हिमा दास का जीवन परिचय | hima das ki jivini
एक महीने में छह गोल्ड मेडल। यह किसी व्यक्ति विश्ोष के लिए अविवसनीय क्षण तो होता ही है, बल्कि उस परिवार, उस देश के लिए भी कितनी बड़ी गौरव की बात है, जिस धरती पर उसने जन्म लिया है। हिमा दास वह शख्सियत हैं, जिन्होंने अपने करिश्मे से हर भारतीय सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। रेस की महारथी हिमा दास। हिमा ने चक गणराज्य में आयोजित आईएएएफ विश्व अंडर-2० एथलिटेक्टिस चैंपियनशिप में 4०० मीटर की दौड़ को 51.46 सेंकड में पूरा कर पहला स्थान हासिल कर महीने का छठवां गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इस सफलता के बाद हिमा दास भारत की ऐसी महिला एथलीट बन गईं हैं, जिन्होंने विश्व अंडर-2० एथलेक्टिस चैंपियनशिव की 4०० मीटर दौड़ को प्रथम स्थान पर आकर खत्म किया।
चावल की ख्ोती करते हैं पिता
9 जनवरी 2००० को जन्मी हिमा दास का जन्म ढिंग, नागांव असम में हुआ। उनके माता का नाम जोमाली और पिता रंजीत दास है, जो चावल की ख्ोती करते हैं। मां गृहणी हैं। ये पांच भाई और बहनें हैं, उनमें 18 वर्षीय हिमा दास सबसे छोटी हैं। हिमा दास ने कहां तक शिक्षा ग्रहण की की है, इसकी जानकारी अभी सामने नहीं आई है।
बचपन से था ख्ोलों के प्रति झुकाव
हिमा का बचपन से ही ख्ोलों के प्रति खास झुकाव था। इसीलिए वह इस क्ष्ोत्र में कड़ी मेहनत करती थीं। यह भी बताया जाता है कि वह अपने बचपन के दिनों में लड़कों के साथ मिलकर फुटबॉल भी खेला करती थीं, जिससे उनकी ख्ोलों के प्रति और उत्साह बढ़ गया। इससे उनके दौड़ने की क्षमता में भी अधिकाधिक विकास होने लगा।
ब्रांड वैल्यू बढ़ी
हिमा दास को ढिंग एक्सप्रेस, मोन जय और गोल्डन गर्ल के नाम से भी जाना जाता है। चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन की वजह से हिमा दास की लोकप्रियता के साथ ब्रांड वैल्यू भी खूब बढ़ी। यानि कुल मिलाकर हिमा दास की ब्रांड वैल्यू दोगुनी हो गई। पहले हिमा दास की सालाना फीस 3० से 35 लाख रुपए थी, जो अब 6० लाख रुपए सालाना पहुंच गई है। जीत से हिमा दास, उनके परिवार के साथ-साथ पूरा देश काफी उत्साहित है। हिमा दास भी अगले साल होने वाले ओलंपिक में और भी बड़ी सफलता के लिए तैयार हैं।
सचिन ने फोन कर दी बधाई
हिमा दास के इस गोल्डन प्रदर्शन ने देश के हर व्यक्ति का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। उनके इस बेहतरीन प्रदर्शन पर स्वयं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के साथ बॉलीवुड के स्टार्स भी उनकी तारीफों के पुल बांधने में पीछे नहीं हैं। क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने तो स्वयं हिमा दास को फोन कर जीत की बधाई दी। बकायदा, हिमा दास ने अपने ट्विटर अकाउंट पर यह खुशी श्ोयर की और लिखा कि सचिन तेंदुलकर का फोन आना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं था।
फिजिकल एजुकेशन टीचर ने किया प्रोत्साहित
हिमा को रेसर बनने के प्रति सबसे पहले जवाहर नवोदय विद्यालय के फिजिकल एजुकेशन टीचर ने सबसे पहले प्रोत्साहित किया। उनके बाद ही हिमा ने रेसिंग के प्रति अपनी रुचि को भी बढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद रेसिंग से संबंधित जो भी प्रतियोगिताएं होती थीं, उनमें प्रतिभाग करने में हिमा दास कभी नहीं पीछे नहीं रहीं। हिमा दास के जुनून का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रनिंग ट्रैक की सुविधा नहीं होने के बाद भी उन्होंने अपने करियर के प्रारंभिक दिनों में मिट्टी के फुटबॉल मैदान में अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी।
कोच निपुण दास ने ट्रेनिंग देने की जाहिर की थी इच्छा
हिमा दास की प्रतिभा से प्रभावित होकर कोच निपुण दास ने उन्हें प्रशिक्षित करने की इच्छा जाहिर की थी। असल में, यह तब की बात है, जब 2०17 में ख्ोल और युवा कल्याण निदेशालय के तत्वावधान में आयोजित किए गए अंतर-जनपदीय प्रतियोगिता के दौरान उनकी मुलाकात हिमा दास से हुई। उस प्रतियोगिता में हिमा दास ने प्रतिभाग किया था। इस प्रतियोगिता में उन्होंने 1०० और 2०० मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था। उनमें जो आत्मविश्वास और गति दिखी, कोच निपुण दास उसी से काफी प्रभावित हुए थ्ो। तब उन्होंने हिमा को प्रशिक्षित करने की इच्छा जाहिर की थी और अपने साथ गुवाहाटी ले गए। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली हिमा के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसीलिए हिमा की कोचिंग आदि का खारा खर्च कोच द्बारा ही उठाया गया। प्रारंभिक दिनों में तो उन्हें 2०० मीटर की रेसिंग के लिए प्रशिक्षित किया गया, उसके बाद 4०० मीटर के ट्रैक पर दौड़ाना शुरू कर दिया गया था।
शुरू से जिद्दी रही हिमा
हिमा शुरू से ही काफी जिद्दी रही। इसीलिए शुरूआती कुछ असफलताओं के बाद भी हिमा ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। आज सबके सामने उसका परिणाम है। हिमा के दोस्त पलाश भी मानते हैं कि वह कभी हार नहीं मानती। वह तब तक अपने लक्ष्य पर अड़ी रहती हैं, जब तक उसे हासिल न कर ले।
बाइक चलाने का भी है शौक
हिमा दास बाइक चलाने का भी शौक रखती है। दोस्तों में से किसी ने कह दिया कि आओ बाइक रेस लगाएं तो वह बिल्कुल भी नहीं सोचती हैं कि मना करना है। वह रेस लगाती भी हैं और जीत कर दिखाती भी हैं।
मदद करने में रहती हैं आगे
ख्ोल भावना के साथ-साथ हिमा दास में मदद की भावना भी कूट-कूटकर भरी हुई है। इसका ताजा उदाहरण असम में आई बाढ़ पीड़ितों की मदद करना है। हिमा ने अपने पुरस्कार की एक बड़ी राशि असम बाढ़ पीड़ितों को दान कर दी है। जब वह प्रतियोगिता में भाग लेने के दौरान देश से बाहर थीं तो अपने दोस्तों व परिजनों से बाढ़ की स्थिति पर लगातार पूछताछ करती थी। स्वयं उनका परिवार भी बाढ़ का दंश झेल रहा था।
इन प्रतियोगिताओं में लिया हिस्सा
- आस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में लिया हिस्सा। 4०० मीटर की दौड़ के फाइनल में हासिल किया था छठवां स्थान।
- वर्ल्ड एथलेक्टिस चैंपियनशिप ट्रैक प्रतियोगिता में लिया हिस्सा। जीत की हासिल।
- बैंकॉक में आयोजित हुई एशियाई यूथ चैंपियनशिप में 2०० मीटर की दौड़ में हासिल किया था सातवां स्थान।
- जर्काता में हुए एशियन गेम्स में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ने हुए जीता था रजत पदक।
- नॉवे मेस्टो सीजेच रिपब्लिक में 4०० मीटर दौड़ में जीता स्वर्ण पदक। यह हिमा दास का माह का छठवां गोल्ड मैडल था। यह दौड़ हिमा ने 51.46 सेकेंड में की पूरी।
- 2 जुलाई से 22 जुलाई 2०19 तक यूरोप में आयोजित अलग-अलग प्रतियोगिताओं में पांच गोल्ड मैडल जीते। जिनमें पहला, पोलैंड में पोजनान एथ्ोलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स में 2 जुलाई का 2०० मीटर रेस की कैटगिरी में हासिल किया, जिसे हिमा ने 23.65 सेकेंड में पूरा किया। दूसरा, 8 जुलाई को पोलैंड में ही कुट्नो एथ्ोलेटिक्स मीट में 2०० मीटर दौड़ को 23.97 सेकेंड में पूरा किया। इस प्रतियोगिता में भी हिमा दास ने गोल्ड मैडल अपने नाम किया। तीसरा, 18 जुलाई को क्जेच रिपब्लिक में क्लाद्रो एथ्ोलेक्टिस मीट में हिमा ने 2०० मीटर दौड़ में भी स्वर्ण पदक जीता। यहां यह दौड़ हिमा ने 23.43 सेकेंड में पूरी की थी। चौथा, 17 जुलाई को टोबोर एथ्ोलेक्टिक मीट में भी 2०० मीटर की दौड़ में हिमा ने स्वर्ण पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया।
युवाओं के लिए बनी प्रेरणा स्रोत
हिमा दास के असाधारण प्रदर्शन ने देश का गौरव तो बढ़ाया ही, बल्कि वह युवाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गईं हैं। मन में दृढ़ निश्चय है तो कोई भी बाधा लक्ष्य पर आड़े नहीं आ सकती है। हिमा दास के सफर से यह बात पूरी तरह साबित होती है। कम उम्र के साथ-साथ कम समय के प्रशिक्षण के बाद भी इस तरह का असाधारण प्रदर्शन उनकी कुशता के साथ-साथ दृढ़ इच्छाशक्ति को भी दर्शाता है।
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