विघटनकारी प्रौद्योगिकी अपनाने में पिछड़ रहे सरकारी अस्पताल: केस स्टडी | Government hospitals lagging behind adopting disruptive technology: case study


देश में 54 फीसदी निजी अस्पतालों के मुकाबले केवल 35 फीसदी सरकारी अस्पताल ही इस सूची में शामिल हैं
पारंपरिक और विघटनकारी प्रौद्योगिकियों की प्रगति के साथ भारत में हेल्थ केयर-स्वास्थ्य सेवा और लाइफ साइसेंज-जीवन विज्ञान के क्षेत्र में भी तेजी से परिवर्तन हो रहा है, इससे हेल्थ केयर सेक्टर को डेटा माइनिंग-डेटा खनन, नैदानिक निदान और सेल्फ मॉनिटरिंग (स्व उपकरणों) से स्वस्थ्य जीवनशैली बनाए रखने में मदद मिल रही है, लेकिन निजी अस्पतालों के मुकाबले इस मामले में देश के सरकारी अस्पताल पिछड़ रहे हैं। देश में जहां 54 फीसदी प्राइवेट अस्पताल विघटनकारी हेल्थ केयर प्रौद्योगिकी को अपना चुके हैं, वहीं इस सूची में केवल 35 फीसदी सरकारी अस्पताल ही शामिल हैं। 


महानगरों में भी यही स्थिति है। महानगरों में 68 फीसदी प्राइवेट और 35 फीसदी सरकारी अस्पताल इस सूची में शामिल हैं, जबकि टायर-टू सिटीज में प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के बीच 50 फीसदी का अंतर है। ऐसे शहरों में जहां 40 फीसदी निजी अस्पताल विघटनकारी हेल्थ केयर प्रौद्योगिकी को अपना चुके हैं, वहीं, इस मामले में सरकारी अस्पतालों का औसत महज 20 फीसदी है। ये तथ्य नॉसकॉम की, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों के माध्यम से भारत में हेल्थ केयर और लाइफसाइसेंज में बदलाव नाम की एक केस स्टडी में सामने आए हैं। इस केस स्टडी पीछे नासकॉम का मकसद विघटनकारी तकनीकों को अपनाने की वर्तमान स्थिति, स्वास्थ्य परिवर्तन के लिए प्रौद्योगिकी के प्रभाव और दायरे का पता लगाना था।
रिपोर्ट में विघटनकारी प्रौद्योगिकी को अपनाने के पीछे की जो मुख्य वजहें बताई गईं हैं, उनमें मानव त्रुटियों को कम करना, मेडिकल रिकॉर्डस तक पहुंचने में आसानी, बेहतर सुरक्षा और स्वास्थ्य डेटा व सस्ती रोगी देखभाल शामिल हैं। इन मामलों में भी निजी अस्पतालों के मुकाबले सरकारी अस्पताल अभी पीछे हैं। 48 फीसदी निजी अस्पतालों ने मानव त्रुटियों को कम करने की वजह से विघटनकारी प्रौद्योगिकी को अपनाया गया है, जबकि इस मामले में सरकारी अस्पतालों का औसत केवल 25 फीसदी ही है। वहीं, 35 फीसदी निजी अस्पताल द्बारा विघटनकारी प्रौद्योगिकी को अपनाने के पीछे की मुख्य वजह मेडिकल रिकॉड्र्स तक आसान पहुंच बनाना है। इस मामले में अभी केवल 12 फीसदी सरकारी अस्पताल ही शामिल हो पाए हैं। बेहतर सुरक्षा और स्वास्थ्य डेटा के मामले में निजी और सरकारी अस्पतालों के बीच ज्यादा अंतर नहीं है। 25 फीसदी निजी अस्पतालों ने इसी मकसद को ध्यान में रखते हुए तकनीकी अडॉप्शन पर दिलचस्पी ली है, जबकि इस मामले में 20 फीसदी सरकारी अस्पताल भी शामिल हैं। 42 फीसदी निजी अस्पतालों ने मरीजों की सस्ती देखभाल करने के वजह से विघटनकारी प्रौद्योगिकी को अपनाया है, जबकि इस मामले में सरकारी अस्पतालों का औसत महज 18 फीसदी ही है।
सरकारी अस्पतालों का पांरपरिक प्रौद्योगिकियों से सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित
डॉक्टरों की कमी, प्रमुख शहरों में लागत और गुणवत्ता देखभाल के लिए स्थानांतरण ने निजी अस्पतालों में मानवीय गलतियों को कम करने और रोगी देखभाल में सुधार करने के लिए बहुत अधिक प्रेरित किया है। इसके लिए निजी अस्पताल रोगी की निगरानी के लिए एआई, ड्रोन, एआर/वीआर, रोबोट सर्जन और आईओटी जैसे उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि सरकारी अस्पताल अभी भी रोगी के प्रवेश, बिलिंग और आधुनिक उपकरणों में पारंपरिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से परिचालन क्षमता में सुधार लाने पर ही अधिक ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार बजट की कमी के चलते सरकारी और सार्वजनिक अस्पताल विघटनकारी प्रौद्योगिकी की अपनाने में पिछड़ रहे हैं। स्टार्ट-अप और मेडटेक खिलाड़ी तब तक प्रौद्योगिकी समाधान और उत्पादों के लिए एक संभावित बाजार के रूप में ऐसी प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, जब तक कि वे राजस्व के एक निश्चित पैमाने तक नहीं पहुंच जाते हैं।

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