दिल्ली के डंप साइट्स जन-जीवन और पर्यावरण के लिए घातक


एनजीटी ने कचरे का वैज्ञानिक और पर्यावरणीय तरीके से निस्तारण नहीं करने पर  दिल्ली के तीनों निगमों पर जुर्माना लगाया है
 By Bishan Papola
  दिल्ली के भलस्वा, गाजीपुर और ओखला डंप साइट्स में डाले जा रहे कचरे के निस्तारण के संबंध में प्रभावी वैज्ञानिक और पर्यावरणीय कदम नहीं उठाए जाने पर उत्तरी, पूर्वी, दक्षिणी दिल्ली नगर निगमों के अलावा अन्य स्थानीय निकायों को अब हर माह जुर्माना भरना होगा। जिस निगम के अंतर्गत क्षेत्र की आबादी 10 लाख से अधिक है, वहां के नगर निकाय को हर माह 10 लाख रूपए और जिस क्षेत्र की आबादी 5 से 10 लाख की है, वहां के निकाय को 5 लाख रूपए हर माह जुर्माना भरना होगा, इसके अतिरिक्त अन्य निकायों को 1 लाख प्रति माह जुर्माना देना होगा, जो निकाय जुर्माना भरने में असफल रहेगा, उसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार को लेनी होगी। यह आदेश राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) के न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने दिया है। एनजीटी ने शहरी निकायों और शहरी विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रतिकूल प्रविष्टियां जारी करने का आदेश भी दिया गया है।


एनजीटी ने अपने आदेश में माना है कि इन डंप साइट्स की वजह से न केवल भूर्गभ जल प्रदूषण गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है, बल्कि पर्यावरण, जन-जीवन और सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी एक गंभीर खतरा पैदा हो रहा है। यह स्थिति तब है, जब सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम-2016 के तहत इस तरह के पुराने डंप साइट के निपटान के वैधानिक तरीके स्पष्ट किए गए हैं। एनजीटी ने सेंटर फॉर वर्ल्ड लाइफ एंड एनवायरमेंट की याचिका पर 2019 से ही इस मामले पर सुनवाई कर रहा थी। एनजीटी ने 30 मई 2019 को तीनों उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी  दिल्ली नगर निगमों को निर्देश दिया कि वे इस संबंध में जरूरी कदम उठाएं और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। 
 अपनी रिपोर्ट में तीनों निगमों ने अलग-अलग बातें एनजीटी के समक्ष रखीं। उत्तरी नगर निगम ने कहा कि इस संबंध में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) 8 मार्च 2019 को तैयार कर ली गई थी, जिसमें कचरे के निपटान हेतु तीन विकल्प रखे गए हैं, जिसमें पहला साइट को छोड़ना है, लेकिन यह मुश्किल काम है। दूसरा 8.8 मिलियन क्यूबिक मीटर कचरे के लिए जैव-खनन की व्यवस्था करना है, जिसके लिए कम से कम 15 साल की अवधि निर्धारित हो, जिसकी लागत करीब 1178 करोड़ तक आने की है। तीसरा विकल्प कैपिंग का है। नॉर्थ एमसीडी के कमिश्नर के मुताबिक, डंप साइट को बंद करना और कैपिग करना, बिना बॉयो-माइनिग/बॉयो-रेमेडिएशन के पैसा बचाने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बेहतर विकल्प है, लेकिन यह रिपोर्ट आईआईटी, दिल्ली के एक प्रोफेसर द्बारा भलस्वा लैंडफिल के संबंध में डीपीआर की समीक्षा पर निर्भर करेगी।
पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने एनजीटी में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में 9 जुलाई 2017 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया कि राष्ट्रीय राजमार्गों के चौड़ीकरण में सामग्री भरने के रूप में अक्रिय सामग्री का उपयोग करने का प्रस्ताव था। ताजा और पूर्व, दोनों तरह के कचरे के लिए 100 टीपीडी के बॉयो रेमेडिएशन के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था। उधर, दक्षिण दिल्ली नगर निगम द्बारा दी गई रिपोर्ट में कहा गया कि ओखला चरण-एक में पुराने कचरे को निष्फल करने के कुछ कार्यों को अंजाम दिया गया, लेकिन जब एनजीटी के निर्देशों पर विशेषज्ञों ने वास्तविक स्थिति की जांच की तो वहां पाया गया कि डंप साइट्स पर अवैज्ञानिक कैपिंग प्रक्रिया नियमों के विरूद्ध थी और पर्यावरण के बिल्कुल भी अनुकूल नहीं थी। 
 करोड़ों मीट्रिक टन कूड़ा है जमा
पूर्वी दिल्ली में आने वाले गाजीपुर डंप साइट का क्षेत्रफल करीब 70 एकड़ है, जहां 1.4 करोड़ मीट्रिक टन के करीब कचरा जमा है, जबकि उत्तरी दिल्ली में आने वाले भलस्वा डंप साइट का एरिया 36 एकड़ में है, जिसमें 80 लाख मीट्रिक टन कचरा जमा है। वहीं, दक्षिणी दिल्ली के तहत आने वाले ओखला डंप साइट का एरिया 46 एकड़ है, जहां करीब 55-60 लाख मीट्रिक टन कूड़ा जमा है। जिस अनुपात में यहां लेगेसी वेस्ट के निपटान की प्रक्रिया का पाया गया, वह नियम के अनुकूल नहीं था। सीपीसीबी के मानक भी कहते हैं कि डंप साइट्स पर कैपिंग करना उचित नहीं, क्योंकि इससे लीकेज और मीथेन लैंडफिल गैस का उत्पादन होगा, जो कि पहले से ही दूषित भूमिगत जल को और भी दूषित कर देगा। ऐसा भलस्वा झील के पानी में देखने को मिला है, जिसे विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में जानवरों के तक पीने के लिए उसे उपयोगी नहीं माना है। उस पानी में भारी धातु सहित फेनोलिक यौगिक जैसे विषैले तत्व झील के पानी में पाए गए हैं। एनजीटी ने तीनों निकायों को उचित वैधानिक कदम उठाने के लिए पर्याप्त समय दिया था। इस संबंध में एनजीटी ने यह भी निर्देश दिया था कि नई दिल्ली नगरपालिका परिषद्, दिल्ली छावनी बोर्ड में कम से कम तीन वार्ड, क्षेत्र व मंडल आदि वॉर्ड के रूप में अधिसूचित करे और जिसका छह माह के अंदर अनुपालन किया जाना चाहिए, लेकिन इन संबंध में कोई भी उचित कदम अब तक नहीं उठाए गए हैं।




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