जनता उसे गलत रूप में पेश करती है। और पाकिस्तान 'भारत’ की अपेक्षा ज्यादा बेहतर रिश्ते बनाने के मूड में है। एक भारतीय राजनेता जब, सब हालातों को जानते हुए ऐसी बातें करता है तो उसमें हंसी भी आती है और शमर्दंगी भी होती है। वह 'राजनीति और कूटनीति’ के मैदान को अगर जोकिंग का मंच समझ लेते हैं तो यह कतई स्वीकार्य नहीं किया जा सकता है। वह भी पाकिस्तान जैसे देश के मामले में, जिसने हमेशा भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा है और पीठ में छूरा भोंकने का काम पाकिस्तान द्बारा किया जाता रहा है।
क्या सिद्धू की याददाश्त इतनी कमजोर है कि उन्हें पिछले कुछ ही वर्षों में घटी घटनाएं तक याद नहीं हैं, किस प्रकार 'पाक की नापाक हरकतों’ की वजह से 'भारतीय फौज’ के जवान मारे जाते हैं। ऐसे जवानों की शाहदत पर अगर आप पाकिस्तान की वाहवाही कर नमक छिड़कने का काम करते हैं तो इससे दु:खद भारत के लिए कुछ और नहीं हो सकता है।
क्या सिद्धू की याददाश्त इतनी कमजोर है कि उन्हें पिछले कुछ ही वर्षों में घटी घटनाएं तक याद नहीं हैं, किस प्रकार 'पाक की नापाक हरकतों’ की वजह से 'भारतीय फौज’ के जवान मारे जाते हैं। ऐसे जवानों की शाहदत पर अगर आप पाकिस्तान की वाहवाही कर नमक छिड़कने का काम करते हैं तो इससे दु:खद भारत के लिए कुछ और नहीं हो सकता है।
वैसे, सिद्धू के राजनीतिक सफर को कौन नहीं जानता है। सिद्धांतों के परे जाकर वह जिस प्रकार सत्ता-लोलुपता को केंद्र में रखकर राजनीति करते हैं, ऐसे में उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह इस मामले में संवेदनशीलता दिखाएंगे। वह थाली के बैंगन की तरह कभी 'बीजेपी’ की थाली में डोलने लगते हैं और कभी 'कांग्रेस’ की थाली में। अब जाकर पाकिस्तान की थाली में ऐसे लुढ़कने लगे, जैसे लगा कि उनके लिए उस समारोह में शरीक होना, किसी महाकुंभ में शरीक होने से कम नहीं था।
दूसरी बात, यह भी महत्वपूर्ण है कि आपने जिस तरह से पाकिस्तान जाने पर उतावलापन दिखाया, वह यही साबित करता है कि सिद्धू जैसे नेता देश से तो बढ़कर दोस्ती को समझते हैं। अगर, आप देश से बढ़कर दोस्ती को समझते हैं तो निश्चित ही यह तो वही वाली बात हो गई ना कि अगर, हम सांप को पालते हैं तो निश्चित ही वह एक दिन पालने वाले को ही काट लेता है। आपकी दोस्ती, देश से बढ़कर हो गई। सीमा पर लड़ रहा जवान अपने प्राणों और मां-बाप, पत्नी और बच्चों के सपनों को देश सेवा के लिए कुर्बान कर देता है आप कह रहे हैं कि मैं दोस्ती निभाने गया था। क्या, आपकी दोस्ती हमारे शहीद जवानों, उनके मां-बाप, पत्नी और बच्चों के सपनों से भी बढ़कर हो गए थ्ो।
क्या आपको इतना भी भान नहीं था कि आप 'सार्वजनिक जीवन’ जी रहे हैं। कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी में नेता हैं और पंजाब सरकार में मंत्री बने बैठे हैं। इसके बाद भी आप आसानी से कह रहे हैं कि मैं व्यक्तिगत न्यौते पर गया था। जनता का प्रतिनिधि होने के बाद भी इस तरह की बात करना आपकी निर्लज्जता को साबित करता है। 'मशहूर क्रिकेटर’ रहे 'कपिलदेव’, 'गावस्कर’ के अलावा 'फिल्म अभिनेता’ 'आमिर खान’ को भी न्यौता था। तीनों अपने-अपने पश्ो में मशगूल हैं। उनका आपकी तरह 'राजनीतिक जीवन’ नहीं है, फिर उनमें से कोई भी इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गया। क्या वे वहां दोस्ती निभाने नहीं जा सकते थ्ो? जब दोनों देशों के बीच बातचीत बंद है।
इसके पीछे पाक के नापाक हरकत जिम्मेदार हैं तो फिर इसमें कुछ जानने-समझने जैसी बात नहीं रह जाती है। जब नेता और मंत्री होने पर आप सार्वजनिक जीवन में शामिल हो जाते हैं तो उसमें व्यक्तिगत कुछ भी नहीं रह जाता है और दूसरा हर देशवासी के लिए देश से बढ़कर कुछ नहीं होता है। देश तभी एकसूत्र में बंधकर रह सकता है, जब हम 'देश की गरिमा’ को समझेंगे, देश के लिए जान देने वाले जवानों की अहमियत को सैल्यूट करेंगे, तभी हम देश के सच्चे 'नागरिक’ भी कहलाएंगे और गंभीर 'राजनेता’ भी।
दूसरी बात, यह भी महत्वपूर्ण है कि आपने जिस तरह से पाकिस्तान जाने पर उतावलापन दिखाया, वह यही साबित करता है कि सिद्धू जैसे नेता देश से तो बढ़कर दोस्ती को समझते हैं। अगर, आप देश से बढ़कर दोस्ती को समझते हैं तो निश्चित ही यह तो वही वाली बात हो गई ना कि अगर, हम सांप को पालते हैं तो निश्चित ही वह एक दिन पालने वाले को ही काट लेता है। आपकी दोस्ती, देश से बढ़कर हो गई। सीमा पर लड़ रहा जवान अपने प्राणों और मां-बाप, पत्नी और बच्चों के सपनों को देश सेवा के लिए कुर्बान कर देता है आप कह रहे हैं कि मैं दोस्ती निभाने गया था। क्या, आपकी दोस्ती हमारे शहीद जवानों, उनके मां-बाप, पत्नी और बच्चों के सपनों से भी बढ़कर हो गए थ्ो।
क्या आपको इतना भी भान नहीं था कि आप 'सार्वजनिक जीवन’ जी रहे हैं। कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी में नेता हैं और पंजाब सरकार में मंत्री बने बैठे हैं। इसके बाद भी आप आसानी से कह रहे हैं कि मैं व्यक्तिगत न्यौते पर गया था। जनता का प्रतिनिधि होने के बाद भी इस तरह की बात करना आपकी निर्लज्जता को साबित करता है। 'मशहूर क्रिकेटर’ रहे 'कपिलदेव’, 'गावस्कर’ के अलावा 'फिल्म अभिनेता’ 'आमिर खान’ को भी न्यौता था। तीनों अपने-अपने पश्ो में मशगूल हैं। उनका आपकी तरह 'राजनीतिक जीवन’ नहीं है, फिर उनमें से कोई भी इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गया। क्या वे वहां दोस्ती निभाने नहीं जा सकते थ्ो? जब दोनों देशों के बीच बातचीत बंद है।
इसके पीछे पाक के नापाक हरकत जिम्मेदार हैं तो फिर इसमें कुछ जानने-समझने जैसी बात नहीं रह जाती है। जब नेता और मंत्री होने पर आप सार्वजनिक जीवन में शामिल हो जाते हैं तो उसमें व्यक्तिगत कुछ भी नहीं रह जाता है और दूसरा हर देशवासी के लिए देश से बढ़कर कुछ नहीं होता है। देश तभी एकसूत्र में बंधकर रह सकता है, जब हम 'देश की गरिमा’ को समझेंगे, देश के लिए जान देने वाले जवानों की अहमियत को सैल्यूट करेंगे, तभी हम देश के सच्चे 'नागरिक’ भी कहलाएंगे और गंभीर 'राजनेता’ भी।
Sir, you are absolutely alright, each & every word of your column clearly indicates that Mr Siddhu's Pakistan visit was a wrong decision, and against the sentiments of our brave Jawans, their families. He could have avoid to go there.
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