जल्दबाजी से नहीं बनेगी "बात"

    hindi article on  Ram janam bhoomi-Babri Masjid vivad
  देश की सर्वोच्च अदालत supreme court ने अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है। इस प्रकरण की सुनवाई जनवरी में होगी या फरवरी में होगी या फिर मार्च में। इसको लेकर कोई स्पष्ट स्थिति नहीं है। हां, इतना जरूर है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जनवरी तक कुछ भी नहीं करेगा। भले ही, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) Ranjan Gogoi ने महज तीन मिनट में मामले को जनवरी तक टाले जाने का आदेश दिया, लेकिन इसके बाद राजनीतिक सरगर्मी जिस प्रकार तेज हो गई है, उससे लगता है कि आने वाले दिनों में यह और भी गरम मुद्दा बनाने वाला है, क्योंकि अगले साल चुनाव होने हैं। भले ही, मामले में सुनवाई लोकसभा चुनावों से पहले शुरू जाए, लेकिन यह मुद्दा चुनावी बैकग्राउंड बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है। 


 सर्वोच्च न्यायालय द्बारा मामला टाले जाने के बाद, जिस तरह की बयानबाजी हो रही है, उससे लगता है कि लोगों में ध्ौर्य की कमी है। वे अदालत के फैसले तक का इंतजार नहीं करना चाहते हैं। बकायदा, हिंदू संगठन, सरकार पर इस बात के दबाव बनाने लगेेे हैं कि सरकार अलग से कानून लाए और अध्योध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ करे। भले ही, संगठनों की ऐसी राय है, लेकिन वास्तविकता में देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट में मामला पेडिंग होने की स्थिति में इस तरह से कानून लाना किसी भी प्रकार से आसान नहीं होगा। अगर, ऐसा होता है तो निश्चित ही इसे न्यायायिक प्रक्रिया में दंखलअंदाजी माना जाएगा। ऐसी स्थिति में किसी रास्ते की उम्मीद की जा सकती है तो वह सिर्फ पक्षकारों की आपसी सहमति से ही की जा सकती है, पर ऐसा मौका आएगा, ऐसा नहीं लगता है। 
दूसरा महत्वपूर्ण मामला यह है कि भले ही यह मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के लिए महत्व रखता हो। अलग-अलग समुदायों के लिए महत्व रखता हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के लिए तो यह मुद्दा अन्य मुद्दों की तरह ही है, इसीलिए वह मामले में किसी भी प्रकार से जल्दबाजी नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट को संविधान के दायरे में रहकर काम करना है, लिहाजा इस बात को लेकर किसी भी पक्ष को अर्नगल चीजों पर फोकस नहीं करना चाहिए। अगर, सरकार कानून लाकर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर भी देती है तो इसके बाद तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है। ऐसे में, कोशिश यही की जानी चाहिए कि हम सभी को अदालत की प्रक्रिया पर विश्वास करना चाहिए। और सरकार भी इस स्थिति से बचने की ही कोशिश करेगी, क्योंकि सरकार का काम सामाजिक सद्भाव को बनाए रखना है। 
 भारत अलग-अलग धर्म-सम्प्रदायों से मिश्रित देश है। सभी के धर्म व आस्थाएं अलग-अलग हो सकती हैं। राजनीतिक पार्टियों की भी आस्था किसी धर्म व सम्प्रदाय विश्ोष से हो सकती है, क्योंकि उसे अपना राजनीतिक हित साधना होता है, लेकिन क्या हमारे लिए भारतीयता सबसे ऊंची चीज नहीं होनी चाहिए? जिस पर अगर कोई चीज लागू होती है तो वह है संविधान। संविधान के तहत बनाए गए नियम-कानून। सर्वोच्च अदालत के लिए यह मायने नहीं रखता है कि राम मंदिर और बाबरी मजिस्द से किसकी आस्था जुड़ी है और किसकी नहीं जुड़ी है। उसे तो संविधान के दायरे में रहकर ही काम करना होता है। तभी यह देश एकरूपता को लेकर आगे बढ़ सकता है। इतने वर्षों में देश की अस्मिता इसीलिए बची हुई है कि भारत अलग-अलग धर्म-सम्प्रदाय वाला देश होने के बाद भी अपनी अखंडता को बनाए हुए है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में संविधान में प्रदत्त कानूनों का राज है। संविधान की दृष्टि में सब बराबर हैं। 
 लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि में यह मुद्दा महज एक जमीन विवाद से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर न्यायालय की भूमिका संविधान के तहत सीमित है। उसका किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसी पस्थितियों में अधिक उतावलापन दिखाने से बेहतर है कि हम सभी न्यायालय के आदेश का इंतजार करें, क्योंकि इसके बाद किसी भी पक्ष के पास इस बात की तस्दीक नहीं रहेगी कि आखिर, उसे इंसाफ मिला या नहीं। क्योंकि, दोनों पक्षकार इस बात पर सहमत रहे हैं कि अदालत का जो भी फैसला आएगा, वह हमें मान्य होगा। इतने लंबे समय से प्रकरण को लेकर इंतजार चल रहा है तो कुछ महीनों का और इंतजार करना गलत नहीं होगा। इससे देश में न्यायालय पर भरोसा करने की जो पृथा है, वह भी बरकरार रहेगी। 



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