भारत में इस तरह बढ़ सकती है बाघों की आबादी | In-this-way, tiger- population-can-increase-in-India


भारत सरकार द्बारा जारी बाघ गणना रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी बाघों की आबादी भारत में रहती है। 
29 जुलाई यानि बुधवार को विश्व बाघ दिवस मनाया गया। पिछले कुछ वर्षों में बाघों की आबादी में भले ही बढ़ोतरी हुई है, लेकिन 100 साल पहले बाघों की जो संख्या थी, वह अब नहीं है, क्योंकि बाघों के प्राकृतिक आवासों पर जिस तरह विकास का बुल्डोजर चला है, उसने व्यापक स्तर पर बाघों के आवासों को खत्म किया है। इसका असर यह हो रहा है कि बाघों का मानव आबादी की तरफ तेजी से आवागमन बढ़ा है। जिसके चलते मानव और बाघों के बीच लगातार संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर, देश में विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखा जाए तो आने वाले वर्षों में भारत में बाघों की संख्या में और भी बढ़ोतरी होगी।


बाघों की 70 फीसदी आबादी भारत में
पूरी दुनिया में जहां केवल 3,900 बाघ ही बचे हैं, उनमें से भारत में बाघों की संख्या 2,967 है। यानि 70 फीसदी बाघों की आबादी भारत में रहती है। यह डेटा भारत सरकार द्बारा जारी बाघ गणना रिपोर्ट में सामने आई है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह रिपोर्ट स्वयं जारी की, जो विश्व बाघ दिवस की पूर्वसंध्या पर जारी की गई। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे अधिक बाघ मध्यप्रदेश में हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक देश के 8 राज्यों में बाघों की संख्या 100 से अधिक है। राज्यवार बाघों की बात करें तो मध्यप्रदेश में 526, कर्नाटक में 524, उत्तरखंड में 442, महाराष्ट्र में 319, तमिलनाडु में 264, असम में 190, केरल में 190 व उत्तर-प्रदेश में 173 बाघ हैं। रिपोर्ट में देश के विभिन्न हिस्सों के 50 टाइगर रिजर्व की स्थिति को भी बताया गया है, उनमें बाघों की संख्या की बात करें तो उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट रिजर्व में सबसे अधिक 231 बाघ हैं। बांधवगढ़, बांदीपुर, नागरहोल, मुदुमलाई और काजीरंगा में 100 से अधिक बाघ हैं। इसके अलावा दुधवा, कान्हा, तडोबा, सत्यमंगलम और सुंदरवन में 80 से अधिक बाघ मिले हैं। मिजोरम के डंपा और पश्चिम बंगाल के बुक्सा रिजर्व में बाघ नहीं बचे हैं। वहीं, पलामू टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ की उपस्थिति दर्ज नहीं हुई है। 
भारत में 12 वर्षों में बढ़ी बाघों की आबादी
भारत के लिए यह बहुत अच्छी बात है कि देश में लगातार बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। साल 2006 में देश में बाघों की आबादी 1411 थी, वहीं 2010 तक यह आबादी बढ़कर 1706 तक पहुंच गई थीं। 2014 तक इस संख्या में और भी बढ़ोतरी हुई और बाघों की आबादी 2226 हो गई थी। 2018 तक यह संख्या 2967 पहुंच गई है। देश में तीन क्षेत्रों में पिछले 12 वर्षों के दौरान बाघों की आबादी दोगुनी हुई है, जबकि ओवर ऑल इस अवधि के दौरान 6 फीसदी के हिसाब से बाघों की आबादी बढ़ी है। जिन तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाघों की तादाद बढ़ी है, उनमें शिवालिक की पहाड़ियां, पश्चिमी घाट क्षेत्र और पूर्वोत्तर के पहाड़ों व ब्रहमपुत्र के मैदानी क्षेत्र शामिल हैं। शिवालिक की पहाड़ियों, गंगा के मैदानों में संख्या 297 से बढ़कर 646 हो गई, जबकि पश्चिमी घाट क्षेत्र में बाघों की संख्या 402 से बढ़कर 981 हो गई। वहीं, पूर्वोत्तर के पहाड़ों व ब्रहमपुत्र के मैदानी इलाकों में बाघों की आबादी 100 से बढ़कर 219 हो गई। मध्यप्रदेश और पूर्वी घाटों में बाघों की आबादी में करीब 59 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले 12 वर्षों के दौरान बाघों की आबादी 601 से बढ़कर 1033 हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी घाटों में संयुक्त रूप से सर्वाधिक 724 बाघ हैं, जबकि दूसरे स्थान पर उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 604 बाघ रहते हैं। 2018 टाइगर रिपोर्ट के अनुसार अभी की बाघों की आबादी 2,967 में से 1,923 यानि 65 फीसदी बाघ ही संरक्षित क्षेत्र में हैं। शेष 35 फीसदी इनके दायरे के बाहर हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक मौजूदा स्थिति में संरक्षित रिजर्व क्षेत्रों का समुचित इस्तेमाल नहीं होने के कारण बाघ बाहर रहने को मजबूर हैं। यही वजह है कि लगातार मानव और बाघों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। 
100 साल पहले एक लाख थी आबादी
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के मुताबिक 100 साल पहले दुनियाभर में बाघों की संख्या 1 लाख थी, लेकिन 20वीं सदी की शुरूआत में बाघों की 95 फीसदी आबादी समा’ हो गई। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के आकड़ों के मुताबिक पिछले साल तक दुनियाभर में बाघों की संख्या 3,900 थी। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुमान के मुताबिक 1947 में अनुमानित तौर पर भारत में बाघों की संख्या 40 हजार के करीब थी, लेकिन विकास की दौड़ में खत्म हो रहे प्राकृतिक आवासों के चलते बाघों की आबादी कम होते चली गई। ऐसा बताया जाता है कि दुनियाभर में बाघों ने अपने करीब 93 फीसदी प्राकृतिक आवास गंवा दिए हैं, क्योंकि औद्योगिकीकरण और विकास के नाम पर मानव लगातार जंगलों को खत्म कर रहे हैं। इसके अलावा वनों और घास के मैदानों का कृषि जरूरतों के लिए तेजी से उपयोग बढ़ने लगा है। बाघों के पास प्राकृतिक आवास कम बचे हैं, इसकी वजह से उनका मानव आबादी की तरफ आना लगातार बढ़ रहा है, जिसके कारण मानव और बाघ के बीच संघर्ष होता है, जिसमें मानव को भी नुकसान पहुंचता है और बाघों को भी। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक संरक्षित आवास के निर्माण, सुरक्षित गलियारे और संसाधनों पर खर्च को बढ़ाया जा सकता है। खासकर, बाघों की घनी आबादी वाले कुछेक इलाकों पर ही अधिक ध्यान न देकर अन्य संभावित क्षेत्रों के विकास पर अधिक जोर देना चाहिए। इसका असर यह होगा कि बाघों की आबादी बढ़ने लगेगी और भारत के बाघों को रखने की क्षमता भी बढ़ेगी।
भारत में आवास का दायरा बढ़ाने की है गुंजाइश
हाल के वर्षों में जो स्थितियां देखने को मिली हैं, उनके मुताबिक बाघों के आवासों को हाइवे, सड़कों आदि के बढ़ते निर्माण से बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा बिजली की बढ़ती लाइनों और खनन के बढ़ते धंधों की वजह से भी बाघों के प्राकृतिक आवास खत्म हुए हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक हमें आंख मूंदकर विकास करने बजाय विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने पर अधिक ध्यान देना होगा। सरकार ने जो सर्वे रिपोर्ट पेश की है, उसमें भी कहा गया है कि बाघों के अधिकांश आवासीय गलियारे संरक्षित क्षेत्र में नहीं हैं। बढ़ते मानवीय उपयोग और विकास परियोजनाओं के कारण इसमें गिरावट आ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में 90 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में ही बाघों की मौजूद्गी है, जबकि देश में करीब 3.81 लाख वर्ग किमी क्षेत्र बाघों के लिए उपयुक्त है। इस स्थिति में देश में बाघों के आवास का दायरा बढ़ाने की बहुत अधिक गुंजाइश है। अगर, उनके आवासों में वृद्धि होगी तो निश्चित तौर पर बाघों की संख्या स्वत: ही बढ़ने लगेगी।

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