कोरोना ने लगाया दुखती रग पर मरहम | Reverse Migration in Uttarakhand In Hindi
Reverse
migration of 2.90 lakh people is expected in Uttarakhand
उत्तराखंड में 2.90 लाख लोगों के रिवर्स
पलायन की उम्मीद है
पलायन उत्तराखंड का बहुत
बड़ा दर्द रहा है। ऐसा लगा था कि उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनकर राज्य से पलायन कम
होगा। पर 2000 के बाद पलायन में पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ोतरी हुई। कोरोना महामारी ने ही सही, उत्तराखंड
की इस दुखती रग पर मरहम लगाने का काम किया है। अब तक हजारों लोग गाँव की तरफ रिवर्स पलायन कर चुके हैं। कोई भी ऐसा जिला नहीं, जहां रिवर्स पलायन नहीं हुआ है। कई कई दशकों से पहाड़ नहीं गए लोग भी लौट
आए हैं। 2.90 लाख लोगों के वापस आने की संभावना है। गढ़वाल में 18 मई तक 59735
प्रवासी लौट भी चुके हैं और 15 जून तक 149249 प्रवासी लोगों के लौटने की संभावना
है। कुमाऊँ में 18 मई तक 56480 प्रवासी लौट चुके हैं और 15 जून तक 141203
प्रवासियों के लौटने की संभावना है। यह वाकई बहुत ही आश्चर्यजनक तस्वीर है। क्या
यह तस्वीर यूहीं बनी रहेगी, यह अब बहुत बड़ी चुनौती है। सरकार
की योजनाएं कितनी कारगर होंगी, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन अब सरकार के पास भी मौका है और लोगों के पास भी।
जिन लोगों ने गावों से पलायन किया, उनके समक्ष मुख्य वजहें थीं। रोजगार की कमी,
खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव। ये मानव जीवन के
विकास के वे तत्व हैं, जिनके बगैर जीवन की सफल राहों को गढ़ना
मुश्किल होता है। महानगरों में इसके विकल्प तो हैं, बशर्ते
वहां दूसरे तरह के जोखिम हैं। वो सब जीवन के विकास के लिए मौलिक तत्वों के आगे गौण
दिख रहे थे। कोरोना ने उन्हीं चीजों पर चोट की और महानगरों में भीड़ और प्रदूषण में
घुट रहे लोगों को अपना पहाड़ याद आ गया। सहज ही, आम ज़िंदगी
में ऐसा होता है। अगर, सुबह का भुला शाम को घर आ जाता है तो
उसे भुला नहीं कहते, क्योंकि अपने घर,
गाँव और अपने लोगों से लगाव कभी खतम नहीं हो सकता है। यह वही, लगाव था, जो वर्षों, दशकों के
बाद भी लोगों को अपने गाँव खींच लाया। पहाड़ की वो वादियाँ आज गुलजार हैं, जो वीरान हो गईं थीं। अगर, पलायन के दर्द को सरकार के
नुमाइंदे ठीक से समझंगे तो शायद ये वीरान वादियाँ आगे भी गुलजार ही रहेंगी।
उत्तर
प्रदेश से अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी पलायन नहीं रुका, इसमें दोष सरकारों का था। राज्य
अलग हुए दो दशक बीत चुके हैं। इस अवधि में राज्य आठ मुख्यमंत्रियों को देख चुका
है। इस दौरान भी गाँव के गाँव खाली होते गए और घरों पर ताले लटकते रहे, यह वाकई देवभूमि की भयावह तस्वीर को बताता है। 2011
की जनगणना के अनुसार 2.85 लाख घरों में ताले लटक हुए
थे और 968 गाँव को भुतहा घोषित किए जा चुका था। यानि जो गाँव भूतों के निवास स्थान
बन चुके थे। ऐसे गाँव में कोई नहीं रहता था और घर खंडहर में तब्दील हो चुके थे। दो
हजार के लगभग गाँव ऐसे हो गए थे, जिनके बंद घरों के
दरवाजे पूजा या खास मौके पर ही खुलते थे। पलायन आयोग की रिपोर्ट भी बताती है कि
उत्तराखंड में 405 ऐसे गाँव रह गए थे, जिनमें महज 10 से भी
कम नागरिक रह रहे थे। अकेले अल्मोड़ा जिले में ही 70 हजार से भी अधिक लोगों ने
पलायन किया। राज्य सरकार ने राज्य में बढ़ती पलायन की समस्या को देखते हुए 17
सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया था और 2018 में आयोग ने सरकार को अपनी पहली
रिपोर्ट सौंपी थी। सरकार के नुमाइंदों ने भी पलायन के दर्दनाक आकड़ों का विश्लेषण कर
लिया होगा।
इन सब हालातों
के बीच अब गेंद भी सरकार के ही पाले में है। इसमें कोई शक नहीं है कि प्रवासी
लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार भी उत्साहित दिख रही है, लेकिन हमारे सिस्टम में अधिकांश समय इस तरह का उत्साह केवल कागजों में ही
दिखता है। जितनी जल्दी योजनाएं बनती हैं, उतनी जल्दी वे
योजनाएँ दम भी तोड़ देती हैं, या फिर उन लोगों तक योजनाओं का लाभ
नहीं पहुँच पाता है, जो वास्तव में इसके हकदार होते हैं। इसका
सबसे बड़ा कारण यही है कि सिस्टम की जड़ों में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता है। आम लोगों
को भले ही सरकार की तरफ से हर बार दिखाने की कोशिश होती है कि भ्रष्टाचार अब नहीं है, योजनाओं में पारदर्शिता आ गई है, लेकिन इसे 100 फीसदी
सच नहीं माना जा सकता है। इस बार सरकार की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। राज्य सरकार के
पास डबल इंजन वाली सरकार का भी अधिकार है। केंद्र की सरकार भी प्रवासियों को उन्हीं
के क्षेत्र में रोजगार दिलाने के पक्षधर है। ऐसे में, अगर राज्य
सरकार पलायन रोकने संबंधी योजनाओं पर जमीनी तौर पर काम करती है तो वाकई पहाड़ की तस्वीर
बदल जाएगी।
आकड़ों में उत्तराखंड की तस्वीर
राज्य में हैं कुल 7555
कुल ग्राम पंचायतें
राज्य में गांवों की
संख्या है 16793
3000 गांव
अब तक हो चुके हैं खाली
3200000 लोग
अब तक छोड़ चुके हैं पहाड़
280000 घरों
पर अब तक लटक चुके हैं ताले
750 स्कूल
भवन हो चुके हैं जर्जर
5000 गांव
सड़क सुविधा से अब भी हैं वंचित
2344 प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूल बंदी के हैं कगार
पर
पलायन आयोग की रिपोर्ट पर एक नजर
2011 तक प्रदेश में खाली हो गए थे 1034 गाँव
2018 तक खाली हो चुके थे 1734 गाँव
राज्य में 405 गाँव ऐसे थे, जहां 10 से कम लोग रहते थे
प्रदेश में 3.5 लाख गाँव पड़ चुके थे वीरान
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के गृह जनपद
पौड़ी में ही अकेले 300 से अधिक गाँव थे खाली
गाँव खाली होने के मामले में पौड़ी और अल्मोड़ा
जिले रहे टॉप पर
अल्मोड़ा जिले में ही 70 हजार से भी अधिक लोगों ने
किया पलायन
पलायन करने वालों में 42.2 फीसदी 26 से 35
आयुवर्ग के युवा थे शामिल
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