तीन तलाक: मुस्लिम महिलाओं को बड़ी राहत
"Teen Talaq: Muslim Mahilao Ko Badi Rahat"
तीन तलाक Triple Talaq पर केंद्र की मोदी सरकार "modi government" द्बारा लाए गए अध्यादेश Bill को राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई है। यह मुस्लिम महिलाओं के बड़ी राहत भरी खबर है, क्योंकि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद "president" "Ram Nath Kovind" ने बुधवार देर रात को इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। बुधवार को ही कैबिनेट की बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई थी, हालांकि राज्यसभा में यह बिल इसीलिए रुक गया था, क्योंकि कांग्रेस ने इस बिल के प्रावधानों में बदलाव की मांग रखी थी। अब केंद्र सरकार को इस बिल को छह महीने में पास कराना होगा। उम्मीद पूरी है कि यह पास हो जाएगा, इसके बाद तीन तलाक पूरी तरह से अवैध हो जाएगा।
तीन तलाक का सच "Teen Talaq Ka Sach"
तलाक..तलाक..तलाक। Talaq...Talaq...Talaq... ये तीन शब्द कहने मात्र से पति-पत्नी का रिश्ता खत्म हो जाता है, चाहे उस रिश्ते की उम्र दो महीने पुरानी हो या बीस वर्ष। इस संबध में हिंदू और मुस्लिम धर्म के अनुसार स्थिति अलग है। हिंदू धर्म में जहां इसे सात जन्मों का बंधन माना गया है, वहीं मुस्लिम धर्म में यह एक अनुबंध है। यह स्त्री-पुरुष के बीच का करार है कि अगर, उनमें किसी भी हाल में निभ नहीं पाए तो तलाक लेकर संबध तोड़ा जा सकता है।
मगर, यह अधिकार केवल पुरुषों को है कि वो चाहे तो तीन तलाक बोलकर शादी तोड़ दें। सुनने में बहुत सहज लगता है, मगर इसके पीछे की पीड़ा और डर सिर्फ एक औरत ही समझ सकती है। अब तक यह होता आया था, पर अब आगे नहीं हो सकेगा, इसकी उम्मीद नजर आने लगी है।
तीन तलाक का मुद्दा काफी समय से छाया हुआ है। उम्मीद है कि अब यह जल्द खत्म हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट भी इस गलत मान चुका है। ऐसे में, मुस्लिम महिलाओं के लिए इससे बड़ी राहत भरी खबर और क्या हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट Supreme Court में अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि इस्लाम में तीन तलाक जरूरी धार्मिक रिवाज नहीं है और वो इसका विरोध करती है। सरकार का तर्क है कि संविधान पुरुषों और महिलाओं को बराबरी का अधिकार देता है और अदालत को इसी आधार पर इस प्रथा की समीक्षा करनी चाहिए तो उधर, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इसे धर्म से जुड़ा मसला बता दिया था। उनका कहना था कि इस पर कोर्ट में कार्रवाई न हो, लेकिन सरकार और खुद मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि तीन तलाक मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकार से जुड़ा मुद्दा है।
शाहबानो प्रकरण "Shahbano case"
तीन तलाक के इस हंगामे के बीच शाहबानो प्रकरण याद आता है। इंदौर की शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देश भर में राजनीतिक बवाल मच गया था। मुस्लिम महिला शाहबानों को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां थी शाहबानो और उम्र थी 62 वर्ष। गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। केस भी जीत लिया मगर, उसे पति से हर्जाना नहीं मिल सका। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड "All India Muslim Personal Law Board" ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध किया।
इस विरोध के बाद 1986 में राजीव गांधी "Rajiv Gandhi" की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया। इस अधिनियम के तहत शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया था। तलाक-तलाक-तलाक कहकर अपनी जिंदगी से पत्नी को बेदखल करने के इतने वर्षों बाद भी मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
शायरा प्रकरण "Shayra Case"
शाहबानों प्रकरण के बाद शायरा प्रकरण भी काफी गर्म हुआ। असल में, उतराखंड "Uttrakhand" की रहने वाली शायरा को उसके पति ने चिट्ठी भेजकर तलाक दे दिया था। शायरा की शादी इलाहाबाद के रिजवान से 2००2 में हुई थी। पहले तो रिजवान उसे बहुत प्रताड़ित करता था, जिसके बाद रिजवान और शायरा अलग-अलग रहने लगे थे। एक दिन रिजवान ने चिट्ठी भेजकर शायरा को तीन बार तलाक कह दिया।
शायरा का कहना है कि शादी के पहले से ही दिन रिजवान उस पर अत्याचार करने लगा। अप्रैल 2०15 में पति रिजवान ने तीन बार तलाक कहकर शायरा से नाता तोड़ लिया। शायरा ने यह भी आरोप लगाया है कि उसके शौहर ने उसका छह बार जबरन अबॉर्शन करवाया है और वह उस पर गर्भनिरोधक गोलियां खाने के लिए भी दबाव बनाता था। शादी के 15 साल बाद ये रिश्ता तब टूटा, जब उसके घर तलाकनामा पहुंचा। शायरा की सुप्रीम कोर्ट से मांग है कि उसे अपने भरण-पोषण दो बच्चों की कस्टडी चाहिए।
सोशलॉजी से ग्रेजुएट शायरा न्याय के लिए अड़ी हुई है। वह खुलकर कहती है कि इस्लाम धर्म में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को बेहद कम अधिकार दिए गए हैं। उनके मुताबिक जब शादी सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में तमाम रस्मों व दूल्हा और दूल्हन की रजामंदी के बाद ही पूरी मानी जाती है तो तलाक सिर्फ पुरूषों को अकेले में भी तीन बार बोलकर या लिखकर कह देने से क्यों मान लिया जाता है। यह बहुत वाजिब सवाल है।
सुप्रीम कोर्ट में 23 फरवरी, 2०16 को दायर याचिका में शायरा ने गुहार लगाई कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के तहत दिए जाने वाले तलाक-ए-बिद्दत यानि तिहरे तलाक, हलाला और बहु-विवाह को गैर-कानूनी और असंवैधानिक घोषित किया जाए। यहां बता दें कि शरीयत कानून में तिहरे तलाक को मान्यता दी गई है, इसमें एक ही बार में शौहर अपनी पत्नी को तलाक-तलाक-तलाक कहकर तलाक दे देता है।
अफरीना केस "Afreena Case"
शायराबानों के बाद 28 वर्षीया आफरीन है, जो इस तरह तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार, महिला आयोग समेत सभी पक्षों को इस मामले में नोटिस भेजकर जवाब मांगा। आफरीन का आरोप था कि शादी के बाद से ही उनको दहेज के लिए ताने दिए जाते थे, जो बाद में मारपीट में बदल गया। आफरीन की शादी 24 अगस्त 2०14 को इंदौर के सैयद असार अली वारसी से हुई थी। 17 जनवरी, 2०16 को शौहर ने स्पीड पोस्ट से तीन बार तलाक लिखकर भेज दिया।
फेसबुक, ई-मेल, फोन व स्काईप पर भी रहे हो तलाक
इन दिनों तो तलाक फेसबुक, ई-मेल, स्काईप और फोन के द्बारा दिया जाने लगा है। इन सबसे पुरुषा को तो कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर महिलाओं की स्थिति खराब हो जाती है। वह भावनात्मक और आर्थिक रूप से टूट जाती है। शौहर बच्चों का उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहता। यह सब नियम महिलाओं के खिलाफ है और उनके अधिकार से वंचित रखते हैं।
महिलाओं को गुलाम बनाए रखने के तरीके
उत्तराखंड की शायरा और जयपुर की आफरीन के अलावा भी ऐसे कई केस सामने आए हैं, जो तीन तलाक की शिकार हुई हैं। उन्हें न तो मेहर की रकम ही मिली और न भरण पोषण। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में शायरा के वकील बालाजी श्रीनिवासन Lawyer "Balaji Shrinivasan" ने कहा कि इस याचिका में शरीयत के दकियानूसी कानूनों को चुनौती दी गई है। इसलिए हंगामा हो रहा है। हमने याचिका में कुछ ठोस कानूनी मामलों का जिक्र किया है, जिससे यह साबित होता है कि तिहरा तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह किस तरह से मुस्लिम औरतों को गुलाम बनाए रखने के तरीके हैं। साथ ही, इस तरह के मामलों में आए कुछ मिसाल बने फैसलों का भी जिक्र किया है, जो शायरा के केस में मददगार साबित हो सकते हैं। कुछ ऐसे विशेषज्ञों की टिप्पणियों और चर्चित सर्वे को भी दर्ज किया है, जो इस ओर इशारा करते हैं कि इस तरह की प्रथाएं मुस्लिम औरतों पर एक तरह से हिसा करने का एक जरिया बनी हुई हैं।
22 मुस्लिम देश खत्म कर चुके हैं तीन तलाक
इस संबंध में सोचने वाली बात यह भी है कि तकरीबन 22 मुस्लिम देश, जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं, अपने यहां सीधे-सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से तीन बार तलाक की प्रथा खत्म कर चुके हैं। इस सूची में तुर्की और साइप्रस भी शामिल हैं, जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष पारिवारिक कानूनों को अपना लिया है। ट्यूनीशिया, अल्जीरिया और मलेशिया के सारावाक प्रांत में कानून के बाहर किसी तलाक को मान्यता नहीं है। ईरान में शिया कानूनों के तहत तीन तलाक की कोई मान्यता नहीं है। कुल मिलाकर यह अन्यायपूर्ण प्रथा इस समय भारत और दुनियाभर के सिर्फ सुन्नी मुसलमानों में बची हुई है।
तीन तलाक की शबाना आजमी ने की आलोचना
अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकताã शबाना आजमी ने भी तीन तलाक प्रथा की आलोचना की। शबाना आजमी ने कहा कि तीन तलाक अमानवीय प्रथा है और मुस्लिम महिलाओं के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करता है। महिला मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाली नाइस हसन कहती हैं कि शाहबानों के समय मुस्लिम महिलाएं अपने हक को लेकर उतनी मुखर और तैयार नहीं थी, जितनी अब हैं।
महिलाएं सड़क पर उतर रही हैं। तीन तलाक से मुक्ति का नारा बुलंद है और उतनी ही बुलंद है महिलाओं की इच्छाशक्ति। बात मात्र इतनी है कि परंपराओं के नाम पर हम गलत प्रथा का त्याग करेंगे। स्वस्थ समाज के लिए गलत परंपराओं को त्यागना ही उचित है। मुद्दा तलाक हो या कोई अन्य बुराई। लॉ कमिशन ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन ताहिर महमूद ने इंडियन एक्सप्रेस "Indian Express" में लिखा था कि तीन तलाक की जगह एक तलाक भी हो तो भी व्हाट्सऐप, ई-मेल से तलाक देने की बीमारी रह ही जाएगी, इसलिए एकतरफा तलाक की प्रक्रिया समाप्त होनी चाहिए। मर्द की मर्जी से न होकर औरत-मर्द दोनों की रजामंदी से तलाक हो। यही उचित है।
क्या है तीन तलाक "Kya Hain Teen Talaq"
-इस्लाम में तलाक के तीन तरीके प्रचलित हैं। पहला है, तलाक-ए-अहसन। इस नियम के अनुसार तलाक-ए-अहसन में शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है, जब उसका मासिक चक्र न चल रहा हो (तूहरा की समयावधि)। इसके बाद तकरीबन तीन महीने की समयावधि, जिसे इद्दत कहा जाता है, में वह तलाक वापस ले सकता है। यदि, ऐसा नहीं होता तो इद्दत के बाद तलाक को स्थायी मान लिया जाता है, लेकिन इसके बाद भी यदि यह जोड़ा चाहे तो भविष्य में शादी कर सकता है और इसलिए इस तलाक को अहसन (सर्वश्रेष्ठ) कहा जाता है।
दूसरे प्रकार के तलाक को तलाक-ए-हसन कहा जाता है। इसकी प्रक्रिया की तलाक-ए-अहसन की तरह है, लेकिन इसमें शौहर अपनी बीवी को तीन अलग-अलग बार तलाक कहता (जब बीवी का मासिक चक्र न चल रहा हो) है। यहां शौहर को अनुमति होती है कि वह इद्दत की समयावधि खत्म होने के पहले तलाक वापस ले सकता है। यह तलाकशुदा जोड़ा चाहे तो भविष्य में फिर से शादी कर सकता है। इस प्रक्रिया में तीसरी बार तलाक कहने के तुरंत बाद वह अंतिम मान लिया जाता है। तलाकशुदा जोड़ा फिर से शादी तब ही कर सकता है, जब बीवी किसी दूसरे व्यक्ति से शादी कर ले और उसे तलाक दे। इस प्रक्रिया को हलाला कहा जाता है।
तीसरे प्रकार को तलाक-ए-बिद्दत कहा जाता है, इसमें तलाक की उस प्रक्रिया की बुराइयां साफ-साफ दिखने लगती हैं, जिसमें शौहर एक बार में तीन तलाक कहकर बीवी को तलाक दे देता है। तलाक-ए-बिद्दत के तहत शौहर तलाक के पहले 'तीन बार’ शब्द लगा देता है या 'मैं तुम्हें तलाक देता हूं’ को तीन बार दोहरा देता है। इसके बाद शादी तुरंत टूट जाती है। इस तलाक को वापस नहीं लिया जा सकता। तलाकशुदा जोड़ा फिर हलाला के बाद ही शादी कर सकता है।
कहते हैं कि तलाक-ए-बिद्दत या एक साथ तीन बार तलाक कहकर तलाक देने की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई थी कि जहां जोड़े के बीच कभी न सुधरने की हद तक संबंध खराब चुके हैं या दोनों का साथ रहना बिल्कुल मुमकिन नहीं है वहां तुरंत तलाक हो जाए।
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