पीछे छूटा 'चीन’


 Indian Economy( Bhartiya Aarthviwstha In Hindi)   
 'भारत India की अर्थव्यवस्था’ Economy ने विकास की रफ्तार के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है। इस चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 'सकल घरेलू उत्पाद’(GDP) की वृद्धि दर 8.2 फीसदी रही, इसी समयावधि में चीन China की वृद्धि दर 6.7 फीसदी ही रही। भारत की इस मजबूत अर्थव्यवस्था का आधार विनिर्माण और कृषि क्ष्ोत्र रहा है। इन दोनों क्ष्ोत्रों के बेहतर प्रदर्शन की बदौलत ही इस तिमाही में भारत 'चीन’ को भी पीछे छोड़ने में कामयाब हुआ है। इस कामयाबी के बाद भारत दुनिया की ऐसी अर्थव्यवस्था बन गई है, जो सबसे तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है।  'नोटबंदी’, 'जीएसटी’ GST जैसे नए प्रयोगों के बाद ऐसा लग रहा था कि देश में 'आर्थिक मंदी’ का असर लंबे समय तक बना रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भारत चीन जैसे देश को पीछे छोड़ने में कामयाब हुआ है। 'अर्थव्यवस्था’ में इस तरह की ऊंची छलांग देश के लिए तो अच्छी खबर है ही, लेकिन 'राजनीतिक परिपेक्ष्य’ में देख्ों तो केंद्र में मोदी सरकार के लिए और भी अच्छी इसीलिए है, क्योंकि अगले साल 2०19 में आम चुनाव होने हैं और विपक्ष सरकार को नोटबंदी, जीएसटी और राफेल डील में घालमेल करने जैसे मुद्दों पर घ्ोरने की रणनीति बना रही है। समय-समय पर सरकार को इन मुद्दों पर घ्ोरे जाने का भी काम होता रहा है। अब जब अर्थव्यवस्था की रफ्तार ने अच्छी छलांग लगाई है तो 'बीजेपी’ के पास विपक्ष की इस काट का जवाब होगा कि नोटबंदी, जीएसटी आदि का अर्थव्यवस्था पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है। अगर, बुरा प्रभाव पड़ता तो देश की अर्थव्यवस्था 8 फीसदी से अधिक की ग्रोथ रेट के साथ आगे नहीं बढ़ती। 


 'जीडीपी ग्रोथ’ GDP growth को 'मैन्युफैHिरिंग Manufacturing सेक्टर’ से अच्छा बूस्ट मिला है। अप्रैल से जून के दौरान मैन्युफैHिरिंग Manufacturing सेक्टर की ग्रोथ बढ़कर 13.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। वहीं, कृषि क्ष्ोत्र भी इस मामले में तेजी से उभरा है। ग्रोथ बढ़कर पांच फीसदी से ऊपर चली गई है, जो पिछले वर्षों में चार फीसदी या इससे नीचे ही रहती थी। उधर, तमाम बाध्यताओं के बाद भी कंस्ट्रक्शन सेक्टर भी बेहतर स्थिति में उभकर सामने आया है। इस सेक्टर की ग्रोथ में 8.7 फीसदी की अच्छी-खासी वृद्धि हुई है। यही वजह रही है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अर्थव्यवस्था ने ऊंची छलांग लगाई है। विपरीत परिस्थतियां सब जान रहे हैं। 
रुपया नीचे गिर रहा है, डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों से भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार में असर दिखाई दे रहा था। 'अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी’ 'मूडीज’ 'International rating agency' 'Modise' ने गत 23 अगस्त को जारी आकड़ों से अनुमान लगाया था कि भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 फीसदी तक रह सकती है। मूडीज ने रुपए के कमजोर होते जाते और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि के तहत यह कहा था कि भारत को इन मुश्किल हालतों से उभरना मुश्किल हो जाएगा। आरबीआई को भी यह उम्मीद नहीं थी कि भारत अर्थव्यवस्था की दौड़ में इतना अच्छा प्रदर्शन करेगा। जब 'आरबीआई’ ने 2०17 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की तो उसमें अनुमान लगाया गया था कि चालू वित्त वर्ष में विकास दर 7.4 तक रह सकती है, लेकिन ये सब अनुमान पीछे छूट गए।
 चीन को पीछे छोड़ने से पहले भारत ने 2.6 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के साथ 'फ्रांस’ को पीछे छोड़ दिया था और दुनिया की पांचवी सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था बन गई थी। इसका आने वाले दिनों में और फायदा होगा, क्योंकि निवेश बढ़ेगा तो अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के और आयाम हमारे समक्ष होंगे। अभी जो अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई है, वह भी निवेश में वृद्धि का ही नतीजा है। टैक्सटाइल, इंजीनियरिंग से लेकर रसायन, खाद्य प्रसंस्करण आदि क्ष्ोत्रों में निवेश बढ़ा है। अब चुनौती इस बात की रहेगी कि इस रफ्तार को बरकरार रखा कैसे जाए? अगर, सरकार ऐसा चाहती है कि जीडीपी की रफ्तार 8 फीसदी या उससे अधिक बनी रहे तो इसके लिए उन क्ष्ोत्रों को आईडेंटीफाई करना होगा, जहां निवेश घटा है और वहां आर्थिक रूप से स्थिति खराब है, उद्योग संघर्ष कर रहे हैं। इसमें मझौले उद्योगों की संख्या ज्यादा है।  खासकर, नोटबंदी और जीएसटी के लागू होने से बहुत से ऐसे उद्योग बंद हुए हैं। इसका उद्योगों को तो नुकसान हुआ ही है बल्कि रोजगार भी खत्म हुए हैं। सरकार को यह सोचना होगा कि आखिर रोजगार क्यों घट रहे हैं ? स्टार्ट अप आदि योजनाएं तात्कालिक तौर पर सफल नहीं हो सकती हैं। इनको स्थापित होने में वक्त लगता है तो निश्चित ही रोजगार जनरेट करने की प्रक्रिया भी घटती है। ऐसा भी नहीं है कि रोजगार की जो दरकार है, वह सब इन स्टार्ट अप योजनाओं से पूरी हो जाएगी। ऐसे में, सरकार यह कोशिश करे कि प्रभावित उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करे। उन्हें कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है, इस पर गंभीरता से विचार करे। उद्योगों में बैकिंग ऋण आदि की प्रक्रिया भी लंबे समय से ठप पड़ी हुई है। इस पर भी सरकार जरूरी कदम उठाने की कोशिश करे। 
जहां तक अर्थव्यवस्था की रफ्तार के परिपेक्ष्य में आम आदमी का सवाल है। उसे सरकारी आकड़ेबाजी से बहुत ज्यादा मतलब नहीं है, बल्कि वह तो यही जानता है कि आम चीजें महंगी क्यों हो रही हैं ? खासकर, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि होने से ही अन्य चीजें भी महंगी हो चलती हैं, जिसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ता है। सरकार केवल इस बात से अपनी पीठ न थपथपाए की जीडीपी की विकास दर बढ़ी है, लेकिन लोगों की मूलभूत आवश्कताओं की चीजों की कीमत में बेतहाशा वृद्धि पर भी रोक लगाने का उपाय खोजे। 


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