पश्चिम बंगाल का सियासी "ड्रामा"
political drama in west bangal
पश्चिम बंगाल में जिस तरह का सियासी ड्रामा देखने को मिला है, शायद ही इससे पहले ऐसा ड्रामा भारतीय राजनीति में देखने को मिला हो। पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर छापेमारी के लिए पहुंची सीबीआई की टीम को जिस तरह गिरफ्तार किया गया और उसके बाद स्वयं राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठे गईं, यह अपने-आप में बेहद चौंकाने वाली बात है। अब सभी विपक्षी पार्टियां, जिस प्रकार ममता के समर्थन में उतर आईं हैं और उससे अपने महागठबंधन की नींव को मजबूती देने की फिराक में हैं, उससे लगता है कि अपने सियासी फायदे के लिए राजनीतिक पार्टियां किसी भी हद तक जा सकती हैं। केंद्र पर अगर, विपक्षी पार्टियों द्बारा सीबीआई के दुरपयोग का आरोप लगाया गया है तो भी उन्होंने इसके विरोध के लिए कोई जायज तरीका नहीं अपनाया है। आप विरोध करिए, लेकिन आप किसी संस्था को काम करने से रोकते हैं तो यह लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों पर सीध्ो तौर पर हमला है। जब सीबीआई इस बात को मान रही है कि चिटफंड मामले में उनके पास पुलिस कमिश्नर के खिलाफ पूरे सबूत हैं तो फिर इस तरह से सीबीआई की टीम की गिरफ्तारी और सियासी नाटक का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
हमारे देश में यह बड़ी ही बिडंवना है कि सीबीआई अपना काम करती है तो कहा जाता है कि वह केंद्र के ईशारे पर काम कर रही है। जब काम नहीं करती है तो भी उस पर बंद पिजरे में तोता होने के आरोप लगते रहते हैं। इन सबके बीच जनता सबकुछ जानती है कि जिस प्रकार राजनीतिक पार्टियां सियासी ड्रामा कर रही हैं, उसके पीछे का मकसद क्या है? क्या ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों और नेताओं के भ्रष्टाचार में लि’ होने के किस्से कोई नए हैं। जब कोई अफसर या नेता बेदाग है तो उसे डर किस बात का। बकायदा, उसे तो जांच में सहयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। फर्जी सबूतों के आधार पर कोई किसी को फंसा नहीं सकता है। केंद्र सरकार अगर, दुर्भावना से काम कर भी रही है तो भी सीबीआई को काम करने देना चाहिए। जब सीबीआई के पास किसी के खिलाफ पुख्ता सबूत होंगे तो ही अग्रिम कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त होता है। लिहाजा, किसी पार्टी व राज्य की सरकार को इसमें हस्तक्ष्ोप नहीं करना चाहिए। अगर, कोलकाता में सत्तारुढ़ ममता बनर्जी की सरकार द्बारा ऐसा किया गया है तो यह निश्चित तौर पर देश की एक ऐसी संस्था के संवैधानिक अधिकारों पर हमला करने का प्रयास है, जिसे भ्रष्टाचारियों के घर छापेमारी का अधिकार है। जो आज चिल्ला कर यह कह रहे हैं केंद्र सरकार दुर्भावना से काम कर रही है तो वे यह क्यों नहीं बताते हैं कि जो उन्होंने अरबों की संपत्ति कुछ ही वर्षों में जुटाई है, वह आखिर आई कहां से? आय से अधिक संपत्ति के उनके पास स्रोत क्या हैं ? अधिकांश पार्टियों से जुड़े नेता इस परिधि में आते हैं। ऐसे में, इनके विरोध से लगता है कि इसमें कोई दम नहीं है। माया, अखिलेश, लालू से लेकर कई और नेता इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।
यहां बता दें कि सारदा चिटफंड स्कैम करीब 25०० करोड़ रुपए का है और रोज वैली स्कैम करीब 17,००० करोड़ रुपए से ज्यादा का है। यह बात भी सामने आ रही है कि इन दोनों ही मामलों में कथित तौर पर कोलकाता में सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी से लिंक हैं। इन दोनों ही चिटफंड घोटालों की जांच सीबीआई कर रही है। इस मामले में बीती 11 जनवरी को सीबीआई ने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया। वहीं, रोज वैली ग्रुप चिटफंड घोटाले में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय और तापस पॉल को सीबीआई गिरफ्तार कर चुकी है। वहीं, सीबीआई ने रोज वैली के अध्यक्ष गौतम कुंदू और तीन अन्य पर आरोप लगाया था कि उन्होंने देशभर में निवेशकों को 17,००० करोड़ रुपए की चपत लगाई है। वहीं, सारदा के चेयरमैन सुदी’ सेन हैं। सेन पर आरोप है कि उन्होंने कथित फ्रॉड करके फंड का गलत इस्तेमाल किया। असल में, चिटफंड कंपनियों ने आकर्षक ब्याज का लालच देकर निवेशकों को अपने जाल में फंसाया। मैच्योरिटी के बाद जब जमाकर्ता अपना रिर्टन लेने पहुंचे तो कंपनियों ने पैसे देने से साफ मना कर दिया।
बाद में, स्थिति यह आई कि इन कंपनियों ने अपनी दुकानों और दफ्तरों को बंद कर दिया। 2०14 में देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों को जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया था। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए सीबीआई चिटफंड से संबंधित मामलों की जांच कर रही है। जब देश की सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई को जांच सौंपी है तो इसमें केंद्र सरकार से क्या लेना-देना है। लिहाजा, सीबीआई की टीम को अपने काम से रोकना बड़ा ही दुर्भाग्यपूणã है। ममता के इस प्रयास को सराहने वालों में कांग्रेस पार्टी भी है। पार्टी ने ममता को कंध्ो-से-कंधा मिलाकर समर्थन देने की बात कही है। क्या कांग्रेस इस बात से बच सकती है कि जब वह केंद्र की सत्ता में थी तो सीबीआई जांच से संबंधित इस तरह के घटनाक्रम सामने नहीं आए।
सीबीआई टीम जांच तब भी करती थी, लेकिन सीबीआई टीम को गिरफ्तार करने से संबंधित सियासी ड्रामा कभी देखने को नहीं मिला। विरोध स्वरूप आप शांति-पूर्वक धरना-प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन आप सीबीआई टीम को काम करने से रोकते हुए उनके सदस्यों की गिरफ्तारी कर रहे हैं तो यह किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। सबूतों के बिना न तो सीबीआई किसी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है और न ही पुलिस। अगर, ऐसा होता भी है तो इसके लिए सिस्टम में बैठे लोग ही जिम्मेदार हैं। सिस्टम को चलाने और बैठने वाले लोग कोई और नहीं होते हैं, बल्कि यही राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए लोग होते हैं। फिर इसमें चाहे बीजेपी वाले हों या फिर कोई अन्य पार्टियों के लोग। लिहाजा, ऐसे घटनाक्रमों से यह मान लेना ही सबसे बेहतर होगा कि इस तरह के सियासी ड्रामे न तो जनता के हित के लिए हैं और न ही लोकतंत्र के हित के लिए। इसके पीछे अगर, हित छुपा हुआ है तो इन्हीं राजनीतिक पार्टियों का।
good job sir
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