दीपावली: बारुदी धुएं में कम न होने दें दीयों का उजाला


  Deepawali का पर्व हो और लोग Patake न छोड़े, ऐसा हो ही नहीं सकता है। दिवाली के जश्न में पटाख्ो छोड़ने का क्रेज खूब देखने को मिलता है, लेकिन इस जश्न के बीच पटाखों से निकलने वाला बारुदी धुआं पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाता है, शायद हम इसके बारे में बहुत कम सोच पाते हैं। इसके पीछे यह सोच समझ में आती है कि दिवाली का त्योहार साल में एक बार आता है, अगर उसमें थोड़े बहुत पटाख्ो छोड़ भी दिए तो कौन-सा पहाड़ टूट जाएगा ?
 जश्न और जतन के बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में संतुलन बैठने का प्रयास किया है। कुछ दिन पूर्व ही सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह रोक लगाने से मना कर दिया, हालांकि इसके लिए कुछ विश्ोष दायरे बना दिए हैं, जिसके तहत पटाख्ो भी बेचे जा सकते हैं और एक निर्धारित समय के तहत पटाख्ो भी छोड़े जा सकते हैं। निश्चित ही लोग इन तरीकों को भी अपनाएंगे तो काफी हद तक प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। 


 पूरी तरह रोक लगाए जाने की स्थिति में उस व्यवस्था को लागू करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि लोगों में जो दिवाली पर पटाख्ो छोड़े जाने की एक पुरानी सोच है, उसको आसानी से कम नहीं किया जा सकता है। दूसरा, पटाखा बनाने से संबंधित कारोबार में बहुत सारे लोग जुड़े हुए हैं। उनकी रोजी-रोटी न छिने इसके मद्देनजर भी सुप्रीम कोर्ट ने मामले में संतुलन बैठने का काम किया है, लेकिन यह निर्भर करता है कि लोग अब परिस्थिति को किस प्रकार लेते हैं। पिछले साल भी इस तरह की स्थिति आई थी, लेकिन उसका बहुत ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। लोगों ने जमकर पटाख्ो छोड़े थ्ो, जिससे पूरा वायुमंडल ही बारुदी धुएं की परत में तब्दील हो गया था। 
लिहाजा, इस संबंध में एक नई सोच विकसित करने की जरूरत है, जिसमें लोग खुद-व-खुद यह सोचने लगें कि हम पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान न पहुुंचाएं। जिस दिन इस तरह की सोच को लोग महत्व देने लगेंगे, निश्चित ही, दिवाली के त्योहार पर पटाखों के धुएं के बजाय दीयों का उजाला अधिक दिखने लगेगा। इस तरह की सोच को महत्व दिए जाने की जरूरत इसीलिए भी है, क्योंकि हम दिवाली पर अधिकांश उत्पाद चाइना के इस्तेमाल करते हैं। चाहे इसमें पटाख्ों हों, लाइटनिंग के दूसरे सामान हों या फिर कोई अन्य चीज। अगर, हम चाइना के उत्पादों से अपने देश का पर्यावरण खराब करें तो यह बात शोभा भी नहीं देती है, क्योंकि हम चीन को और आर्थिक संपन्न कर रहे हैं, जबकि अपने पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। 
 यहां बता दें कि देश में दीपावली के लिए लगभग 15०० करोड़ रुपए के पटाख्ो चीन से आयात होते हैं। इसके अलावा हजारों करोड़ का अन्य सामान भी आयात होता है, जिसकी खपत महज दिवाली के पर्व पर होती है। चाइना के सामान से सभी अवगत हैं। गुणवत्ता के मामले में चाइना का उत्पाद निचले पायदान पर होता है। इसके बाद भी अगर, हम चाइना के उत्पादों को अधिक महत्व दें तो यह बात किसी भी मायने में सही नहीं है।
भारत की बात करें तो देश में भी लगभग 3०००-35०० करोड़ रुपए का पटाखा कारोबार होता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बड़ा कारोबार है। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पटाखा उत्पादक देश है। भारत के तमिलनाडु में एक शिवकाशी नाम की एक जगह है, जहां देश की सबसे बड़ी पटाखा फैक्ट्री है, जहां सालाना 5० हजार टन से अधिक का पटाखा उत्पादन होता है। इससे कम-से-कम सालाना 35० करोड़ से भी अधिक का कारोबार होता है। दिवाली के सीजन में देश भर में कुकुरमुत्तों की तरह पटाखा फैक्ट्रियां खुल जाती हैं। पटाखों से उत्पन्न होने वाले बारुदी धुएं से अगर हम पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं तो हम जश्न के बीच बड़े नुकसान को भी दावत दे रहे हैं। आज, भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लिए बढ़ता प्रदूषण बड़ी समस्या बना हुआ है। दुनिया के अधिकांश देश इस संबंध में काफी प्रयास कर चुके हैं। भारत में भी बढ़ते प्रदूषण को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जिस अनुपात में प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है, उस अनुपात में हमारे द्बारा किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। अंधाधुंध तरीके से पेड़ों का कटान हो रहा है, कंक्रीट के जंगल इस कदर बढ़ गए हैं कि दूर-दूर तक पेड़ों का नामो-निशान देखने को नहीं मिल पा रहा है। सड़कें बनाने के लिए पहाड़ों की छाती खोद-खोदकर इतनी घायल कर दी गई है कि एक ही बरसात में न तो पहाड़ खड़े रह पा रहे हैं और न हीं वे सड़कें, जो पहाड़ों की छाती खोदकर बनाईं जा रही हैं। 
लिहाजा, यह पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए सोचने का वक्त तो है ही बल्कि इसके संरक्षण के लिए मिलकर काम करने का वक्त भी है। हम यह मानकर चलेंगे कि सुप्रीम कोर्ट पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दे। यह अच्छी बात है, लेकिन इससे अच्छी बात यह होगी कि हम सब चीजों के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ देखने के बजाय स्वयं भी जागें और यह मन बना लें कि हम पर्यावरण को कम-से-कम नुकसान पहुचाएं। चाहे वह पटाखा बनाने वाले लोग हों या फिर पटाखा जलाने वाले लोग।




No comments