सरकार का स्वागतयोग्य बजट


   Union Budget 2019 in hindi 
   केंद्र की मोदी सरकार ने अपना अंतरिम बजट पेश कर दिया है। बजट आम लोगों, किसानों से लेकर मध्यम वर्ग के लोगों को लुभाने वाला है। यानि सरकार ने इन वर्गों को अपनी तरफ खींचने का पूरा प्रयास किया है। जाहिर तौर पर इसके पीछे का कारण सभी को समझ आता है कि अब देश में कुछ महीनों के बाद आम चुनाव होने हैं। ये तीनों वर्ग ऐसे हैं, जो चुनावी महासंग्राम की धूरी बनी रहती हैं। जब विपक्षी पार्टियां अभी से किसानों, मजदूरों आदि को लेकर दांव ख्ोलने में लगी हुई हैं तो सरकार क्यों पीछे रहे ? अमुमन जब भी कोई सरकार बजट पेश करती है तो उसमें आम लोगों, किसानों व मध्यम वर्ग के लिए बहुत कुछ नहीं होता है। चुनावी घोषणाओं में बड़े-बड़े दावे तो किए जाते हैं, लेकिन जब उन्हें कुछ देने की बारी आती है तो उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है। हम अधिक पीछे न जाएं तो अभी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में इस तरह की स्थिति देखने को मिली है। 

Piyush Goyal

  कांग्रेस ने वहां किसानों को लेकर बड़ा दांव खेला था। किसानों को 1० दिन के अंदर कर्ज माफ करने का आश्वासन दिया गया था। किसानों ने बड़ी उम्मीद पालकर इन तीनों राज्यों से बीजेपी की सरकार को उखाड़ फेंककर कांग्रेस की सरकार बनाई थी। सत्ता में आते ही कांग्रेस सरकारों ने आनन-फानन में किसानों की कर्जमाफी से संबंधित फाइल पर भी दस्तखत कर दिए, लेकिन हकीकत में तस्वीर कुछ अलग है। इससे साफ होता है कि किसानों, आम जनता को राजनीतिक पार्टियां सिर्फ चुनावी गोटी समझते रही हैं। भारत जैसे देश में इसकी सच्चाई को समझना मुश्किल नहीं है। आजादी के 7० वर्षों बाद भी अगर, देश का किसान, आम आदमी, मजदूर, कामगार परेशान है तो इसका जिम्मेदार कौन है ? क्या देश में राज भोगने वाली पार्टियां इसकी जिम्मेदार नहीं रही हैं? जब देश के सामने यह सच्चाई है ही कि इन वर्गों को महज झूठा आश्वासन ही दिया जाता है, तो इसी झूठ को झुठलाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने बजट में आम लोगों, किसानों, मजदूरों और कामगारों का विश्ोष ख्याल रखा है तो यह अच्छी बात है। 

  देश के लोकतंत्र की मजबूत नींव का आधार ये ही वर्ग हैं। सरकार ने भले ही आगामी चुनाव की मजबूरी में ही इन वर्गों के लिए कुछ-न-कुछ ऐलान किया है तो भी इसका स्वागत किया जाना चाहिए। सरकार द्बारा पेश किए गए बजट से लगता है कि सरकार की नजर में करीब 88 फीसदी किसानों को लाभ के दायरे में लाने पर रहा है। देश में कुल किसानों में 71 फीसदी के पाए एक हेक्टयर जमीन है और 17 फीसदी किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है। बाकी 12 फीसदी किसानों के पास इससे अधिक जमीन है। कुल मिलाकर 1० करोड़ परिवार ख्ोती पर आधारित हैं। किसानों को लेकर तो लगभग हर वक्त चर्चा होती रहती है। खासकर, चुनावों व किसान आंदोलनों के दौरान। लेकिन असंगठित क्ष्ोत्र के मजदूरों को लेकर बात करने वाला कोई नहीं होता है। असंगठित मजदूरों के पास इसीलिए वक्त नहीं होता है, क्योंकि उन्हें हर वक्त अपनी दो जून की रोटी के जुगाड़ में लगा रहना पड़ता है। ऐसे मजदूरों के नाम पर जो श्रमिक संगठन आदि आंदोलन करते रहते हैं, उनमें भी बहुत अधिक दम नहीं रहता है, इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि जो लोग ऐसे असंगठित मजदूरों के नाम पर आंदोलन आदि करते रहते हैं, वे पहले अपने हितों को साधने की तरफ अधिक फोकस करते हैं। खासकर, कम्युनिस्ट पार्टियां मजदूरों के नाम पर अधिक आंदोलन करती रहती हैं। आज अगर देश में कम्युनिस्ट पार्टियों का धीरे-धीरे पतन हो रहा है तो इसके पीछे कहीं-न-कहीं यही सच्चाई है कि इन्होंने मजदूरों की लड़ाई के बीच अपना तो फायदा कर लिया, लेकिन मजदूर आज भी वहीं का वहीं है। अगर, केंद्र की मोदी सरकार ने ऐसे मजदूरों को लाभ देने का विकल्प खोजा है तो यह सरकार की ऐसे वर्ग को लाभ पहुंचाने की बड़ी कोशिश है। यहां बता दें कि असंगठित क्ष्ोत्र में 45 करोड़ से अधिक लोग काम करते हैं, उनके लिए पेंशन स्कीम लाकर सरकार ने उन्हें एक उम्मीद देने की कोशिश की है। इसी तरह 1० करोड़ से अधिक घुमंतू लोगों पर भी पहली बार फोकस किया गया है तो यह अपने-आप में बड़ी बात है। कम-से-कम इससे इस वर्ग के बीच एक जिज्ञासा पैदा होगी। उनके बीच भविष्य के लिए एक आत्मविश्वास बढ़ेगा।
 तीसरा नौकरी-पेशा आदमी इस बजट के केंद्र में है। सरकार ने टैक्स अदायगी का दायरा बढ़ा दिया है। इससे नौकरी पेश्ो वाले आदमी को काफी राहत मिलेगी। निश्चित ही दूसरी भाषा में इसे चुनावी बजट कहा जाए तो भी इसमें बुरा क्या है? इसे बुरा नहीं कहा जा सकता है, बल्कि इसे मतदाताओं की ताकत कहा जाना चाहिए कि यहीं वजह है कि सरकार कम-से-कम उनके बारे में सोचने के लिए मजबूर हुई है। विपक्ष में बैठी पार्टियां भी इस बात के लिए बिलबिला रही हैं कि आखिर इन वर्गों को लुभाने के लिए कौन-सा विकल्प खोजा जाए। निश्चित ही यह हर सरकार की दरकार बनने वाली है। देश का आम आदमी लोकतंत्र का आधार है। किसान, मजदूर अगर परेशान रहेगा तो निश्चित ही लोकतंत्र की आत्मा भी घायल होगी। लिहाजा, देश असली में आर्थिक समृद्ध तब ही माना जाएगा, जब देश का वंचित वर्ग लाभ के दायरे में आएगा। 


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