"गरीबों पर "दांव"


 "Gareebo Par Dawn"  in hindi
 देश में आम चुनावों को लेकर हलचल तेज हो गई है। इस हलचल के बीच सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस तरह-तरह के दांव खेलकर लोगों को लुभाने में जुट गईं हैं। जहां केंद्र में बीजेपी सरकार द्बारा हाल ही में 1० फीसदी सवर्ण आरक्षण लागू कर बड़ा चुनावी स्ट्रोक खेला, वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी गरीबों के लिए न्यूनतम इनकम गारंटी "Minimum Income Guarantee" का ऐलान कर बड़ा दांव ख्ोलने की कोशिश की है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एक बार फिर कांग्रेस को गरीबों की याद आ गई है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि देश में चुनाव का माहौल हो और इस चुनावी दंगल में गरीबों और किसानों को कोई याद न करें, ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता है। चुनावी दंगल का सारा ख्ोल किसान और गरीबों पर ही टिका रहता है। 

Rahul Gandhi
 "Rahul Gandhi" द्बारा गरीबी हटाओ और भूखमरी खत्म करने का दांव चलकर भले ही चुनावी दांव चला हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि देश में पहली बार कोई गरीबी हटाने की बात कर रहा है। पहले भी, कई बार गरीबी हटाओ के नारे लगते रहे हैं। स्वयं राहुल गांधी की दादी ने गरीबी हटाओ का नारा तब दिया था, जब आपातकाल के बाद देश में उनके खिलाफ माहौल बना था। उस वक्त इंदिरा हटाओ का नारा बेहद प्रचलित हुआ था। इस नारे की काट के तौर पर इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे और राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी गरीबी हटाओ का नारा दिया था। देश में गरीबी के संबंध में उनके द्बारा एक बात आज भी याद की जाती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र से अगर एक रुपया चलता है तो वह गांव व गरीब तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसा हो जाता है। यानि 85 पैसा तो कमिश्नखोरी में ही चला जाता है, लेकिन इन सबके बीच देश से गरीबी क्यों नहीं हट पाई ? क्या वाकई राहुल गांधी देश से गरीबी और भुखमरी खत्म कर देंगे? पिछले इतिहास और भ्रष्ट राजशाही और अफसरशाही में तो ऐसा संभव नहीं दिखता है। 
 अगर, देश में वाकई सिद्धत से गरीबी और भुखमरी हटाने के लिए काम किया जाता तो आज भी देश में 3० फीसदी से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन नहीं कर रहे होते और देश के किसानों के संबंध में वाकई कुछ किया जाता तो आज देश का अन्नदाता आत्महत्या करने के लिए मजबूर नहीं होता। भारत में आज भी चारों तरफ गरीबी फैली हुई है। अगर, 21वीं शताब्दी में भी देश में गरीबी बढ़ रही है तो यह बेहद चिंताजनक तो है ही, बल्कि आजादी के बाद इतने लंबे समय तक देश में राज करने वाली राजनीतिक पार्टी के लिए भी डूब मरने वाली है। जब आप 7० सालों में देश की गरीबी नहीं हटा पाए तो क्या अब खाक हटा देंगे ? बात गरीबों और किसानों की होती है और भला देश के चंद लोगों का होता है, जिसमें नेता, अफसर, बड़े-बड़े उद्योगपति, दलाल, माफिया आदि शामिल होते हैं। 
 गरीबी हटाने के नाम पर जिस तरह केंद्र व राज्यों में राज करने वाली पार्टियों ने महज अपने परिवारों की गरीबी हटाई, वह इस देश के गरीबों और किसानों के साथ बहुत बड़ा मजाक है। सत्ता, राजनीति में अपने परिवार, अपने लोगों व चाटूकारों को आगे बढ़ाने का सिलसिला जिस तरह इस देश में चलता रहा, वही गरीबी और भुखमरी बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण रहा है, क्योंकि देश में चंद लोगों के बीच पैसा घूमता रहता है। गरीबों के नाम पर चला पैसा नेताओं, अफसरों और दलालों की जेब में जाता रहा। आजादी के बाद से अब तक केंद्र में राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की बात हो या फिर राज्यों में राज करने वाली किसी भी क्ष्ोत्रीय पार्टी की बात। सभी ने अपने ही व्यारे-न्यारे किए हैं। आज देश की तकदीर चंद लोगों के हाथों में है। ये ही लोग देश का भविष्य तय कर रहे हैं। इसीलिए अगर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं कि हम देश से गरीबी हटा देंगे, भुखमरी मिटा देंगे, यह नई बात तो है नहीं और न ही राहुल गांधी कोई बड़ा चमत्कार कर देंगे। 
 क्या 21वीं शताब्दी में पहुंचने के बाद भी गरीबी और भुखमरी हटाने की बात करना हमें शर्मिंदगी का अहसास नहीं कराती है? जब इतने वर्षों में आप गरीबी नहीं हटा पाए तो क्या अब आप गरीबी हटा देंगे? देश से गरीबी हटाए जाने के संबंध में बहुत से योजनाएं चलाईं जा रही हैं। उन योजनाओं में कितनी पादर्शिता है, क्या इसके बारे में कोई खोजबीन करने की कोशिश करता है। इन योजनाओं में कितनी कमिशनखोरी चलती है, इसको लेकर कभी सरकारें गंभीर दिखीं हैं। आजादी के बाद लंबा समय तय करने के बाद हमें नई तकनीकी, योजनाओं में पारदर्शिता लाने व गरीबों व किसानों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाए जाने की बात करनी चाहिए। आपको इसके रास्ते खोजने की तरफ बात चाहिए। आप किसानों का लोन माफ करने की बात करते हैं, क्योंकि आप इसके पीछे की सच्चाईयों को नहीं जानते हैं। आप देश में इतने वर्षों से राज करते आए हैं, फिर भी देश का किसान बदहाल है। क्यों? इसके पीछे कौन जिम्मेदार है। आप 2० साल पहले भी किसानों के कर्ज माफ करने की बात करते थ्ो और आज भी। वाकई आपको किसानों व गरीबों की चिंता होती तो आज तक देश का किसान व गरीब भी इतना समृद्ध हो चुका होता कि सरकारों को 21वीं सदी में भी गरीबी और किसानों की समस्याओं से लड़ने की जरूरत नहीं पड़ती। 
  हम आज की सोचते, कैसे देश को दूसरे मोर्चों पर मजबूत किया जा सकता है। जब कोई देश अपने मौलिक समस्याओं से ही बाहर नहीं निकल पा रहा है तो वह बड़ी समस्याओं से कैसे निपटेगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर, देश में आज गरीबी, भूखमरी और देश का किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूत है तो इसके लिए वही लोग जिम्मेदार हैं जो 21वीं सदी भी गरीबी और भूखमरी हटाने की बात करते हैं। इतने वर्षों में बढ़ती गरीबी और भूखमरी का विकल्प नहीं खोज पाए तो अब क्या आप इस मर्ज की दवा खोज पाएंगे। हां, यह जरूर हो सकता है कि आपका यह दांव आपको चुनावों में फायदा दे दे। ग्लोबल परिदृश्य को समझते हुए हमें आज कोशिश करने चाहिए कि हम देश के गरीबों और किसानों का कैसे समृद्ध बना सकते हैं। माह में महज कुछ पैसे दे देने से गरीब समृद्ध नहीं होगा, बल्कि उसके लिए सरकारों को दूसरे विकल्प खोजने होंगे। इसके लिए एक अच्छी सोच और सिस्टम में पारदर्शिता लाने की जरूरत है। 


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