भारत-रूस संबंधों के मायने
Bharat-Russia Samvandho Ke Maayne
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर Vladimir Putin पुतिन का भारत दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। S-4०० Missile की डील तो खास ही है, बल्कि इसके अलावा भी कई तरह के संदेश पुतिन की इस भारत यात्रा से निकले हैं। अब इस संदेश को वो देश कैसे लेते हैं, जो भारत को तरह-तरह से दबाने की कोशिश में हर वक्त जुटे रहते हैं। चाहे इसमें चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश शामिल हों, या फिर हमारा वर्तमान दोस्त अमेरिका। चीन और पाकिस्तान तो भारत के खिलाफ हमेशा से ही जहर उगलने का काम करते रहते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ संबंधों को नई दिशा मिली है, लिहाजा उससे इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि अगर, भारत रूस के साथ एस-4०० की डील करेगा तो वह भारत के खिलाफ कई तरह के प्रतिबंध लगाने की बात करेगा,क्योंकि हमें हमारी संप्रभुता के साथ-साथ अपनी सामरिक सुरक्षा को मजबूत करने का पूरा अधिकार है। इसमें अगर, कोई तीसरा बोलता है तो उससे लगता है कि वह इस बात की चाहत रखता है कि संबंधित देश हमारे ईशारे पर काम करे। वह अपनी दोस्ती के मायने अपने हिसाब से तय करना चाहता है, जो कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर Vladimir Putin पुतिन का भारत दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। S-4०० Missile की डील तो खास ही है, बल्कि इसके अलावा भी कई तरह के संदेश पुतिन की इस भारत यात्रा से निकले हैं। अब इस संदेश को वो देश कैसे लेते हैं, जो भारत को तरह-तरह से दबाने की कोशिश में हर वक्त जुटे रहते हैं। चाहे इसमें चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश शामिल हों, या फिर हमारा वर्तमान दोस्त अमेरिका। चीन और पाकिस्तान तो भारत के खिलाफ हमेशा से ही जहर उगलने का काम करते रहते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ संबंधों को नई दिशा मिली है, लिहाजा उससे इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि अगर, भारत रूस के साथ एस-4०० की डील करेगा तो वह भारत के खिलाफ कई तरह के प्रतिबंध लगाने की बात करेगा,क्योंकि हमें हमारी संप्रभुता के साथ-साथ अपनी सामरिक सुरक्षा को मजबूत करने का पूरा अधिकार है। इसमें अगर, कोई तीसरा बोलता है तो उससे लगता है कि वह इस बात की चाहत रखता है कि संबंधित देश हमारे ईशारे पर काम करे। वह अपनी दोस्ती के मायने अपने हिसाब से तय करना चाहता है, जो कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।
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Russian President Vladimir Putin & Indian PM Narender Modi During Simmit |
अगर, Indian PM Narender Modi ने रूस के साथ एस-4०० जैसी डील की है तो यह अमेरिका के लिए संदेश है कि उसकी दोस्ती हमें स्वीकार है, लेकिन वह हमारी संप्रभुता और समारिक सुरक्षा को कैसे चलाना है, उस पर हमें किसी भी प्रकार की सीख न दे। हम जानते हैं कि इस दौर में हमारी चुनौतियां क्या हैं ? चीन और पाकिस्तान जैसे देश मिलकर भारत के खिलाफ जिस तरह की खुराफात करते हैं, वह काफी अखरता है। ऐसे में, भारत इस नजाकत को समझते हुए अपनी सामरिक ताकत को बढ़ाने का काम कर रहा है तो यह वक्त की महत्वपूण जरूरत है। दूसरा, यह दुनिया के साथ-साथ स्वयं भारत को यह भान कराने के लिए काफी महत्वपूर्ण है कि चाहे हम दुनिया में कितने ही दोस्त क्यों न बना लें, लेकिन रूस हमारा ऐसा दोस्त है, जो हर मुश्किल वक्त में भारत के साथ खड़ा रहा है। उसकी भारत के प्रति जो विश्वसनीयता है, वह भारत को मुकाबले में और मजबूत करता है। पिछले सात दशकों में इस तरह के कई मौके सामने आए हैं, जब रूस और भारत के बीच विश्वसनीयता की डोर सिद्ध हुई है। ऐसे पारंपरागत दोस्त को हमेशा साथ बनाकर रखना चाहिए। हम अमेरिका के साथ दोस्ती जरूर करें, लेकिन रूस को न भूलें। हमें अमेरिका के पिछले इतिहास को समझना होगा, क्योंकि चीन से पहले अमेरिका ही वह देश था, जिसने पाकिस्तान को पालने-पोषने का काम किया। वह बड़े स्तर पर पाकिस्तान को फंड मुहैया कराता था, जिसके बल ही पाकिस्तान हमेशा भारत के खिलाफ भौंकने का काम करता रहा है। उसी फंड से वह सीमा पार आंतकियों की ऐसी मंडी तैयार करता रहा, जो भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम देता रहा है। अमेरिका को तब आंतकवाद का असली चेहरा समझ में आया, जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आंतकी हमला हुआ, उसके बाद वह पाकिस्तान से न केवल नफरत करने लगा, बल्कि अपना झुकाव भारत की तरफ भी बढ़ाने का प्रयास भी करने लगा। यह अच्छा है कि अमेरिका जैसा देश भी आज भारत के साथ है, लेकिन रूस की जो बात है, उसे कभी भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
1965 की बात है, जब भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में हराया था। उस वक्त रूस के कहने पर भारत ने ताशकंद समझौता किया, इसके कुछ समय पहले 1० वर्षों के लिए भारत और रूस में यह समझौता हुआ था कि अगर, भारत पर कोई दूसरा देश आक्रमण करेगा तो रूस भारत की मदद करेगा। 1965 और 1971 की दोनों भारत-पाकिस्तान युद्धों में रूस ने संयुक्त राष्ट्र परिषद् में दो बार अपने वीटो के अधिकार का भारत के पक्ष में खुलेआम इस्तेमाल किया। 1971 के युद्ध में जब अमेरिका ने अपना सातवां जंगी बेड़ा भारत के विरूद्ध कार्रवाई के लिए बंगाल की खाड़ी में भ्ोजा था तो उस वक्त रूस ने अमेरिकी बेड़े को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपना बेड़ा भ्ोज दिया था। इसकेे बाद उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रूस के साथ सामरिक संधि की थी, जो हमेशा ही आगे बढ़ती रही। तब के ये संबंध आज भी बने हुए हैं। ये संबंध इतने लंबे समय तक इसीलिए बने हैं, क्योंकि दोनों देशों के बीच विश्वसनीयता की डोर मजबूती से बंधी हुई है। दोनों देश एक-दूसरे के प्रति साफ नीयत रखते हैं। दो दशक पहले भारत अपने 8० फीसदी रक्षा उपकरण रूस से ही लेता था। 199० के दशक में जब भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई तो कुछ परिस्थितयों के चलते निश्चित ही भारत ने मान लिया था कि हमारी बदली हुई जरूरतों में रूस का कोई महत्व नहीं रहा। बीच-बीच में रूस की नाराजगी भी सामने आई, लेकिन इन सब गतिरोधों के बीच भी रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा और रणनीतिक सहयोगी बना रहा है।
उधर, विरोधी देशों की तरफ से भारत के लिए जो चुनौतियां बढ़ रही हैं, ऐसे में रूस के साथ एस-4०० डील काफी मायने रखती है। हालांकि, चीन भी यह डील कर चुका है, जिस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए थ्ो, लेकिन चीन को भी यह समझ आ जाना चाहिए कि भारत अपनी सामरिक ताकत को मजबूत करने में पूरी तरह समक्ष है। वहीं, पाकिस्तान भी यह समझें कि भारत की ताकत जिस अनुपात में बढ़ रही है, उसमें उसके खिलाफ जहर उगलने से अच्छा है कि वह भी विकास के पायदान में आगे बढ़ने की तरफ गंभीरता से विचार करे। आंतकवादियों को शह देने की अपनी नीति को छोड़ दे। वहीं, अमेरिका भी यह सोचें कि अगर, वह भारत के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है तो इसका यह मतलब नहीं बनता है कि वह जो कहेगा, हम वही करेंगे। यह हमारा स्वतंत्र अधिकार है कि हमें कैसे अपनी सामरिक सुरक्षा को बढ़ाकर अपनी संप्रभुता की रक्षा करनी है। यहां बता दें कि एस-4०० एयर डिफेंस सिस्टम एक ही राउंड में 36 वार करने में समक्ष है और 6०० किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य को देख सकता है। यह 3०० किलोमीटर की रेंज तक मार कर सकता है। ऐसे में, दुश्मन पड़ोसियों के लिए यह सोचना जरूरी हो जाएगा कि अगर, वे भारत के खिलाफ कोई युद्ध छेड़ने का प्रयास करते हैं तो उन्हें कई बार सोचना होगा।
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