प्रदूषण में टॉप, फिर भी दे दी 37 मंजिला बिल्डिंग को पर्यावरणीय मंजूरी

एनजीटी ने इस मंजूरी को अनुचित ठहराते हुए स्वतंत्र जांच कमेटी बनाने का निर्देश दिया है 
 भारत की राजधानी दिल्ली दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार है। ऐसे में, दिल्ली के सबसे प्रदूषित उत्तरी जिला क्षेत्र में 37 मंजिला आवासीय कॉम्प्लैक्स को राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण-एसईआईएए ने पर्यावरणीय मंजूरी दे दी। नेशनल हरित अभिकरण(एनजीटी) के न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण, गिरते भूमिगत जल स्तर, यमुना नदी, उत्तरी रिज रिजर्व फॉरेस्ट व घनी आबादी के बेहद नजदीक परियोजना के होने पर इसे पर्यावरणीय मंजूरी देना उचित नहीं माना है। एनजीटी ने कहा कि परियोजना को पर्यावरणीय अनुमति देते वक्त महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुददों पर कोई गंभीर विचार नहीं किया गया है, इसीलिए इस संबंध में एक स्वतंत्र समिति का गठन कर इसकी समीक्षा जाए। इसके लिए एनजीटी ने दो माह का समय दिया है।


 साइलेंस जोन एरिया 
 दिल्ली का उत्तरी जिला पर्यावरण के लिहाज से बहुत ही संवेदनशील माना जाता है। इसीलिए इसका अधिकांश क्षेत्र साइलेंस जोन के तहत आता है, क्योंकि यहां दिल्ली विश्वविद्यालय, वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट, हॉस्टल व कई अन्य स्कूल भी हैं। नेशनल कैपिटल टेरिटरी अधिनियम 2000 के अंतर्गत 3 अप्रैल 2008 को जारी अधिसूचना में डीयू और वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट से 100 मीटर की दूरी को सांइलेंस जोन घोषित किया था, लेकिन आश्चर्यजनक है कि इन संस्थानों के पास ही 37 मंजिला आवासीय बिल्डिंग को मंजूरी दे दी गई, जबकि डीडीए के मास्टर प्लान के अनुसार दिल्ली में 8 मंजिला से अधिक उंची बिल्डिंगों को मंजूरी नहीं है, क्योंकि दिल्ली भकूंप जोन-फोर में भी आती है और यहां वायु प्रदूषण का स्तर पर भी बहुत हाई रहता है। 
 उत्तरी रिज भी है नजदीक
दिल्ली विश्वविद्यालय द्बारा 37 मंजिला परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने के खिलाफ एनजीटी में याचिका दाखिल की थी। जिसमें कहा गया था कि रिज प्रबंधन बोर्ड से भी कोई सहमति नहीं ली गई है। निर्माण कार्य के खिलाफ प्रतिबंध रिज के मध्येनजर भी लागू होता है, क्योंकि यह एक आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित किया गया क्षेत्र है, जिससे वन और पक्षियों की शांति भी भंग होती है। डीएमआरसी ने जब मेट्रो परियोजना को इस क्षेत्र में शुरू किया था तो रिज प्रबंधन बोर्ड से अनुमति ली गई थी। रिज क्वाट्र्जाइट चट्टानों से बना हुआ है, जहां पाषाण काल की कई यादें आज भी ताजा हैं। अरावली वन क्षेत्र होने के कारण यह पक्षियों और पशुओं का आश्रय स्थल भी है। इस लिहाज से भी यह परियोजना पर्यावरण अधिनियमों के खिलाफ है। 
 रक्षा मंत्रालय की थी भूमि
 जिस भूमि पर आवासीय परियोजना प्रस्तावित है, वह मूल रूप रक्षा मंत्रालय की भूमि थी। भूमि उपयोग को एमपीडी-2021 के तहत सार्वजनिक और अर्ध सार्वजनिक सुविधा के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन भूमि उपयोग को बाद में आवासीय उद्देश्य में बदल दिया गया। परियोजना कंपनी ने वन विभाग से अनुमति लेकर निर्माण स्थल से 156 पेड़ों को भी हटा दिया था। डीयू ने इस परियोजना को विश्वविद्यालय के माहौल और चरित्र के लिए खतरनाक बताया और दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष यह मामला रखा, लेकिन उच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल 2015 को दिए अपने फैसले में परियोजना के लिए भूमि के हस्तांतरण में हस्तक्षेप नहीं किया, जिसके बाद डीयू ने परियोजना को मिले पर्यावरणीय मंजूरी के खिलाफ एनजीटी में याचिका दाखिल की। याचिका में कहा गया था कि परियोजना उस 10 किलोमीटर के दायरे में है, जिसके अंतर्गत दिल्ली और उत्तर-प्रदेश की सीमा आती है। और एरिया में नजफगढ़ ड्रेन, वजीरपुर, नरैना और आनंद पर्वत जैसे भीड़भाड वाले क्षेत्र भी आते हैं। दिल्ली में ये सभी क्षेत्र बेहद प्रदूषित माने जाते हैं। 
 यमुना नदी से घिरा है उत्तरी जिला
 जिस नार्थ जिला इलाके में यह परियोजना प्रस्तावित है, यह जिला यमुना नदी से घिरा है। पश्चिमी यमुना नहर, नजफगढ़ ड्रेन आदि भी यहां हैं। और इसी जिले में डीयू और उत्तरी रिज, तीस हजारी कोर्ट, आईएसबीटी भी स्थित हैं। यहां का फॉरेस्ट कवर एरिया 4.81 स्कायर किलोमीटर है। वहीं, 0.24 स्कायर किलोमीटर एरिया में जल स्रोत्र हैं। 
 90 साल की लीज के लिए जमा किए 218.20 करोड़ रूपए
 यंग बिल्डर्स लिमिटेड की यह परियोजना 3 कैवलरी लेन और 4 छत्र मार्ग में प्रस्तावित है। इस 37 मंजिला बिल्डिंग में 410 आवास इकाईयां बनाए जाने की योजना है। यह परियोजना 20 हजार वर्गमीटर क्षेत्र में प्रस्तावित है। कंपनी की तरफ से कहा गया कि इस परियोजना के संबंध में सभी मानकों को पूरा किया गया है और पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद ही इस परियोजना के तहत 90 साल की लीज के लिए 218.20 करोड़ रूपए का भुगतान कर दिए गए हैं। 





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