चीन है नेपाल की बौखलाहट की वजह | China provoking nepal on kalapaani issue


  लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपूलेख को लेकर भारत और नेपाल के बीच विवाद और गहराता जा रहा है। भारत की तरफ से बातचीत का रास्ता खुला रखने के बाद भी नेपाल अपनी हठधर्मिता पर अड़ा हुआ है, जो बिलकुल भी उचित नहीं है। भारत के साथ रोटी बेटी का संबंध रखने वाले नेपाल को ऐसा क्या हो गया कि वह भारत की खुली खिलाफत पर उतर आया। जो क्षेत्र वर्षों से भारत के पास हैं, उन क्षेत्रों लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपूलेख पर अपना हक जता दिया और उसे अपने नक्शे में शामिल कर दिया। जबकि भारत ने इसका विरोध भी किया और बातचीत का रास्ता खुला रखा। इसके बाद जब नेपाल को भी बातचीत करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए था, तब उसने न केवल वर्षों से बंद पड़े सड़क के निर्माण कार्य को शुरू कर दिया और वहाँ अपनी कई चौकियाँ भी स्थापित कर ली। निश्चित ही आभास होता है कि इस आक्रामकता के पीछे केवल नेपाल अपने दम पर खड़ा नहीं है, बल्कि चीन के उकसावे में वह ऐसा कर रहा है। 

चीन के उकसाने के हैं कई कारण
बशर्ते, दोनों देश इससे इंकार करें, लेकिन चीन के उकसावे के कई कारण हैं। पहला तो वह अपनी उस नीति के वशीभूत है, जिसमें वह दूसरों को आगे कर अपनी चालबाजी करने के लिए मशहूर है, दूसरा जिस क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के बीच विवाद चल रहा है, उस पर चीन की भी नजर हमेशा से रही है। वह इस मौके पर इस विवाद को इसीलिए भी तूल देना चाहता है, क्योंकि वह कोरोना संक्रमन की वजह से चौतरफा घिरा हुआ है। ऐसे में, वह दुनिया का ध्यान तो भटकाना ही चाहता है, बल्कि उसकी कसक कई बड़ी कंपनियों का चीन से भारत की तरफ रुख भी करना है। उधर, अमेरिका जैसी महाशक्ति भी उसकी दो दर्जन से अधिक कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर चुकी है। चीन और नेपाल की गोलबंदी का इससे भी बड़ा कारण दोनों देशों में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार होना भी है। इस विचारधारा के बूते दोनों देश भारत पर चढ़ाई करना चाहते हैं। नेपाल जनता है कि वह अकेले दम पर भारत से मुक़ाबला नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी अपनी हर जरूरत के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भरता है। पर कम्युनिस्ट विचारधारा की गोलबंदी की वजह से वह चीन के लालच जाल में फंस गया है और चीन के बूते भारत से इन क्षेत्रों को हथियाने के सपने देखा रहा है।
   जिस इलाके लिंपियधुरा, कालापानी और लिपूलेख को नेपाल ने अपने नक्शे में शामिल किया है, असल में वह इलाका भारत के पास है। 1815 में जब गोरखाओं का ब्रिटिश सेनाओं से युद्ध हुआ था तो उन्होंने यह इलाका जीत लिया था। इसके बाद यह भारत भूमि का हिस्सा बन गया था। 1816 में ब्रिटिश सरकार और नेपाल के बीच सुगौली की संधि हुई थी, जिसमें नेपाल के महाराज ने सिक्किम, नैनीताल, दार्जिलिंग, लिपूलेख, कालापानी इलाका ब्रिटिश भारत को सौंप दिया था। यही नहीं तराई का इलाका भी अंग्रेजों ने नेपाल से छीन ल‍िया था, लेकिन भारत के वर्ष 1857 में स्‍वतंत्रता संग्राम में नेपाल के राजा ने अंग्रेजों का साथ दिया था। जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्‍हें इसका इनाम दिया और पूरा तराई का इलाका नेपाल को दे द‍िया। तराई के इलाके में भारतीय मूल के लोग रहते थे, लेकिन अंग्रेजों ने जनसंख्‍या के विपरीत पूरा इलाका नेपाल को दे द‍िया। 
यह है विवाद की मूल वजह
1816 में ब्रिटिश सरकार और नेपाल के बीच जब सुगौली की संधि हुई थी, उस समय दोनों देशों के बीच कोई पुख्ता सीमांकन नहीं किया गया, बल्कि महाकाली नदी को अंतराष्ट्रीय बॉर्डर माना गया। अब विवाद इस बात को लेकर है कि आखिर महाकाली नदी का उद्गम स्थल कौन सा है। क्योंकि महाकाली नदी के उदगम के तीन स्रोत हैं, लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपूलेख। भारत मानता है लिपूलेख महाकाली नदी का उद्गम स्थल है, जबकि नेपाल कहता है लिंपियाधुरा महाकाली नदी का उद्गम स्थल है। जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के तहत आता है। कालापानी इन दोनों क्षेत्रों के बीच में है। भारत के हिसाब से लिपूलेख महाकाली नदी का उद्गम स्थल है, इसीलिए लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपूलेख का पश्चिम का इलाका उसका है, नेपाल लिंपियाधुरा को महाकाली नदी का उद्गम स्थल मानने की वजह से लिंपियाधुरा सहित कालापानी और लिपूलेख को अपना हिस्सा मानता है। लिपूलेख वह दर्रा है, जो त्रिकोण में है, जिसके एक तरफ भारत, एक तरफ नेपाल और एक तरफ चीन है। भारत ने हाल ही में जिस 80 किलोमीटर रोड का निर्माण किया है, वह चीन की सीमा से सटे 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रा से उत्तराखंड के धारचूला को जोड़ता है। इस सड़क को बनाने का मकसद कैलाश मानसरोवर यात्रा को आसान बनाना है और भविष्य में कभी जरूरत पड़ी तो भारत इस सड़क मार्ग पर सेना को भी उतार सकता है। लिंपियाधुरा को महाकाली नदी का उदगम स्थल मानने की वजह से नेपाल कहता है कि भारत ने उसके क्षेत्र में सड़क का निर्माण किया है। कुल मिलाकर विवाद की वजह महाकाली नदी के उदगम स्थल को लेकर अलग अलग धारणाओं का होना है। नेपाल महाकाली नदी पर भी अपना दावा जताता है, जबकि वह उत्तराखड़ की चार बड़ी नदियों में गिनी जाती है।


भारत में घुसपैठ की फिराक में है चीन
चीन चाहता है कि यह इलाका नेपाल के पास जाए, जिससे वह नेपाल को विश्वास में लेकर इस इलाके से भारत में घुसपैठ कर सके। जबकि भारत ऐसा कतई नहीं होने देगा, क्योंकि चीन के साथ युद्ध होने की स्थिति में यह इलाका भारत के लिए मजबूत मोर्चा साबित होगा। 1962 की लड़ाई में ऐसा हुआ है। जहां भारत ने युद्ध में बहुत मजबूती दिखाई थी। यहां चीन की सेनाएं कोशिश के बाद भी फटक तक नहीं पाईं थीं। 1962 के बाद से लगातार ही भारत इस इलाके में बना रहा है। और नेपाल ने भी कभी इसे लेकर कोई विवाद खड़ा नहीं किया। जैसे जैसे भारत सीमाओं में सड़कों को विकसित कर रहा है, यह भी चीन की परेशान होने की एक बड़ी वजह है। इसीलिए चीन नेपाल को लालच में फंसाकर इस इलाके में घुसपैठ आसान करना चाहता है। चीन ने नेपाल को थिंयान्जिन, शेंज़ेन, लिआनीयुगैंग और श्यांजियांग पोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति दी है। दोनों देशों में दोस्ती यहाँ तक बढ़ गई है कि अब नेपाल चीन के महत्‍वाकांक्षी बीआरआई प्रोग्राम में भी शाम‍िल हो गया है। चीन नेपाल तक रेलवे लाइन बिछा रहा है और बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रहा है। पर नेपाल को यह समझने की जरूरत है कि चीन कभी किसी के साथ वफादार नहीं रहा। इस मोर्चे पर नेपाल के लिए ही परेशानी यह खड़ी होगी कि वह लालच में चीन का कर्जदार बन जाएगा और चीन उसे मोहरे की तरह इस्तेमाल करता रहेगा। ऐसे में, नेपाल को यह समझने की जरूरत है कि रोटी बेटी के संबंधों वाले भारत के साथ बातचीत के मोर्चे पर आगे बढ़े और आपसी सहमति से विवाद का हल खोजे।

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