हर रूप ने मोहा 'मन’ Her Roop Ne Moha Man (Lord Krishna)
Lord Khrishna Birthday Article In hindi
'भगवान श्रीकृष्ण’ "Bhagwan Krishna" के जन्मोत्सव को लेकर हर तरफ उल्लास है। खास तरीके से मंदिरों को सजाया गया है। कहीं फूलों की कलाकारी की गई है तो कहीं छप्पन भोग लगाकर कान्हा को सजाया गया है। तरह-तरह की रंगोली भी इस उत्सव में चार चांद लगा रही हैं। इस उत्सव का विश्ोष महत्व लोग जानते हैं, क्योंकि 'श्रीकृष्ण’ ऐसे भगवान हैं, जिन्होंने कई आयामों को अपने जीवन दर्शन से प्रतिपादित किया। वह एक थ्ो, लेकिन उनके रूप अनेक थ्ो। वह जिस भी रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत हुए, उस रूप ने सबका मन मोह लिया। 'महाभारत’ में अपने कई स्वरूपों और 'गीता "Geeta" के उपदेशक’ के रूप में, अपने मामा 'कंस’, 'पूतना’ आदि राक्षसी वृत्रियों का दमन करने वाले, 'यशोदा’ के आंगन में किलकारी भरने वाले तो उधर, इंद्र का मान मर्दन करने के लिए 'गोवर्द्धन पर्वत’ को अपनी उंगुली पर धारण करने वाले श्रीकृष्ण 'कालिया नाग’ के विष से प्रदूषित हुई 'यमुना’ के उद्धारक भी हैं। 'द्बारिकाधीश’ के रूप भी उनकी भूमिकाएं कई और रूपों में सामने आईं, लेकिन श्रीकृष्ण की जो सबसे प्यारी और मनमोहक छवि लोगों को लुभाती है, वह 'गोपाल’ के रूप में है। लोग उन्हें गोपाल के रूप में अधिक प्यार करते हैं, क्योंकि वह नटखट हैं। उनकी नटखट हरकतें परेशान करने वाली नहीं होती हैं, बल्कि मन-मोहने वाली होती हैं। 'गोपी-गोपियों’ के संग गाय चराना, कंदब की डाली पर बैठकर बांसुरी की धुन से गायों के झुंड को अपने पास बुलाना, गोपियों की मटकी फोड़ना, उनके घरों से अपने दोस्तों संग 'माखन’ चुराना और गोपियों को रिझाने की नई-नई तरकीबें खोजना बाल कृष्ण के ऐसे रूप हैं, जो आज भी लोगों के जेहन में उसी रूप में हैं, जिस रूप में तब थीं, जिस युग में भगवान कृष्ण अवतरित हुए थ्ो।
बचपन में उनके जीवन दर्शन में जितनी सरलता व नटखटपन था, बड़े होने पर उतनी जटिलता भी देखने को मिली। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण के साथ लोगों के अलग-अलग अनुभव भी दिखाई देते हैं। किसी के लिए वह भगवान हैं तो किसी के लिए चतुर भी हैं, कोई उनके अंदर प्रेमी के दर्शन करता है तो किसी को उनके इस रूप में लड़कपन भी नजर आता है। ऐसा इसीलिए है कि क्योंकि उनके आयाम ही इतने हैं कि उन्हें आसानी से नहीं समझा जा सकता है। उन्हें समझने व जानने के लिए मन में प्रेम होना जरूरी है। वह एक चतुर राजनेता, महायोगी और कर्मयोगी भी हैं। महाभारत 'Mahabharat' में अर्जुन 'Arjun' को उनके द्बारा कर्मण्यता का दिया गया उपदेश इसका उदाहरण है। कर्मण्यता उनके स्वयं के आचरण में भी थी। इसीलिए उन्होंने उस युद्ध जैसे हिंसक मार्ग को अच्छा या कर्म बताया, जो लोक हित और धर्म स्थापना के लिए लड़ा जा रहा हो। श्रीकृष्ण प्रेम का भी संदेश देते हैं और स्त्री रक्षा का भी संदेश देते हैं। 'सुख सागर’ में 'भगवान विष्णु’ के 24 अवतार कहे गए हैं। जिन्हें वराहवतार, नारद, सनकादि, हंसावतार, नर-नरायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभदेव, पृथु, मत्सयावतार, कूर्मावतार, धन्वन्तिर, मोहिनी, ह्यग्रीव, वामन, नृसिंह,गजेन्द्रोधारावतार, परशुराम, वेदव्यास, राम, कृष्ण, बुद्ध व कल्कि नाम दिया गया है। इन सभी 24 अवतारों में कृष्ण का अवतार अकल्पनीय और अद्भुत है। वह श्याम हैं, संुदर हैं, लीलाधर हैं, वह रास भी रचाते हैं, बंसी भी बजाते हैं, अपने मोह में सभी का नचाते भी हैं और अधर्म का नाश करने के लिए शस्त्र उठाने का संदेश भी देते हैं।
वह ऐसे देव हैं, जो स्त्री शक्ति के पालनहार हैं। इसका उदाहरण महाभारत की वह भरी सभा थी, जब कौरवों द्बारा द्रौपती के सम्मान को तार-तार किया जा रहा था। द्रौपती के स्मरण करने पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीला रचकर द्रौपती का वस्त्र बढ़ाकर उनका स्त्रीत्व बचाया। वह भ्रूणहत्या के भी घोर विरोधी थे। इसका भी उदाहरण महाभारत काल में देखने को मिला, जब महाभारत के अंत में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिए ब्रहमास्त्र छोड़ा तो भगवान श्रीकृष्ण ने उस गर्भ की रक्षा की थी। उत्तरा की वह संतान बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने आदर्श प्रेमी होने का भी संदेश इस धरती को दिया। इसका उदाहरण यह है कि उन्होंने स्वयं से पहले राधा को स्थापित किया। इसीलिए लोग भगवान कृष्ण का राध्ो-कृष्णा के रूप में भी स्मरण करते हैं। यह इस धरती को संदेश था कि स्वयं को आगे रखने से पहले स्त्री को आगे रखो, उसे सम्मान दो, बराबरी का हक दो, इससे नारी का सम्मान तो बढ़ेगा ही, बल्कि नारी का आपके प्रति प्रेम भी बढ़ेगा। ऐसा होने पर ही पुरुष का यश भी बढ़ेगा।
भगवान श्रीकृष्ण के ये तमाम ऐसे आयाम हैं, जिनकी प्रांसगिकता तब तक बनी रहेगी, जब तक यह धरती रहेगी। ऐसे समय में, भगवान श्रीकृष्ण का यह जीवन दर्शन अधिक महत्व रखता है, क्योंकि धरती पर प्रेम के बजाय विद्बेष बढ़ रहा है, स्त्रियों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। न्याय की तुलना में अन्याय का पलड़ा अधिक भारी हो जाता रहा है। अन्याय, अपराध और अधर्म की खिलाफत करने का साहस किसी के पास नहीं है। लोग स्वार्थ की अंधी दौड़ में अपने मूल उद्देश्यों से भटक रहे हैं। पाप की सीमाएं इस कदर बढ़ रही हैं कि उसमें पुण्य बौना नजर आने लगा है। हम सब श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े उल्लास के साथ मानते हैं, उनके बालपन को महसूस करने पर हमारे मन में खिलखिलाहट होने लगती है तो उनका महाभारत काल का रूप हमें उन रूपों के दर्शन कराता है, जिसमें धरती पर धर्म की स्थापना के लिए अधर्म का नाश किया जा रहा होता है। हम मन से महसूस करते हैं कि समाज से अधर्म का इसी तरह नाश होना चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि हम स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के उस जीवनदर्शन को अपने जीवन में नहीं उतार पाते हैं। उसका रत्ती भी हम पालन नहीं कर पाते हैं। उनके जीवन दर्शन की उस सीख को भूलने में हम वक्त नहीं लगाते हैं।
अगर, हर साल श्रीकृष्ण जन्मोत्सव उल्लास के साथ आता है और हम उसे उल्लास के साथ मानते हैं तो उससे हमें इस बात की प्रेरणा निश्चित ही लेनी चाहिए कि हम भगवान श्रीकृष्ण के जीवनदर्शन से प्रस्तुत हुए मार्ग को अपनाकर आगे बढ़े, धर्म की स्थापना के लिए समाज से विद्बेष की भावना को उत्पन्न न हो दें, स्वार्थ हित की अंधी दौड़ में ऐसे न शामिल हों, जिसमें दूसरों के हित प्रभावित हो रहे हों, समाज, देश और विश्व की तरक्की के लिए महिलाओं का सम्मान करें और नटखट गोपाल की तरह बच्चे-बच्चियों को प्रेम करें, उन पर इस तरह का बोझ न लाद दें या उनके खिलाफ ऐसे अपराध न कर बैठें कि उनका मासूम मन तड़प उठे। कराह उठे...।
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