भारत-जापान संबंधों का "मतलब"


  India-Japan Relations in hindi
 13वां भारत-जापान शिखर सम्मेलन संपन्न हो गया है। दोनों देशों के दृष्टिकोण से यह सम्मेलन काफी सफल रहा। भारत-जापान शुरू से ही परस्पर सहयोगी देश रहे हैं। लिहाजा, इस सम्मेलन में दोनों देशों के बीच किए गए छह बड़े समझौते कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित होंगे। इस दौर में आर्थिक और सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की जो दरकार दुनिया में दिख रही है, उस परिपेक्ष्य में भारत और जापान के बीच हुए समझौते बेहद कारगर साबित होंगे। 75 अरब डालर के बराबर विदेशी मुद्रा की अदला-बदली की व्यवस्था पर किए गए करार से निश्चित ही रुपए की विनियम दर तथा पूंजी बाजारों में बड़ी स्थिरता बनाए रखने में काफी मदद मिलेगी। यह दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने का मार्ग तो है ही बल्कि परस्पर सहयोग की भावना और विविधता में भी इजाफा होगा। 

Indian PM Narendra Modi and Japanese PM Shinzo Abe  
  दुनिया में भारत और जापान के रिश्तों का भले ही उतनी चर्चा नहीं होती है, लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों देशों के बीच मित्रता का लंबा इतिहास है। यह आर्थिक और सुरक्षा तंत्र के मेलजोल से पहले आध्यात्मिक सोच में समानता और मजबूत सांस्कृतिक संबंधों एवं सभ्यागत रिश्तों पर भी आधारित है। इसी का नतीजा है कि दोनों देश वर्तमान परिस्थति को समझते हुए ढांचागत, आर्थिक और सुरक्षा तंत्र को आपसी सहयोग की भावना से आगे बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। दोनों देशों ने जिस प्रकार पुराने संबंधों की विरासत को जोड़ कर रखा है, वह अपने-आप में नायाब है, क्योंकि यह विरासत 5०-1०० साल पुरानी नहीं है बल्कि 14०० वर्ष पहले भारत और जापान के बीच शुरू हुए सभ्यागत संपर्कों के बाद संबंधों में परस्परता बनी हुई है। भगवान बुद्ध और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के माध्यम से भी भारत-जापान का गहरा संबंध रहा है। जापान की संस्कृति पर भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। 
 वहीं, जब भारत अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था तो जापान की शाही सेना ने सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज को सहायता प्रदान की थी। आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के मेलजोल का यह भाव आगे और नए स्वरूप में देखने को मिला, जिसके तहत आर्थिक सहयोग व निवेश की संभावनाओं को बल मिला। भारत के आर्थिक इतिहास में परिवर्तनकारी विकास 199० के दशक के पूर्वार्द्ध में आया, जब भारत ने सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन को निवेश की अनुमति दी, जिससे ऑटो मोबाइल क्ष्ोत्र में क्रांति आ गई। यह स्थिति आज तक बनी हुई है। इस बार हुए समझौतों से इस तरह की स्थिति और प्रगाढ़ हुई। भारत में भले ही स्वरोजगार की तरफ जोर दिया जा रहा हो, लेकिन रोजगार की दरकार कम होने के बजाय बढ़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण युवाओं की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होना है, इसीलिए भारत को युवाओं को देश कहा जाता है। लिहाजा, युवाओं को रोजगार मुहैया कराना सरकार के सामने बुहत बड़ी चुनौती है। ऑटो मोबाइल सेक्टर, इंफ्रास्ट्रHर से लेकर कुछ ऐसे क्ष्ोत्र हैं, जिसके माध्यम से बेरोजगारी की समस्या को कम किया जा सकता है। जापान इस मामले में भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों से जापान ने भारत को इस मामले में काफी योगदान दिया है, जिसमें ऑटो मोबाइल और मेट्रो ट्रेन की बहुत बड़ी भूमिका है। अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना भी इसका बहुत बड़ा प्रमाण है। यहां बता दें कि जापान ने 17 अरब डॉलर ०.1 फीसदी की ब्याज दर के साथ भारत को दिया है, जो भारत ने 5० वर्षों में चुकाना है। यह परियोजना भारत की आर्थिक तस्वीर को बदलने में काफी मददगार साबित होगी।
 सुरक्षा निर्भरता के मामले में आज भारत और जापान विकल्पों की खोज में हैं। जहां जापान अमेरिकी सुरक्षा निर्भरता से बाहर आना चाहता है, वहीं भारत परमाणु क्ष्ोत्र में अमेरिकी दबदबे का विकल्प तलाश रहा है। यह एक ऐसी परिस्थिति है, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे पर निर्भरता को बढ़ाने की मंशा रखते हैं। जापान हार्डवेयर के क्ष्ोत्र का अग्रणी देश है तो भारत सॉफ्टवेयर का बड़ा बादशाह है। लिहाजा, नए दौर के इन दो महत्वपूर्ण क्ष्ोत्रों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने से दोनों देश अपने आर्थिक तंत्र को बेहद मजबूत कर सकते हैं। भारत जिस तरह बड़े बाजार के रूप में उभरा है। जिस पर चीन का बहुत बड़ा कब्जा है, वहीं जापान इस सच्चाई को समझता है, लिहाजा वह भारत की संभावनाओं को जानता है। चीन के मुकाबले वह इन संभावनाओं को अधिक फायदा उठा सकता है, क्योंकि इसके पीछे भारत-जापान के मैत्रीपूर्ण संबंध कारगर तो साबित हो ही सकते हैं, बल्कि चीन की भारत विरोधी नीतियां भी उसके लिए मददगार साबित हो सकती हैं। 
 दूसरा, चीन भारत की तरह ही जापान के लिए भी बड़ी समस्या बना हुआ है। भारत की तरह ही जापान भी चीन के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है। चीन जिस तरह से भारत के साथ नौटंकी करता है, उसी प्रकार जापान के साथ भी शातिराना चाल चलता रहता है। ऐसे में, भारत के साथ-साथ जापान भी चीन की दूरगामी सामरिक और आर्थिक नीति के बारे में संशकित रहता है। दूसरा, चीन का पाकिस्तान जैसे आंतकवादी समर्थक देश के साथ परस्पर संबंधों को बढ़ाना भी भारत-जापान एकता को मजबूत करने का बड़ा आधार साबित हो रहा है, क्योंकि आंतकवाद एक ऐसा मुद्दा है, जो दुनिया भर के लिए चिंता का विषय तो है ही बल्कि इससे एशिया के भविष्य को लेकर भी खतरा बना हुआ है, लेकिन भारत और जापान एशिया के भविष्य को लेकर एकमत हैं। दोनों देशों के बीच इन संबंधों को बनाए रखना आवश्यक है, तभी चीन और पाकिस्तान की मिलीभगत को मुंहतोड़ जबाब दिया जा सकता है। 


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