राफेल: सैन्य इतिहास में नए युग की शुरूआत | Rafale: The beginning of a new era in military history

भारत की धरती पर राफेल (Rafale) का आगमन हो चुका है। यह भारत के सैन्य इतिहास में नए युग की शुरूआत तो है ही, बल्कि दुश्मनों के लिए भी साफ संदेश है। ऐसे वक्त में, भारत के वायुसेना बेड़े में राफेल का शामिल होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, जब पाकिस्तान और नेपाल भारत के खिलाफ हर संभव साजिश रच रहे हैं। चीन लदख में भारत की जमीन पर कब्जा करने की फिराक में जुटा हुआ है। राफेल जैसे अचूक भेदी के वायुसेना में शामिल होने का मतलब है कि हमने अपनी सैन्य ताकत में कई गुना इजाफा कर लिया है और दुश्मन को किसी भी हमले से पहले कई बार सोचना पड़ेगा।


राफेल (Rafale fighter jets) 4.5 पीढ़ी का लडाकू विमान है। भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है, जिसके वायुसेना बेड़े में यह अत्याधुनिक विमान शामिल हुआ है, इससे पहले केवल फ्रांस, मिश्र और कतर के पास ही राफेल लडाकू विमान है। ये मल्टीरोल एयरक्रॉफट हैं, जो कई मोर्चों में भारत की वायुसेना की ताकत को कई गुना बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। और आकाश में किसी भी चुनौती से निपटने में यह अंतिम भूमिका निभाएगा। वायुसेना के अलावा राफेल के आने से भारतीय नौसेना की ताकत में भी इजाफा हो गया है, क्योंकि इस विमान की संहारक क्षमता बहुत ही खतरनाक है। लिहाजा, यह किसी भी मोर्च पर गेमचेंजर साबित होगा। अगर, इन्हें हम वायुसेना और नौसेना के लिए किसी वरदान से कम न माने तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि राफेल लड़ाकू विमानों का हाई एंगल अटैक इसकी एक अलग बड़ी ताकत है। असल में, इस विमान को क्लोज कपल्ड कैन्डर्स व डेल्टा विंग कॉन्फिग्रेशन के साथ तैयार किया गया है, जिस वजह से इस विमान का अत्यधिक उंचाई से टारगेट पर सटीक अटैक करना बेहद आसान होता है। 
वहीं, यह विमान एंटी शिप मिसाइल एएम-39 एग्जॉस्ट को लोड़ करने की क्षमता भी रखता है, इसके साथ ही 500 से 2000 एलबीएस वजनी के नॉन गाइडेड और लेजर गाइडेड बम भी साथ लेकर उड़ने की क्षमता इस विमान में है। अगर, नौसेना भी यदि कोई युद्ध जैसे ऑपरेशन चलाती है तो दुश्मन के पोत को उंचाई से ही राफेल एंटी शिप मिसाइल के जरिए तबाह करने की क्षमता रखता है। यहां हमारे लिए यह जानना भी बेहद जरूरी है कि 1965, 1971 के साथ-साथ 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सभी युद्ध ऑपरेशन में वायुसेना के विमानों ने अहम भूमिका निभाई थी। अगर, भविष्य में सेना सर्जिकल स्टइक जैसे ऑपरेशन के बारे में निर्णय लेती है तो राफेल ऑपरेशन का टारगेट लोकेट होने के बाद निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यह विमान एक समय में बहुत काम करने वाला है, क्योंकि इसमें नवीनतम एवियोनिक्स और शस्त्रागार हैं। लिहाजा, यह हवा में वर्चस्व स्थापित करने, दुश्मन के विमान को रोकने, हवा में टोह लेने, गहरे तल में हमला करने, विरोधी पोतों पर हमला करने और परमाणु हमले रोकने जैसे कार्य भी कर सकता है। 
राफेल का भारत आना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण अंबाला में इनकी तैनाती है। यह सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों पर पूरी निगाह रखी जा सकती है। अंबाला पाकिस्तान की सीमा से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर है और वहां से 300 किलोमीटर की दूरी पर चाइना के साथ लगी एलएसी है। इसीलिए दोनों विरोधियों के खिलाफ एक ही बेस से विमानों का परिचालन किया जा सकता है। अंबाला में इनकी तैनाती का एक और लाभ यह भी है कि यह निचले बेस से विमान बड़े पेलोड के साथ उठाया जा सकता है, इसकी तुलना में चीन अपने विमानों को तिब्बत में तैनात करेगा, जिन्हें ईंधन भार और पेलोड के लिए संघर्ष करना होगा। निश्चिततौर राफेल का आना वायुसेना का मनोबल बढ़ाने वाला तो है ही, बल्कि देश को गर्व की अनुभूति कराने वाला भी है। राफेल राजनीति के केंद्र में भी रहा। राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने तरीके से इस मुद्दे को भुनाने का प्रयास किया है। अब भी वही स्थिति देखने को मिल रही है। राफेल देश की वायुसेना बेड़े में शामिल हो चुका है, उसके बाद भी राजनीति का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है। जब देश पर विरोधियों की नजर है तो ऐसे में राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यह सेना से जुड़ा हुआ मुद्दा है। इसको उसी पर छोड़ देना चाहिए, इसीलिए राजनीति से उपर उठकर राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने वाले मुद्दों पर साथ खड़े होने की कोशिश होनी चाहिए।

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