''भविष्य का भारत’’ "Bhavishya Ka Bharat"
विविधताओं को स्वीकार कर उत्सव मानने की जरूरत: RSS Chief "Mohan Bhagwat"
भविष्य के भारत को लेकर संघ प्रमुख "मोहन भागवत" ने स्पष्ट किया "संघ" का नजरिया
by bishan papola
"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ" "Rashtriya Swayamsevak Sangh" (RSS) के तत्वावधान 'भविष्य का भारत’ विषय पर चल रही तीन दिवसीय चर्चा "three day conclave",चर्चा में है। संघ इस चर्चा के माध्यम से भारत के प्रति अपनी सोच, परिकल्पना और भारत के प्रति अपने नजरिए को स्पष्ट कर रहा है। जब बहुत से विरोधी संघ पर महज हिंदू Hindu संगठन होने का ठप्पा लगा रहे हों, तो ऐसी परिस्थिति में संघ की यह पहल इसीलिए अच्छी कही जा सकती है, क्योंकि किसी भी संगठन के पास ऐसा साहस होना चाहिए कि आखिर उसकी नीति और नजरिया क्या है? वह भारत के प्रति क्या सोच रखता है? क्या जिस तरह की सोच और परिकल्पना उसके प्रति कुछ प्रबुद्ध या फिर विरोधी करते हैं क्या वह सच है या फिर वह उस सच से कहीं अलग है। वह वाकई भारत की विविधता को स्वीकार कर उसका उत्सव मानने की सोच रखता है।
संघ (Sangh) बड़ा संगठन है और उसके नजरिए को लेकर विरोध की कई बातें सामने आती रहती हैं। संघ के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वालों की कमी भी नहीं है। इसी परिचर्चा को लेकर जब संघ द्बारा हर वर्ग विशेष व विरोधी संगठनों को न्यौता दिया गया तो उसकी भी बड़ी आलोचना हुई। संघ जहां यह बताने की कोशिश कर रहा है कि उसकी नीति सर्व-समावेशी समाज है, वह देश की विविधता को समझता और उसे अंगीकार कर उत्सव मानने का साहस रखता है, लेकिन विरोधी उसे महज हिंदू संगठन होने का तमगा देते हैं। दूसरे सम्प्रदाय के लोगों को यह कहकर डराया जाता रहता है कि संघ महज हिंदु को संगठित कर रहा है और जब यह मजबूत हो जाएगा तो उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
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RSS Chief "Mohan Bhagwat" |
प्रबुद्ध लोग यह मानते हैं कि संघ की यही नीति देश की संप्रभुता और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है। इसका नतीजा यह होता है कि समाज में टकराव की भावना बढ़ जाती है। तमाम ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जहां हिंदु और मुसलमानों के बीच मार-काट की स्थिति पैदा हो जाती है। लिहाजा, ऐसे में अगर, विरोधियों द्बारा संघ को जिम्मेदार ठहराया जाता है तो वास्तव में उसको अपने नजिरए को स्पष्ट करना ही चाहिए था, क्योंकि जहां नजरिया स्पष्ट नहीं होता है, वहां गलतफहमियों को जन्म मिलता है। उसका नतीजा समाज में टकराव और उन्माद की स्थिति पैदा हो जाती है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष और सर्व-समावेशी समाज में ऐसी स्थिति व सोच बिल्कुल भी नहीं चल सकती है।
दूसरा, उन लोगों को भी समझने की जरूरत है, जो हिंदू को को महज एक धर्म विश्ोष से जोड़कर देखते हैं। हिंदू का मतलब सिर्फ हिंदुओं से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि जो भारत में रहता है, वह हिन्दुस्तान "Hindustan" का शख्स है और हर वह शख्स हिंदू की श्रेणी में आता है, जो भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है। असल में, हिंदू की शब्दिकता यही हो भी सकती है। भारत में रहने वाले हर व्यक्ति को भारत से प्रेम करना ही चाहिए, उसे भारत की संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करना चाहिए। भारत में रहकर अगर, भारत विरोधी बात होती है तो वह कतई हमारी संस्कृति और संस्कारों में फिट नहीं बैठ सकती है। लिहाजा, हिंदु को इस रूप में परिभाषित न किया जाए कि वह महज एक वर्ग विश्ोष तक ही सीमित है। हिंदू शब्द हिन्दुस्तान की व्यापकता को बताने व स्पष्ट करने वाला होना चाहिए। जब इस मूल को समझने और समझाने की कोई भूल या गलती करता है तो उसी स्थिति में समाज में विघटन की परिस्थतियां उत्पन्न होने लगती हैं। संघ से जुड़े जानकार इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि यह सही है कि संघ हिंदुओं को संगठित करना चाहता है,लेकिन इसका उद्देश्य किसी धर्म, जाति, समुदाय के लोगों को आक्रांत करना या उसका अधिकार छीनना बिल्कुल भी नहीं है।
संघ क्या है, इसको समझने के लिए संघ के संस्थापक केशव राव हेडगेवार (Founder Of RSS "Keshav Rao Hedgewar") के कथन को जानना जरूरी लगता है। उन्होंने कहा था, ''किसी भी राष्ट्र की सामथ्र्य उसके संगठन के आधार पर निर्मित होती है। बिखरा हुआ समाज तो एक जमघट मात्र है। 'जमघट’ और 'संगठन’ दोनों शब्द समूहवाचक हैं। फिर भी दोनों का अर्थ भिन्न है। जमावड़े में अलग-अलग वृत्ति के और परस्पर कुछ भी संबंध न रखने वाले लोग होते हैं, किंतु संगठन में अनुशासन, अपनत्व और समाज-हित के संबंध सूत्र होते हैं, जिनमें अत्यधिक स्नेहाकर्षण होता है। यह सीधा-सरल तत्व ध्यान में रखकर समाज को संगठित और शक्तिशाली बनाने के लिए संघ ने जन्म लिया है...। संघ का ध्येय अपने धर्म, अपने समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए हिंदुओं का सक्षम संगठन करना है, क्योंकि इससे हमारा खोया आत्मविश्वास पुन: जागृत होगा और उसकी सामथ्र्य के सामने आक्रामकों की उद्दंड प्रकृति ढीली पड़ेगी तथा वे हमारे ऊपर आक्रमण करने की फिर सोच भी नहीं पाएंगे।’’
यहां हिंदू शब्द से संघ का अभिप्राय व्यापक और समावेशी से है। यानि हिंदू का मतलब भारत में रहने वाले उस हर शख्स से जुड़ा है, जो इसे अपनी मातृभूमि मानता है। हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों की स्थिति बिल्कुल साफ है, जो समाज को धर्म, जाति के आधार पर जोड़ने में लगी हुई हैं, क्योंकि उन्हें वोट बैंक की राजनीति ने इस कदर घ्ोर लिया है कि उन्हें समाज को जोड़ने व उसमें समन्वय बनाने की कोई फ्रिक नहीं है। अपने हितों के लिए राजनीतिक पार्टियां "Political Parties" समाज और देश हित की बलि देने में बिल्कुल भी नहीं कतरा रही हैं। ऐसे में, इस देश को अगर कोई जोड़ने का काम कर सकता है तो उसमें विशुद्ध सामाजिक "Social" संगठन शामिल हो सकते हैं, क्योंकि हमारे देश में ऐसे संगठनों की बहुत ज्यादा दरकार है, जो राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित हुए बिना ही देश की संस्कृतिक और सभ्यता को बचाने के लिए काम करे। वह समाज के बीच दूरियां नहीं बल्कि नजदीकियां बनाने में सहायक सिद्ध हो।
अगर, संघ यह मानता है कि वह इसी तरह के सर्व-समावेशी समाज की परिकल्पना करता है तो उसे राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित होने का चोला उतारकर फेंकना होगा, क्योंकि राजनीतिक चोले को पहनकर कोई भी संगठन समावेशी सोच को धरातल में नहीं उतार सकता है, क्योंकि किसी भी राजनीतिक पार्टी की सोच उस आधार को बिल्कुल भी इंगित नहीं करती है। दूसरा, उन संगठनों को भी अपनी सोच का स्पष्ट करने के लिए संघ की तरह ही आगे आना चाहिए, जो तमाम झंझावातों को उठाए हैं फिरते हैं, लेकिन उनका कोई भी स्पष्ट नजरिया नहीं होता है कि उन्हें जाना किधर है और करना क्या है ?
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