शिक्षा, शिक्षक और शिष्य
by bishan papola
आज पांच सितंबर है। इस तिथि का महत्व इसीलिए अधिक है, क्योंकि इस दिन 'शिक्षक दिवस’ "Teachers' Day" मनाया जाता है। यानि शिक्षक और शिष्य के लिए यह दिन विश्ोष महत्व रखता है। जब शिक्षक और शिष्य की बात होती है, तो यह हर व्यक्ति के जीवन को इस महत्व से जोड़ देती है। शिक्षा, शिक्षक और शिष्य के बीच की कड़ी होती है। 'शिक्षक’ "teacher" एक ऐसा माध्यम होता है, जो शिष्य को शिक्षा के तह तक ले जाता है। इसमें महज किताबी ज्ञान नहीं होता है, बल्कि वह ऐसी शिक्षा "Education" भी होती है जो उसके चरित्र का 'नैतिक विकास’ भी करती है। शिक्षक इस मार्ग का मार्गदर्शक होता है। उस पर चलना शिष्य का काम है कि वह उस मार्ग पर अपने जीवन मूल्यों की आधारशिला किस प्रकार रखता है। इसीलिए हर व्यक्ति के जीवन में अगर शिक्षा का महत्व है तो उससे अधिक महत्व शिक्षक का होता है। अगर, हमारे पास शिक्षा तक पहुंचने का मार्ग ही नहीं होगा, कोई मार्गदर्शक ही नहीं होगा तो हम शिक्षा के न तो महत्व को समझ सकते हैं और न ही शिक्षा के माध्यम से किस प्रकार अपने चरित्र का विकास करना है, इसका अवलोकन कर सकते हैं। शिक्षा तभी सार्थक कही जा सकती है, जब वह ज्ञान के साथ-साथ चरित्र का विकास भी करे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी "Mahatma Gandhi" ने कहा था, ''ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण है और अच्छे चरित्र का आधार नैतिकता है यानि कि मानव मूल्यों का समावेश’’। इस परिपेक्ष्य में 'स्वामी विवेकानंद’ "Swami Vivekanand" का कथन भी काफी महत्व रखता है। उन्होंने कहा था, ''जो शिक्षा साधारण व्यक्ति के जीवन को संग्राममय नहीं बना सकती, जो मनुष्य में चरित्र-बल, परहित-भावना तथा सिंह के समान साहस नहीं ला सकती, वह भी कोई शिक्षा है’’? वास्तव में, शिक्षा केवल विविध जानकारियों का ढेर नहीं होना चाहिए, जो शिष्य के दिमाग में भरी जाए, बल्कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों के चरित्र निर्माण में भी सहायक हो, मानसिक रूप से दृढ़ बनाए, मन में मानव मूल्यों का अथाह समावेश भरे, जीवन को उस मुकाम तक पहुंचाए, जहां वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके और मन और मस्तिष्क देश-प्रेम से ओत-प्रोत हो। इसका सीधा-सा तात्पर्य नैतिकता से जुड़ा हुआ है, क्योंकि नैतिकता एक ऐसी चीज है, जो मानवता की एक साझी पूंजी है। यही एक ऐसा माध्यम है, जिसमें कई विपरीत परिस्थितियों के बाद भी निरंतरता बनी रहती है। और व्यक्ति के मन में निरंतरता को बनाए रखने का साहस भी पैदा करती है।
नए दौर में भले ही शिक्षा भी तकनीकी से ओत-प्रोत हो गई हो, लेकिन जीवन में नैतिकता का संबंध कभी खत्म नहीं हो सकता है। यानि जीवन मूल्यों में नैतिकता को ग्रहण करने का तरीका नहीं बदल सकता है, क्योंकि चरित्र निर्माण का संबंध तकनीकी से नहीं है, बल्कि अपने आत्म मंथन से जुड़ा हुआ है। हां, यह जरूर हो सकता है कि शिक्षा क्या उस ओर बच्चों को ले जाने में सहायक हो रही है या नहीं, क्योंकि कोई भी बच्चा नैतिकता की सीढ़ी को स्कूल की दहलीज या फिर शिक्षक के मार्गदर्शन में ही हासिल करता है। जब हम इस बात की उम्मीद करते हैं कि बच्चा नैतिकता के परिपेक्ष्य में भी यूं ही आगे बढ़ता रहे तो जाहिर सी बात है कि उन्हें हमें उस तरह का परिवेश भी मुहैया कराना होगा, शिक्षा स्थलों को इस प्रकार परिमार्जित करना होगा, जिससे हमारे आचरण में नैतिक भावों का आयुर्भाव हो सके, बच्चा नैतिक आचरण की ऐसी धारा में स्वयं को डूबोने को लालयित हो पड़ें, जिसमें अथाह ज्ञान का भंडार तो हो ही, बल्कि उसका मन-मस्तिष्क नैतिक मूल्यों को ग्रहण करने के लिए भी छटपटाए।
शिक्षा का मतलब अनंत है, यानि जिसकी कोई सीमा नहीं होती है। इसमें जीवन को उपयोगी बनाने के लिए ऐसे मूल्यों का समावेश होता है, जिसके आगे अगर हम कुछ देखने और तलाशने की कोशिश भी करें तो वह न हो, क्योंकि शिक्षा शब्द ही समग्र है। उसमें शिक्षक भी आता है और शिष्य भी आता है। ज्ञान भी आता है और जीवन मूल्यों का समग्र विकास भी आता है। इसमें हम चरित्र के नैतिक विकास के पहलुओं को भी जोड़ सकते हैं। तभी व्यक्ति को सर्वांगीण कहा जा सकता है। किसी भी राष्ट्र के लिए सर्वांगीण व्यक्ति की उत्पत्ति तब ही हो सकती है, जब हम शिक्षा के इस परिपेक्ष्य को समझेंगे। शिक्षा का महज एक ही उद्देश्य नहीं होना चाहिए कि हमने आकड़ों का ज्ञान हासिल कर लिया है, किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में टॉप कर लिया है और हम ज्ञान के भंडार को हासिल करने के बाद ऊंचे ओदहे पर पहुंच गए हैं, लेकिन जब तक हम चरित्र का नैतिक विकास नहीं करेंगे, तब तक राष्ट्र के विकास की कल्पना नहीं सकते हैं। राष्ट्र के विकास का तथ्य समावेशी विकास से है, जिसका संबंध हर व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। हम ज्ञान के भंडार को अर्जित करने के साथ-साथ जीवन को नैतिक मूल्यों में उत्तम बनाते हैं तो इससे स्वयं के साथ-साथ राष्ट्र की आधारशिक्षा भी मजबूत होगी।
इसके लिए जरूरी है कि सरकार ऐसी शिक्षा पद्बति पर जोर दे और स्कूल संचालक शिक्षा के हर पहलू को स्थापित करने पर बल दें और शिक्षक शिक्षा रूपी समग्र पहलुओं में पारंगत हो और शिष्य शिक्षक की इस पारंगता को स्वयं के जीवन में लागू करने के लिए तत्पर हो। तभी हम डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन के सपनों को साकार करने में कामयाब हो पाएंगे।
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