शिकारी पक्षियों में पाए जाने वाले रोगजनक सूक्ष्मजीव मानवजाति के लिए खतरा: अध्ययन | Pathogenic microorganisms found in-birds-of-prey-are-a-threat-to-mankind: study
रुपोर्निस माग्निरोस्ट्रिस
और कारकारा प्लैंक्स प्रजाति की पक्षियों के मुखग्रसनी से अलग किए गए प्रतिरोधी
सूक्ष्मजीवों और बॉयोफिल्म उत्पादकों की पहचान के लिए किए गए अध्ययन में यह तथ्य
सामने आए हैं
पर्यावरण में मौजूद
कार्बनिक यौगिकों के संपर्क में आने की संभावना
बाज कारिजो (रुपोर्निस
माग्निरोस्ट्रिस) और काराकरा प्लैंकस क्रमश: फलकोनीफॉर्मेस और ऑक्सिपितरिफॉर्म्स
प्रजातियों से संबंध रखने वाली पक्षियां हैं। मुख्यत: ये प्रजातियां अमेरिका के
अलावा दक्षिण अमेरिका और ब्राजील के कई सीमावर्ती इलाकों में व्यापक रूप से पाई
जाती हैं। छोटे जानवरों की संख्या को नियंत्रित करने की दृष्टि से इनकी बड़ी
पारिस्थितिक भूमिका मानी जाती है, क्योंकि जिस माहौल या वातावरण में ये रहती हैं,
उस पारिस्थितिकी तंत्र के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलती है। अपने
भोजन की तलाश में ये कई प्रकार के वातावरणों में निवास करती हैं। जैसे, सड़कों के
किनारे, जंगल के किनारों और चरागाहों में। लेकिन परिवर्तित होती पर्यावरणीय
परिस्थितियों में इनके निवास के संरक्षण की संभावनाएं बढ रही हैं, जो शहरी
क्षेत्रों में मानवजनित वातावरण के करीब पहुंच रही हैं । ऐसे में, इनके पर्यावरण
में मौजूद कार्बनिक यौगिकों के संपर्क में आने की संभावना भी बढ रही है। शिकार
मुक्त रहने वाली पक्षियों, पक्षियों के अन्य समूहों, मुर्गी फार्मों व जलाशयों तक
भी ये संक्रमण के प्रसार का कारण बन सकते हैं। सीरोलॉजिकल अध्ययनों से भी यह पता
चला है कि मानवजनित क्षेत्रों में इनके बढते संपर्क की वजह से दूषित मानव अवशेषों
तक इनकी पहुंच हो रही है और एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के साथ इन
शिकारी पक्षियों के संपर्क को भी बढावा मिल रहा है, जो संक्रमण के प्रसार के खतरे
को बढाने का कारण बन रहा है।
शोध टीम ने
एंटावोबैक्टीरिया की पहचान रुपोर्निस माग्निरोस्ट्रिस में मौजूद स्वैब,उनमें ई-कोलाई, के.
निमोनिया और साल्मोनेला एसपीपी. में प्रतिरोध प्रोफाइल के साथ की, जिसमें
सिप्रोफलोक्सासिन और बीटा-लैक्टम के बहुत से प्रतिरोधी पाए गए। प्रतिरोधी सूक्ष्म
जीवों द्बारा इन पक्षियों के संभावित उपनिवेशण के अलावा, ये संक्रामक एजेंट
वायरलेंस कारकों के उत्पादक भी हो सकते हैं, जैसे कि बायोफिल्म में सेसाइल कोशिकाओं,
मोनो या मल्टीस्पेशियों का एक समूह होता है, जो बैक्टीरिया या कवक मूलक हो सकता
है। ये एक बायोटिक या अजैविक सतह का पालन करते हैं, जो एक कार्बनिक बहुलक
मैट्रिक्स, एक्सोपॉलीसेकेराइड से घिरा होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार बायोफिल्म की
भौतिक संरचना सूक्ष्मजीवों की कुछ प्रजाति में रोगाणुरोधी प्रतिरोध में योगदान
करती हैं और बॉयोफिल्म में सूक्ष्मजीवों के बाद से संक्रमण की पुनरावृत्ति की
व्याख्या कर सकती है। उनके अनुसार शिकारी पक्षियों में रोगाणुरोधी और बॉयोफिल्म
उत्पादकों के लिए प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों की पहचान दुर्लभ है, इसीलिए इस प्रारंभिक
अध्ययन का उद्देश्य रुपोर्निस माग्निरोस्ट्रिस और काराकरा प्लैंकस के मुखग्रसनी से
अलग इन रोगजनकों की पहचान करना था। इस तरह, हम वैज्ञानिक क्षेत्र में इस अंतर को
भरने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में योगदान करने का इरादा रखते हैं, क्योंकि ये
प्रजातियां मानवजनित वातावरण में मौजूद हैं और रोगजनकों के प्रसारकर्ता बन सकते
हैं। इसीलिए हमें बॉयोमेडिकल, औद्योगिक कचरे व मानव अवशेषों का उचित निपटान करना
होगा, क्योंकि उचित निपटान नहीं होने की वजह से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता
है।
अलग-अलग उम्र और वजन के
पक्षियों को शोध के लिए चुना
ब्राजील के इंस्टीट्यूट ऑफ
एनवायरनमेंट एंड रिन्युएबल नेचुरल रिसोर्सेज की पर्यावरण एजेंसी के वाइल्ड एनिमल्स
ट्राइज सेंटर से प्राप्त अलग-अलग वजन और उम्र के साथ, 6 रुपोर्निस माग्निरोस्ट्रिस
और 6 काराकरा प्लैंकस प्रजाति की पक्षियों को चुना गया। वैज्ञानिकों ने स्टेराइल
स्वैब के प्रयोग से इनके मुखग्रसनी के सैंपल लिए, जिन्हें मुबंई स्थित ब्रेन हार्ट
इनफयूजन बोर्थ (बीएचआईबी) में कोगुलेज पॉजिटिव स्टेफिलोसोसी (सीओपीएस), ट्रेटो
थियोनेट ब्रोथ, इंटरओबकटेरिएसी, साबोयूरॉड और यीस्ट यानि खमीर की जांच के लिए
भेजा। आर. माग्निरोस्ट्रिस के सभी नमूनों और सी. प्लैंकस के दो नमूनों का
प्रतिनिधित्व करने वाले 12 पक्षियों से 8 यानि 67 फीसदी में सीओपीएस की पहचान हुई।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध प्रोफाइल का विश्लेषण करने के बारे में सहवर्ती प्रोफाइल एमआर
और वीआर-सीओपीएस 50 फीसदी नमूनों में पहचाने गए। केवल प्रोफाइनल एमआर सीओपीएस 12.5
फीसदी में ही मौजूद पाया गया और मुख ग्रसनी से पृथक सीओपीएस का 37.5 फीसदी
एंटीबायोटिक संवेदनशील था। आर. माग्निरोस्ट्रिस नमूनों में इन जीवाणुओं की
मौजूद्गी को देखते हुए यह पहचान लिया गया कि एंटीबायोटिक संवेदनशील सीओपीएस की 50
प्रतिशत, एमआर की 33 प्रतिशत और वीआर-सीओपीएस की समवर्ती और केवल एमआर-सीओपीएस की
17 प्रतिशत, जबकि सी प्लैंकस में 100 प्रतिशत नमूनों में वीआर-सीओपीएस स्ट्रेन
मौजूद पाए गए।
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