धोखेबाज चीन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत | india china border dispute in ladakh in hindi
चीन ने दुस्साहस कर जिस प्रकार भारतीय सैनिकों पर हमला किया, यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि चीन का चरित्र ही ऐसा है। वह जो कहता है, वह करता नहीं है। इतिहास में कई ऐसी घटनाएं हैं। भारत के साथ ही नहीं, बल्कि वह अपने अन्य पड़ोसियों के साथ भी इस तरह की हरकत हमेशा से करता आया है। अपने पड़ोसी छोटे-छोटे अन्य देशों के साथ वह इस तरह का दुस्साहस करे, वह अलग बात है, लेकिन भारत जैसे विशाल और शक्तिशाली देश के साथ इस तरह की घटना को अंजाम दे, वह कतई बर्दास्त के काबिल नहीं हो सकता है। इस घटना को किसी भी स्थिति में हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इसीलिए भारत को उन सभी मोर्चों पर विचार कर नई रणनीति बनानी चाहिए, जो सीमा को लेकर चीन की दुखती रग पर चोट कर सके। बशर्ते, युद्ध ही इसका विकल्प नहीं हो सकता है, बल्कि आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर भी मजबूत पैंतरा चीन के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है। कुल मिलाकर वह ऐसी चोट होनी चाहिए, जिसके बाद भविष्य में चीन मुंह उठाकर एलएसी पर चले आने की हिम्मत न करने पाए।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद नया नहीं है, बल्कि वर्षों पुराना है, लेकिन इस बार उसने जो दुस्साहस किया है, वह बिल्कुल भी भुलाया जा सकने वाला नहीं है। पिछले 45 वर्षों में चीन से लगी सीमा पर इस तरह की कज्वेलटीज हुई हैं। चीन अपने दूसरे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जिस प्रकार अपनी ताकत दिखाने का ठोंग रच रहा है, वह दुस्साहसपूर्ण के साथ-साथ कायराना भी है। ऐसा वही देश कर सकता है, जिसका चरित्र धोखे से भरा हुआ हो। हमारे वीर जवानों की शहादत की कीमत हमें समझनी होगी। और भारत को अब ऐसा नहीं चलेगा वाली नीति पर काम करना होगा, क्योंकि चीन की ऐसी कारस्तानियां 1962 से चली आ रही हैं। 1962 में भी उसने इसी तरह धोखे के साथ युद्ध छेड़ा था, जबकि उस समय भी परस्पर बातचीत के जरिए विवाद का हल खोजे जाने के प्रयास किए जा रहे थे, लेकिन चीन ने अपने दोहरे चरित्र का परिचय देते हुए दूसरी तरफ युद्ध की तैयारियां कर ली थीं। युद्ध किसी का समाधान नहीं हो सकता है, लेकिन जब किसी दोहरे चरित्र के साथ वह अपनी रणनीति विस्तार कर रहा हो तो उसको उसी की भाषा जबाब दिया जाना बहुत जरूरी हो जाता है। अब ऐसी ही कुछ परिस्थितियां चीन ने खड़ी कर दी हैं। उसके दिमाग में 1962 वाली जीत है, इसीलिए वह दुस्साहस करने की हिम्मत कर रहा है। अगर, चीन को एक बार सबक सिखा दिया जाएगा तो वह भविष्य में इस तरह का दुस्साहस नहीं कर पाएगा। 1992 के युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था।
बाद में, एक माह बाद चीन ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की थी और अपनी सेना को एलएसी से 20 किलोमीटर पीछे कर लिया था। इसके बाद 1967 में भी चीन ने सिक्किम बॉर्डर के करीब भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की थी, जिसके चलते सीमा पर दोनों देशों के बीच संघर्ष हुआ था। 1975 में अरूणांचल प्रदेश में लगी हुई सीमा पर भी चीन ने एलएसी के अंदर घुसने की कोशिश की थी। इस दौरान दोनों देशों की सेनाओं के बीच गोलीबारी हुई थी, जिसमें भारत के 4 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद 1986-87 के दौरान भारत ने चीन को सबक सिखाने की मंशा से सेना ने ऑपरेशन फाल्कन नाम से अभियान चलाया, हालांकि बाद में बातचीत के जरिए सीमा पर शांति बहाल करने पर सहमति बन गई थी। इसी के बाद 1988 के दौरान दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दे पर बातचीत के लिए ज्वांइट वर्किंग गु्रप बनाने पर सहमति बनी थी।
आगे चलकर 1993 में नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था, जिसके तहत 1996 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विश्वास बहाली के समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन चीन ने यहां भी अपने दोहरे चरित्र का परिचय दिया और जब 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ तो चीन ने पैंगोंग शो झील के दक्षिण भाग में 5 किलोमीटर तक सड़क का निर्माण कर लिया था, लेकिन जब आज भारत अपने भू-भाग पर सड़कों का विस्तार कर रहा है तो उसको परेशानी हो रही है। इसके बाद चीन का सड़क निर्माण कार्य चलता रहा। सन् 2000 में भी चीनी सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करते हुए लदख के अक्साई चीन इलाके में पक्की सड़क और बंकर का निर्माण किया। 2013 में भी चीनी सैनिकों ने लदख के दीपसंग घाटी में घुसपैठ की थी, हालांकि बाद में बातचीत के बाद तनाव को खत्म कर दिया गया था। इसी साल अक्टूबर यानि 2013 में ही दोनों देशों के बीच बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन अग्रीमेंट भी हुआ। इसके अगले ही साल 2014 में चीनी सैनिकों ने लदख के चुनार इलाके में सड़क बनाने की कोशिश की। जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीनी राष्ट्पति शी चिनफिंग के समक्ष मुद्दा उठाया तो, तब जाकर मामला थोड़ा शांत हुआ था। 2017 की डोकलाम वाली घटना अभी सभी के जेहन में ताजा होगी। चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टईजंक्शन में भूटान सीमा के करीब सड़क बना रहे थे। जब भारतीय सेना ने उन्हें सड़क बनाने से रोका तो वहां संघर्ष शुरू हो गया था। इस सीमा पर करीब 71 दिनों तक तनाव की स्थिति बनी रही। जब लंबी बातचीत के दौर के बाद चीनी सैनिक पीछे हटे तो तब जाकर मौके पर तनाव खत्म हो सका।
एलएसी के पार अपने भू-भाग पर वह सड़कों व अन्य सुविधाओं का विस्तार करता है, जिसका भारत ने विरोध नहीं किया, लेकिन जब भारत अपने भू-भाग पर इसी तरह संसाधनों का विस्तार कर रहा है तो उसे परेशानी क्यों हो रही है ? बशर्तें, उसके बहुत सारे कारण हैं, लेकिन प्राथमिक रूप से तो यह स्वयं को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर दादा दिखाने की मानसिकता से अधिक और कुछ नहीं सकता है। चीन दिखावटी बनना चाहता है और स्वयं को सुप्रीम दिखाने की तरफ अग्रसर होते रहना चाहता है। उसकी यह चाल पहले से ही चली आ रही है। सीमा पर विवाद होते रहे हैं, लेकिन बातचीत के बाद शांति भी बहाल होती रही, पर इस बार जिस तरह हमें अपने 20 जवानों को खोना पड़ा है, इसे अब हल्के में लेना कमजोरी ही माना जाएगा। चीन को सख्त संदेश जाना बहुत जरूरी है। उसको आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए चीनी सामान का बहिष्कार तो बहुत जरूरी है ही, बल्कि चीन के खिलाफ कारगिल की तरह सैन्य कार्रवाई भी जरूरी है।
कोरोना महामारी के चलते युद्ध अभी आवश्यक नहीं था, लेकिन यह सिर पर आया हुआ युद्ध है। चीन बार-बार भारत को युद्ध के लिए उकसा रहा है। ऐसे में, चीन को यह दर्शा देना बहुत जरूरी है कि हम सैन्य क्षमता में किसी से कम नहीं हैं। जब तक चीन की यह गलतफहमी दूर नहीं होगी, तब तक वह इस तरह की धोखबाजी करता रहेगा। दूसरा, मुख्य मुद्दा है सीमा विवाद की वजह। सीमा को लेकर कंन्फूजन दूर किया जाना चाहिए और एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा का निर्धारण पक्के तौर पर किया जाना चाहिए, जिससे भविष्य में चीन भारतीय भू-भाग पर अपना झूठा दावा ठोंकने की हिम्मत न करने पाए। कूटनीतिक तौर पर भारत चीन पर भारी है ही। कोरोना संकट के बाद चीन पहले ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चारों तरफ से घिरा हुआ है। ऐसे में, इस बार भारत के लिए चीन को घेरना भी आसान होगा।
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