बेटियों ने जीती जंग | Now women will get permanent commission in army


सेना के 10 विभागों में महिलाओं के स्थायी कमिशन का रास्ता साफ हो गया है। स्थायी कमिशन का आदेश जारी होने के साथ ही बेटियों ने एक बड़ी जंग जीत ली है। यह जंग हक और समानता को लेकर थी। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी 2020 को महिलाओं को स्थायी कमिशन देने का फैसला सुनाया था, जिसको केंद्र सरकार ने गुरूवार को लागू कर दिया है। अगर, पूर्व की सरकारें इस मामले में गंभीर रही होती तो यह आदेश पहले भी हो सकता था, लेकिन कई वर्षों तक बेटियों को इस आदेश के लिए इंतजार करना पड़ा। वैसे देश की सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं के स्थायी कमिशन के पक्ष में 2011 में ही फैसला सुना दिया था, लेकिन सरकारें बिना हाथ-पैर की दलीलें देकर इस मामले को लटकाती रहीं। हास्यापद बात तो यह रही कि सेना में महिलाओं को बराबरी का हक देने के लिए सरकार ने तो यह तक कह दिया था कि पुरूष अफसर महिलाओं की बात नहीं सुनेंगे। कहते हैं ना अगर, लड़ाई सच्चाई और झूठ के बीच की हो तो आखिरकार जीत सच्चाई की ही होती है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार जीत महिलाओं की ही हुई। अब महिलाएं पुरूषों के बराबर ही सेना में कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगी और कमान पोस्ट की भी जिम्मेदारी संभाल पाएंगी। 



2003 में डाली थी जनहित याचिका
सेना में महिलाओं को स्थायी कमिशन और बराबरी दिलाने संबंधी जनहित याचिका सबसे पहले 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी। इसके बाद मेजर लीना गुराव ने 16 अक्टूबर 2006 को याचिका दायर कर महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की मांग की थी। सितंबर 2008 में रक्षा मंत्रालय ने आदेश जारी किया कि शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में आने वाली महिला अधिकारियों को जज एडवोकेट जनरल और सैन्य शिक्षा कोर में स्थायी नियुक्ति दी जाएगी। सरकार के इस फैसले को मेजर संध्या यादव ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2003, 2006 और 2008 में दायर याचिकाओं पर सुनवाई की और 2010 में फैसला सुनाया। अदालत ने एसएससी के तहत भर्ती होने वाली महिलाओं को 14 वर्ष की सेवा पूरी करने पर पुरूषों की तरह स्थायी कमिशन देने को कहा। महिलाओं को सेवा से जुड़े दूसरे लाभ भी देने के आदेश दिए। हाईकोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 2 सितंबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सही माना और उस आदेश को लागू करने का फरमान सुनाया, लेकिन सरकार इस आदेश को टालने के लिए तरह-तरह के विकल्प चुनती रही, जिसके चलते यह मामला इतने वर्षों तक लटका रहा।
जो लड़ाई लड़ रहीं थीं, उन्हें ही वंचित रखना चाहती थी सरकार
पिछले साल मार्च यानि 2019 में रक्षा मंत्रालय ने इस मामले को लेकर एक नया विकल्प सुझाया। रक्षा मंत्रालय ने आदेश जारी किया कि सेना के 10 विभागों में स्थायी कमिशन मिल तो सकता है, लेकिन मंत्रालय ने साथ ही यह भी कहा कि इसका लाभ उन्हें नहीं मिलेगा, जो महिलाएं पहले से सेवा में हैं। मार्च 2019 के बाद से जो महिलाएं सेवा में आएंगी, उन्हें ही यह लाभ मिलेगा। इस फैसले का सीधा असर उन महिलाओं पर पड़ा, जो बराबरी की लड़ाई लंबे समय से लड़ रहीं थीं, जिसके चलते मामला दोबारा अदालत पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कहा कि वह समान नीति लेकर आए। इसके बाद 17 फरवरी 2020 को सेना में शामिल महिलाओं के लिए ऐतिहासिक फैसला आया और सेना में स्थायी कमिशन का रास्ता साफ हो गया।
सरकार के तर्क थे कमजोर
सरकारें इस मामले को शुरू से ही टालने की कोशिशें करती रहीं, लेकिन कोर्ट ने सरकार के किसी भी तर्क पर सहमति नहीं जताई। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सेना के ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां महिलाएं काम करने में सक्षम होंगी। इस तर्क पर सुप्रीम कोर्ट को सरकार को फटकार लगानी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के लिए ऐसा नजरिया मत रखिए। आपके पक्ष में लिंगभेद की बू रही है और ऐसा करना महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने के समान है। सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि सेना में समानता के लिए नजरिया बदलना होगा। अगर, महिलाओं को सीमित क्षेत्र तक रखेंगे तो उनकी पदोन्नति पर असर पड़ेगा और संभव है कि वो कर्नल रैंक से आगे नहीं बढ़ पाएंगी। इसी को देखते हुए महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर कमान पोस्ट भी संभालने की जिम्मेदारी दें, जिससे वे अपने काम के दम पर उच्च पदों पर पहुंच सकें। 
14 साल के लिए सेना में आना हुआ था शुरू
 1990 की शुरूआत में शॉर्ट सर्विस कमीशन-एसएससी के जरिए 14 वर्ष के लिए सेना में महिलाओं को आना शुरू हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में एसएससी से आने वाली महिलाओं को न्यायिक और शिक्षा से जुड़ी तीन सेवाओं में स्थायी कमिशन का आदेश दिया। 15 अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि महिलाएं स्थायी कमीशन के लिए गैर युद्ध सेवा क्षेत्र के लिए पात्र हैं। 25 फरवरी 2019 में सरकार ने एसएससी से आने वाली महिला अधिकारियों को युद्ध में मदद करने वाले सिगल्स, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन, एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स, ऑर्मी सर्विस कोर, ऑर्मी ऑर्डिनेंस कोर और इंटेलिजेंस में स्थायी कमीशन का आदेश दिया। 



यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलें खारिज की
सरकार महिलाओं की शारीरिक क्षमताओं पर सवाल उठाती है। 70 साल बाद भी मानसिकता में बदलाव नहीं किया। सेना में सच्ची समानता लानी होगी। 30 प्रतिशत महिलाएं युद्धक्षेत्रों में हैं। स्थायी कमीशन से इनकार करना पुरातनपंथी विचारधारा है। महिलाएं बराबर हैं, पुरूषों की सहायक नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा आजादी के 70 वर्ष बाद महिला अधिकारियों को लेकर दिए जा रहे तर्क लकीर के फकीर जैसे लगते हैं। सरकार का यह तर्क कि गर्भावस्था, मातृत्व, घरेलु जिम्मेदारियों की वजह से सैन्य सेवा में ज्यादा चुनौतियां हैं, यह उस मानसिकता का उपजा तर्क है, जो मानता है कि महिलाएं केवल घरेलु काम के लिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को याद दिलाते हुए कहा कि सामाजिक मानसिक कारण बता महिलाओं को अवसर से वंचित करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। सबको याद करना चाहिए कि कैप्टन तान्या शेरगिल और कर्नल सोफिया कुरैशी ने देश का मान बढ़ाया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड जस्टिस अजय रस्तोगी ने 17 फरवरी 2020 को कहा था महिलाओं के प्रति किसी भी तरह का भेदभाव झलके। कोर्ट ने सरकार को यह भी याद दिलाया कि महिलाओं को कमान में नियुक्ति देना और केवल स्टाफ अपॉइन्मेंट तक सीमित रखना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। समानता के अधिकार में दो वर्गों के प्रति अतार्किक और गैर-वाजिब भेदभाव नहीं झलकना चाहिए। 
सेना में हैं केवल 1653 महिला अधिकारी
हमारा देश पुरूष प्रधान है, यह हर जगह दिखता है, लेकिन सेना में ऐसा हो, इसे किसी भी रूप में उचित नहीं माना जा सकता है, क्योंकि यह सेवा मनोबल और देशभक्ति से जुड़ी हुई होती है। इसको ताकतवर और कमजोर के बीच बिल्कुल भी वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए था। आकड़ों से साफ झलकता है कि भारतीय सेना में पुरूष और महिला अधिकारियों के बीच एक बड़ा गैप है। जून 2019 तक के आकड़ों के मुताबिक भारतीय सेना में 40,825 अधिकारी हैं, जिनमें केवल 1653 महिला अधिकारी ही हैं, जबकि सैन्य बल में 65,00 सैन्य अधिकारियों के पद हैं। 157 महिला अधिकारियों को 54 साल के बाद पुनर्नियुक्ति 77 की 20 साल से अधिक सेवा और 255 को 14 से 20 साल सेवा के तहत तैनाती है। थल सेना में वर्तमान में 3.89 प्रतिशत ही महिलाएं हैं, जबकि नौसेना में वर्तमान में 6.70 प्रतिशत महिलाएं हैं। वायुसेना में वर्तमान में 13.28 प्रतिशत महिलाएं हैं। 1990 के बाद सेना में 1653 महिलाओं को थलसेना में आने का मौका मिला। 49 महिलाएं भारतीय नौसना में कार्यरत हैं। 1905 महिलाओं को वायुसेना में आने का अवसर मिला। 70 प्रतिशत सैन्यबल युद्ध क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, जिसमें इन्फेंटरी, आर्टिलरी, आर्मर्ड कोर शामिल हैं, लेकिन इनमें महिलाएं नहीं हैं। 8 महिला फाइटर पायलटों की नियुक्ति 2016 के बाद हुई। 

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