नेपाल का हतोत्साहित करने वाला कदम | india nepal border issue in hindi
नेपाल ने नए नक्शे को लेकर किए जाने वाले
संवैधानिक संशोधन संबंधी प्रस्ताव को संसद में पेश कर दिया है। मुख्य विपक्षी
नेपाली कांग्रेस का भी इस प्रस्ताव को समर्थन मिल गया है। भारत द्वारा बातचीत का
रास्ता खुला रखने के बाद भी नेपाल ने यह कदम उठाया है। चीन के उकसावे में आकर
नेपाल द्वारा उठाया गया यह कदम हतोत्साहित करने वाला है, क्योंकि भारत नेपाल के बीच के संबंध एक दो दशक के नहीं हैं, बल्कि दोनों देशों के संबंध अनाधिकाल से चले आ रहे हैं। ऐसे में, नेपाल ने एक बार भी नहीं सोचा कि इस मामले में चीन का समर्थन लेने के
बजाय सीधे भारत से बातचीत कर ली जाए। उसको इसे इसीलिए भी जरूरी समझना चाहिए था, क्योंकि भारत और नेपाल कोई पड़ोसी भर ही नहीं हैं,
बल्कि दोनों देशों के बीच धार्मिक,
सांस्कृतिक, भाषायी और ऐतिहासिक संबंधों का एक पूरा सफर है, जिसे दोनों देशों की खुली सीमाओं और रोटी-बेटी के संबंधों ने हमेशा से प्रगाढ़
बनाए रखा है। फिर अब इन संबंधों को कमजोर करने की जरूरत क्यों पड़ रही है।
दोनों
देशों ने 1950 में शांति एवं मैत्री संधि के माध्यम से अपने संबंधों को और भी
विशिष्ट आधार प्रदान किया था। इस संधि के प्रावधानों
के तहत नेपाली नागरिकों ने भारतीय नागरिकों के समान भारत में सुविधाओं और अवसरों
का अभूतपूर्व लाभ उठाया है। वर्तमान समय में, लगभग 60 लाख नेपाली नागरिक भारत
में रहते हैं और यहां अलग-अलग तरह के रोजगार से जुड़े हुए हैं। भारत और नेपाल के बीच नियमित रूप से उच्च स्तरीय
बातचीत का दौर चलता रहता है। आम लोगों के साथ-साथ राष्ट्र प्रतिनिधियों की भी
यात्राएं नियमित रूप से होती रहती हैं। तत्कालीन नेपाली प्रधानमंत्री सुशील
कोइराला 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने भारत भी आए थे। अगस्त 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता के लिए नेपाल
की यात्रा की। इसके बाद नवंबर में भी सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल
की यात्रा की, जिसमें दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय
करारों पर हस्ताक्षर किए गए। नेपाल की भारत पर बहुत अधिक निर्भरता है। इसको भारत
भली भांति समझता भी है और संकट के समय नेपाल के साथ खड़ा भी होता है। 25 अप्रैल 2015 को जब नेपाल में 7.4 तीव्रता का भूकंप आया, तो नेपाल को भारी तबाही का
सामना करना पड़ा था। तब भारत मदद के लिए आगे आया था। भारत सरकार ने नेपाल में
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया दल और राहत सामग्री सहित विशेष विमान को नेपाल के बचाव
के लिए भेजा।
पिछले दशकों में दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते
भी गहरे हुए हैं। 1996 के बाद भारत और नेपाल के निर्यात 11 गुना अधिक और द्विपक्षीय
व्यापार में 7 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। भारत से नेपाल को बहुत सी चीजें
निर्यात होती हैं, जिनमें सीमेंट,
रसायन, पेट्रोलियम उत्पाद, मोटर वाहन, मशीनरी और कलपुर्जे, तार, कोयला
और स्पेयर पार्ट्स मुख्य रूप से शामिल हैं, जबकि नेपाल से
भारत में निर्यात होने वाली चीजों में मुख्य रूप से पैकेज्ड जूस, इलायची, पाइप, जूते, पॉलिएस्टर का धागा, जूट का सामान, धागा और जड़ाई शीट आदि शामिल हैं। नेपाल से भारत का निर्यात साल 2013-14 के
दौरान 3713.5 करोड़ रुपए था और भारत से नेपाल का निर्यात इसी अवधि में 29545.6 करोड़
था। जब दोनों देश सांस्कृतिक, धार्मिक,
ऐतिहासिक और व्यापारिक रिश्तों से इतने गहरे संबंधी हों, तो उस
स्थिति में न तो किसी तीसरे देश को बीच में आना चाहिए और न ही हमें उसके उकसावे में
आना चाहिए। सीमा विवाद पर भारत के साथ तनाव पैदा करने के लिए नेपाल को चीन की गोद में
बैठने के बजाय भारत से बातचीत के लिए आगे आना चाहिए था, बातचीत
से सीमा को लेकर जो भी गलतफहमियां थी, उन्हें दूर किया जा सकता
था। चीन का तो हमेशा से ही मकसद रहा है कि अच्छे संबंध रखने वाले देशों के बीच दरार
डालकर खुद चौधरी बने। अब इस मामले में गेंद भारत के पाले में है कि वह कैसे नेपाल को
बातचीत के लिए मनाता है।
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