उत्तर-प्रदेश में गन्ना कीमतों में नहीं की अपेक्षाकृत बढ़ोतरी, किसान नाराज
किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की नीति को किसान ढकोसला बता रहे हैं, किसान 2 साल से 370 से 400 रूपए प्रति क्विंटल मूल्य तय करने की मांग कर रहे थे
By Bishan Papola
उत्तर-प्रदेश के किसान 2 साल से गन्ना की कीमत प्रति क्विंटल 370 से 400 रूपए तक करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 2020-21 के लिए पेश बजट में केवल 10 रूपए प्रति क्विंटन बढ़ाने का ही प्रस्ताव पेश किया। जिसको लेकर किसानों में बहुत ज्यादा खुशी नहीं है। पिछले 2 सालों से गन्ना की कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई थी। 2 साल बाद मूल्य बढ़ाया भी तो केवल 10 रूपए प्रति क्विंटल। किसान इसे किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की नीति को ढकोसला बता रहे हैं। किसान संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों का कहना है कि बिजली, डीजल और खाद्य के दामों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इनके दामों में बढ़ोतरी के अनुपात में गन्ना की कीमतों में की गई सामान्य बढ़ोतरी से उन्हें कोई फायदा पहुंचने वाला नहीं है।
सरकार के आकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गन्ना कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। गन्ना प्रदेश में 40 हजार करोड़ रूपए सालाना से उपर की नकदी फसल होती है। राज्य के 40 जिले ऐसे हैं, जहां गन्ना उत्पादन होता है। प्रदेश के इन 40 जिलों में 50 लाख गन्ना उत्पादक किसान हैं, उनके परिवारों को शामिल किया जाए तो कुल 2.5 करोड़ लोग गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं। प्रदेश के किसान हमेशा यही मानते रहे हैं कि उन्हें गन्ने की सही कीमत नहीं मिल पा रही है, इसीलिए उनके लिए गन्ने की खेती करना कठिन होता जा रहा है।
बिजली, डीजल व यूरिया के दाम भी न बढ़े
भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारी राकेश टिकैत ने कहा कि जिस प्रकार बिजली, खाद्य और डीजल के दाम बढ़ रहे हैं, उस अनुपात में गन्ना की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की गई है, इसीलिए गन्ना की खेती किसानों के लिए अब फायदे का सौदा नहीं रहा। सरकार ने गन्ना की कीमत प्रति क्विंटन 315 से बढ़ाकर 325 रूपए कर किसानों को कोई बहुत बड़ा तोहफा नहीं दिया है। कीमत प्रति क्विंटल 370 से 400 के बीच होनी चाहिए। ग्रेटर नोएडा के किसान संजय भाटी ने कहा कि अगर, सरकार गन्ना कीमतों में बढ़ोतरी में इतनी की कंजूसी करना चाहती है तो बिजली, डीजल और यूरिया के दाम भी न बढ़ाए। 10 रूपए प्रति क्विंटल भाव बढ़ाने से क्या होगा ? जब इससे अधिक खर्च तो बिजली, डीजल और यूरिया के दामों को चुकाने में चला जाता है।
10 सालों में केवल पांच बार बढ़ा मूल्य
उत्तर-प्रदेश में गन्ना कीमतों में 2011 के बाद केवल पांच बार बढ़ोतरी हुई, लेकिन एक बार छोड़कर कीमतों में बढ़ोतरी प्रति क्विंटल 30 रूपए तक भी नहीं पहुंच पाई। 2011-12 से 2020-21 की स्थिति पर नजर डालें तो 2012-13 में ही केवल गन्ना कीमत प्रति क्विंटल 40 रूपए की बढ़ोतरी की गई थी, इसके बाद कभी भी यह बढ़ोतरी 30 रूपए तक भी नहीं पहुंच पाई है। सरकार के आकड़ों के मुताबिक पेराई सीजन 2011-12 में बसपा सरकार के दौरान प्रति क्विंटल 35 रूपए की बढ़ोतरी की गई थी, तब कीमत 240 रूपए प्रति क्विंटल हुआ था। 2012-13 में जब सपा सरकार सत्ता में आई थी तो कीमतों में 40 रूपए की बढ़ोतरी की गई, जो पिछले 10 वर्षों में प्रति क्विंटल सबसे अधिक बढ़ोतरी थी। तब गन्ना की कीमत प्रति क्विंटल 280 रूपए हो गई थी। इसके बाद आगामी 3 वर्षों तक यानि 2013-14 से लेकर 2015-16 तक गन्ना की कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई, इस दौरान भी उत्तर-प्रदेश में सपा की ही सरकार रही थी। जिसका किसान हर साल विरोध करते रहे, इसके बाद जब सपा सरकार ने 2016-17 का बजट पेश किया तो उसमें गन्ना कीमतों में प्रति क्विंटल 25 रूपए बढ़ाने का ऐलान किया गया, तब मूल्य बढ़कर प्रति क्विंटल 305 रूपए हो गया था। इसके बाद 2017-18 में उत्तर-प्रदेश की कमान बीजेपी के हाथ में आई तो उसने 10 रूपए प्रति क्विंटल मूल्य बढ़ाया तो गन्ना का मूल्य प्रति क्विंटल 315 रूपए हो गया था। इसके बाद 2018-19 और 2019-20 के दौरान गन्ना कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई, जिसको लेकर किसानों में तेजी से विरोध बढ़ रहा था। पिछले महीनों में किसानों ने गन्ना कीमतों में बढ़ोतरी की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन भी किए और वे गन्ना कीमत प्रति क्विंटल 370 से लेकर 400 रूपए तय करने की मांग कर रहे थे, लेकिन सरकार ने केवल 10 रूपए ही प्रति क्विंटल मूल्य बढ़ाया है।
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