महानगरों की तरफ फिर लौटने लगे प्रवासी | Migrants return to metros again
लॉकडाउन के दौरान जो
प्रवासी गांवों को लौटे थे, उनका धीरे-धीरे महानगरों के लिए आना शुरू हो गया है।
वे मुबंई, दिल्ली और कोलकाता जैसे शहरों में काम की उम्मीद में लौट रहे हैं। इनमें
फिलहाल, अभी वे ही कामगार हैं, जिनकी अनलॉक-टू के बाद फैक्ट्रियों व वह प्रोजेक्ट
खुल गए हैं, जिनमें वे कार्यरत थे। एक से दूसरे राज्य के लिए बसें शुरू होने व कई
रूटों पर ट्रेनों का संचालन शुरू होने के बाद कामगारों का शहरों की तरफ लौटने का
सिलसिला बढ़ गया है। गांवों में रोजगार के पर्याप्त संसाधन नहीं होने की वजह से भूख
इन लोगों को वापस शहर की तरफ खींच लाई है। उस वक्त ये लोग कोरोना खतरे और
रोजी-रोटी के संकट में वापस गांव लौट गए थे, लेकिन अब कोरोना खतरे को दरकिनार कर
पेट की भूख मिटाने के लिए ये लोग शहर लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं। ऐसे लोगों का
मानना है कि घर व बच्चों की जिम्मेदारी के आगे कोरोना का खतरा कुछ भी नहीं है। कोरोना से बचने के एहतियात बरत सकते हैं, लेकिन भूख मिटाने के लिए काम करना ही पड़ेगा।
Government will have to take concrete steps
गांवों में कम हैं रोजगार
के अवसर |There are less employment opportunities in villages
गांवों में पलायन कर गए
लोगों के सामने रोजगार बहुत बड़ी समस्या है। गांवों में भले ही मनरेगा के जरिए
राज्य सरकारों द्बारा रोजगार देने की कोशिश की जा रही हों, लेकिन वह लोगों की
आवश्यकताओं के आगे नाकाफी हैं। मनरेगा में भी हर शख्स को रोजगार नहीं दिया जा सकता
है और वर्तमान हालातों में सरकार के पास रोजगार के दूसरे विकल्प भी नहीं हैं। लोग
मनरेगा के तहत काम भी करते हैं, तो वह शहरी कमाई के मुकाबले बहुत कम होती है,
जिससे भी कामगारों के सामने रोजी-रोटी चलाना आसान नहीं होता है। एक अनुमान के
मुताबिक गांव में रहने वाला जो शख्स प्रतिमाह 3-4 रूपए प्रतिमाह कमाता है, वह कमाई
शहर में 10 हजार से अधिक होती है, इसीलिए भी लोग गांवों में रहना पंसद नहीं
करेंगे। इसीलिए उनके समक्ष शहरों की तरफ आने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता
है। आने वाले दिनों में अगर स्थिति थोड़ी सामान्य होगी तो गांवों में पलायन कर गए
अन्य लोग भी शहरों की तरफ आना शुरू कर देंगे।
तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी
दर | Rapidly increasing unemployment rate
देश में रोजगार के अवसर
लगातार घट रहे हैं। कोरोना संकट की वजह से इसमें और भी बुरा असर पड़ा है। बचे हुए
रोजगारों पर भी कोरोना की वजह से तलवार चली है। कोरोना की वजह से जो आर्थिक संकट
देश के सामने आया है, उससे नहीं लगता है कि आने वाले दिनों में जल्द रोजगार के
अवसर बढ़ेंगे। यह स्थिति दुनिया के हर देश में है, लेकिन अधिक आबादी वाला देश होने
की वजह से भारत में स्थितियां और भी खराब होने जा रही हैं। पिछले दो-तीन वर्षों
में जिस प्रकार देश में बेरोजगारी दर बढ़ी है, उसे कोरोनाकाल ने और बढ़ा दिया है।
2016 की आर्थिक मंदी के दौरान रोजगार का औसत गिरने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह
दर 2020 आते-आते और भी बढ़ गई। महज, पिछले एक साल के दौरान बेरोजगारी की दर 2.3
गुना बढ़ गई है। पांडचेरी, तमिलनाडु और झारखंड जैसे राज्यों की स्थिति और भी खराब
है। पिछले 45 साल के दौरान बेरोजगारी दर बुरी हालत में पहुंची है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2020 के दौरान पांडेचरी में बेरोजगारी दर 75.8 प्रतिशत थी, जबकि तमिलनाडु में भी इसी अवधि के दौरान यही बेरोजगारी दर 49.8 फीसदी थी और झारखंड में 47.1 फीसदी थी। रोजगार की भयावह तस्वीर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शहरों में हर पांचवें शख्स के पास काम नहीं है, और गांवों के भरोसे कितना रोजगार पैदा किया जा सकता है। उन लोगों के सामने बहुत अधिक चुनौती है, जो शहरों से पलायन कर गांवों में लौटे हैं। शहरी परिवेश में रहने के आदी हो चुके ऐसे लोगों के लिए एकदम गांव के माहौल में ढलना आसान नहीं होगा। गांवों में भले ही बिजली, पानी व सड़क की व्यवस्था हो गई हो, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर आज भी हालात सुधरे नहीं हैं। लिहाजा, कोरोना महामारी का खतरा भूलकर उन्हें रोजी-रोटी की तलाश में शहरों की तरफ आना ही होगा।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2020 के दौरान पांडेचरी में बेरोजगारी दर 75.8 प्रतिशत थी, जबकि तमिलनाडु में भी इसी अवधि के दौरान यही बेरोजगारी दर 49.8 फीसदी थी और झारखंड में 47.1 फीसदी थी। रोजगार की भयावह तस्वीर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शहरों में हर पांचवें शख्स के पास काम नहीं है, और गांवों के भरोसे कितना रोजगार पैदा किया जा सकता है। उन लोगों के सामने बहुत अधिक चुनौती है, जो शहरों से पलायन कर गांवों में लौटे हैं। शहरी परिवेश में रहने के आदी हो चुके ऐसे लोगों के लिए एकदम गांव के माहौल में ढलना आसान नहीं होगा। गांवों में भले ही बिजली, पानी व सड़क की व्यवस्था हो गई हो, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर आज भी हालात सुधरे नहीं हैं। लिहाजा, कोरोना महामारी का खतरा भूलकर उन्हें रोजी-रोटी की तलाश में शहरों की तरफ आना ही होगा।
2016 से घटने लगे थे
रोजगार के अवसर | Employment opportunities began to decrease from 2016
2016 के दौरान आई आर्थिक
मंदी के दौरान जैसे ही रोजगार के अवसर घटने लगे थे, उसके बाद बेरोजगारी दर में
बहुत अधिक सुधार देखने को नहीं मिला। उम्मीद की जा रही थी कि अब हालात सुधरेंगे और
रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, लेकिन 2020 की शुरूआत में आए कोरोना काल ने उसमें ग्रहण
लगा दिया। सीएमआईई के आकड़े बताते हैं कि 2016 में देश में जनवरी से अप्रैल माह के
बीच बेरोजगारी दर 8.7 प्रतिशत थी, मई से अगस्त से बीच यह दर और बढ़ गई और 9.17
प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि सितंबर से दिसंबर के बीच इसमें 2 फीसदी से अधिक की
गिरावट आई और यह औसत 7 फीसदी पर पहुंच गई। 2017 की स्थिति 2016 की अपेक्षा थोड़ी
अच्छी रही। 2017 के शुरूआती चार माह यानि जनवरी से अप्रैल के बीच बेरोजगारी दर
4.87 प्रतिशत थी। मई से अगस्त 2017 के दौरान इसमें थोड़ा सुधार हुआ और इस अंतराल के
दौरान बेरोजगारी का दर 3.9 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। सितंबर से दिसंबर के दौरान फिर
थोड़ी स्थिति और डगमगाई और बेरोजगारी दर का प्रतिशत 4.75 पर पहुंच गया। 2018-19 के
दौरान रोजगार की स्थिति और भी खराब रही। इस दौरान बेरोजगारी का दर 5 फीसदी से नीचे
नहीं आ पाया। 2018 की बात करें तो जनवरी से अप्रैल तक बेरोजगारी दर का औसत 5.6 था।
मई-अगस्त के अंतराल में यह दर बढ़कर 5.72 पर पहुंच गई, जबकि सितंबर से दिसंबर के
दौरान इस दर में और बढ़ोतरी हो गई और बेरोजगारी दर 6.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। 2019
के शुरूआती चार माह यानि जनवरी से अप्रैल तक बेरोजगारी दर 7.02 प्रतिशत थी। मई से
अगस्त के बीच में यह बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत पर पहुंच गई। सितंबर से दिसंबर के
बीच यह दर थोड़ी कम हुई, जो 7.5 प्रतिशत थी, लेकिन 2019 के बाद स्थितियां और भी
खराब हो गईं।
11 राज्यों में 20 प्रतिशत
रही बेरोजगारी दर | Unemployment rate remained at 20 percent in 11 states
कोरोना संकट ने रोजगार पर
बुरा असर डाला है। 2020 जनवरी से अप्रैल के बीच बेरोजगारी दर 11.8 फीसदी तक पहुंच
गई है। देश के 11 राज्य तो ऐसे रहे हैं, जहां अप्रैल 2020 के दौरान बेरोजगारी दर
20 फीसदी रही। अभी जो हालात चल रहे हैं, उससे बिल्कुल भी नहीं लगता है कि आने वाले
दिनों में स्थितियां सुधर जाएंगी। सीएमआईई के आकड़ों के अनुसार जनवरी-अप्रैल 2020 के दौरान हरियाणा में बेरोजगारी दर 43.2 फीसदी रही। इसके अलावा पंजाब में 2.9,
हिमाचल प्रदेश में 2.2, उत्तराखंड में 6.5, सिक्किम में 2.3, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 16.7, झारखंड में 47.1, बिहार में 46.6, मेघालय में 10 प्रतिशत, असम में
11.1, राजस्थान में 17.7, उत्तर-प्रदेश में 21.5, गुजरात में 18.7, मध्यप्रदेश में
12.4, पश्चिम बंगाल में 17.4 प्रतिशत, ओडिशा में 23.8, छत्तीसगढ़ में 3.4, महाराष्ट्र में 20.9, तेलंगाना में 6.2, आंध्र प्रदेश में 20.5, पांडिचेरी में
75.8, तमिलनाडु में 49.8, कर्नाटका में 29.8, केरल में 17 व गोवा में 13.3 प्रतिशत
रही।
1.6 बिलियन असंगठित कामगार
होंगे बेरोजगार | 1.6 billion unorganized workers will be unemployed
कोरोना महामारी ने जहां
लोगों की जान छीनने का काम किया है, वहीं लोगों का निवाला भी छीन रहा है। आने वाले
दिनों में दुनिया भर में 1.6 बिलियन अंसगठित कामगारों के बेरोजगार हो जाएंगे। अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट से यह बात पता चलती है। सभी जानते हैं
कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले वे लोग होते हैं, जिनकी कमाई प्रति दिन
मिलने वाले काम पर निर्भर करती है। यानि जिस दिन काम मिलेगा, उसी दिन उन्हें पैसा
मिलेगा। अगर, काम नहीं है तो उनकी आय भी शून्य हो जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक 2
बिलियन असंगठित कामगार तो ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी 60 फीसदी आय तो मार्च तक ही
गंवा दी थी। अब लगभग ये लोग पूरी तरह बेरोजगार हो गए हैं। यानि की अब इनकी आय
शून्य हो गई है।
सरकार को उठाने होंगे ठोस
कदम |
वर्तमान हालातों में
रोजगार एक बड़ी समस्या बनी हुई है। कामधंधे चौपट हो गए हैं। केंद्र व राज्य सरकारों
की कोशिशें भी नाकाफी हैं। मनरेगा जैसी योजना भले ही अभी कारगर साबित हो रही हो,
लेकिन उस पर बहुत अधिक निर्भरता नहीं रखी जा सकती है। और न ही शहर से गांव पहुंचे
लोग इसे अपने भविष्य के रूप में देख सकते हैं। कुछ लोग भले ही स्वरोजगार की तरफ
कदम बढ़ा सकते हैं, लेकिन ऐसे लोगों का औसत भी बहुत अधिक नहीं होगा, क्योंकि
वर्तमान हालातों में कामधंधा शुरू करना भी एक चुनौती से कम नहीं है। खासकर, उन
कामगारों के लिए जो रोज कमाने वाले होते हैं, क्योंकि उन्होंने पूरा कोरोनाकाल
बेरोजगारी में बिता दिया है। ऐसे में, उनके पास पैसों का संकट भी है। इन
परिस्थितियों में केंद्र के साथ राज्यों को भी आगे आना होगा। रोजगार को लेकर
सरकारों द्बारा जो योजनाएं बनाईं जा रही हैं, उन्हें कागजों से उतारकर जल्द धरातल
पर लागू करना होगा। वर्तमान, समय में पलायन की वजह से गांवों के उपर बहुत अधिक
दबाव है। जन-जीवन थोड़ा सामान्य होगा तो यही दबाव शहरों पर बढ़ने लगेगा, इसीलिए
सरकारों के लिए जरूरी है कि रोजगार पैदा करने के विकल्पों को प्राथमिकता दी जाए,
जो उद्योग-धंधे, कल-कारखाने बंद पड़े हुए हैं, उनके संचालन को लेकर नई नीति पर काम
किया जाए, जिससे तात्कालिक तौर रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।
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