कांग्रेस: राजीव-सोनिया और राहुल के अध्यक्ष रहते ही इतनी गर्त में गई पार्टी

 

by Kumar Sameer

कांग्रेस पार्टी में चल रहे घमासान ने मशहूर हिंदी फिल्म गंगाजल का एक डॉयलॉग-ये तो होना ही था की याद दिला दी है। गैर गांधी परिवार के कांग्रेसी दिग्गज पार्टी की वर्तमान हालत को स्वीकार जो नहीं कर पा रहे थे। यह सच भी है कि पार्टी के इतिहास में 2014 के बाद ही ऐसी स्थिति पैदा हुई है, जब कांग्रेस अर्स से फर्श तक पहुंची है। आजादी के बाद 73 साल में 38 गांधी परिवार के अध्यक्ष बने, जबकि 35 साल गैर गांधी परिवार से अध्यक्ष रहे। गैर गांधी परिवार से रहे अध्यक्षों के कार्यकाल में भी पार्टी का सक्सेस रेट 57 फीसदी था, लेकिन गांधी परिवार से राजीव, सोनिया और राहुल ही ऐसे अध्यक्ष रहे हैं, जब पार्टी हारी है। 2014 के बाद तो पार्टी हस्र और भी खराब हुआ है। इस पूरे परिदृश्य में गैर गांधी परिवार के कांग्रेसी दिग्गजों के अंदर छटपटाहट होना लाजिमी था। पर परिवारिक पृष्ठभूमि वाली पार्टी में उसका बाहर आना थोड़ा मुश्किल था, अब जब किसी किसी सूत्रों के हवाले से कुछ कांग्रेसी दिग्गजों की छटपटाहट वाली बातें सामने आईं हैं, उससे राहुल का कोध्रित होना भी बनता ही है, क्योंकि जिस पार्टी में पार्टी के मुखिया के खिलाफ कोई भी आवाज उठाने की परिपाटी नहीं रही है, वैसे में, यह कैसी नई परिपाटी शुरू होने जा रही है, जिसमें सोनिया गांधी को ही अंतरिम पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने की बातें हो रही हैं। 


पार्टी की सबसे बड़ी संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानि सीडब्ल्यूसी की जब भी बैठक होती है, कुछ मंथन के लिए होती है, लेकिन यह भी पहला ऐसा मौका है, जब मंथन की जगह सीडब्ल्यूसी की बैठक में घमासान चल रहा है। राहुल यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि आखिर कांग्रेसियो के मन में इस तरह की बात उठी कैसे ? कहीं वे कुछ वर्षों के दौरान बीजेपी से तो सांठगांठ नहीं कर रहे थे, जिससे पार्टी की यह हालत रही, वहीं सदन में प्रतिपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, दिग्गज नेता कपिल सिब्बल आदि का नाम सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष पद से हटाने की पत्रवाजी में टॉप पर  रहा है, वे अब यह सफाई देने में जुटे हैं कि अगर, उनकी तरफ से बीजेपी के साथ सांठगांठ की बात सामने आती है तो वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोनिया को भेजी गई नेताओं की चिट्ठी की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए। इसको लेकर भी राहुल का इशारा भाजपा से मिलीभगत की तरफ था, लेकिन राहुल के इस बयान को बमुश्किल 20-25 मिनट भी नहीं बीते थे कि उनका विरोध शुरू हो गया। विरोध करने वालों में सबसे आगे थे गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल। 

दरअसल, यह कहानी कुछ यूं है-करीब 15 दिन पहले पार्टी के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि भाजपा लगातार आगे बढ़ रही है। पिछले चुनावों में युवाओं ने डटकर नरेंद्र मोदी को वोट दिए। कांग्रेस में लीडरशिप फुल टाइम होनी चाहिए और उसका असर भी दिखना चाहिए। इसके बाद सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश करते हुए कहा कि मुझे रिप्लेस करने की प्रक्रिया शुरू करें। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिह और वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने उनसे पद पर बने रहने को कहा। सोनिया गांधी के इतर पार्टी नेताओं की इस चिट्ठीबाजी पर राहुल का अलग रिएक्शन था। उन्होंने इस पर घोर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब सोनिया गांधी हॉस्पिटल में भर्ती थीं, उस वक्त पार्टी लीडरशिप को लेकर लेटर क्यों भेजा गया

अब इस परिदृश्य का राजनीतिकरण भी होना ही था। भाजपा भी कांग्रेस के अंदर हुए इस घमासान को लेकर क्यों चुप रहती। इसीलिए वह तंज कसने से पीछे नहीं रही। मध्यप्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए कई योग्य उम्मीदवार हैं। इनमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, रेहान वाड्रा और मिराया वाड्रा शामिल हैं। कार्यकर्ताओं को समझना चाहिए कि कांग्रेस उस स्कूल की तरह है, जहां सिर्फ हेडमास्टर के बच्चे ही क्लास में टॉप आते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान ने कहा कि कांग्रेस में सही बात करने वाला गद्दार है। तलवे चाटने वाले कांग्रेस में वफादार हैं। जब पार्टी की ये स्थिति हो जाए तो उसे कोई नहीं बचा सकता। उधर, उमा भारती भी सामने आई, उन्होंने कहा, 'गांधी-नेहरू परिवार का अस्तित्व संकट में हैं। इनका राजनीतिक वर्चस्व खत्म हो गया है। इसलिए अब पद पर कौन रहता है या कौन नहीं, यह मायने नहीं रखता है। कांग्रेस को बिना कोई विदेशी एलीमेंट के स्वदेशी गांधी की तरफ लौटना चाहिए।'

कांग्रेस के हस्र को देखकर विपक्षी तो सवाल उठाएंगे ही। राहुल गांधी को भी पार्टी की तरफ से दो-दो चांस मिले, लेकिन पार्टी कोई करिश्मा करने के बजाय गर्त में ही जाती रही। राहुल को स्वयं पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने 2019 में जब लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था तो अगस्त 2019 में सोनिया ने अंतरिम अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी। भले ही, अभी भी कुछ लोग चाहते हैं कि गैर गांधी परिवार का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद पार्टी टूट जाएगी, लेकिन इन सबके बीच इस सवाल का जवाब भी जानना जरूरी है कि आखिर पार्टी में बदलाव की मांग क्यों उठ रही है ? उसके कई कारण हैं। पहला कारण पार्टी का जनाधार कम होना है। 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी अध्यक्ष थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे कम 44 सीटें ही मिल सकीं। 2019 के चुनाव के दौरान राहुल गांधी अध्यक्ष थे। पार्टी सिर्फ 52 सीटें ही जीत सकी। दूसरा कारण है- कैडर का कमजोर होना। देश में कांग्रेस का कैडर कमजोर हुआ है। 

2010 तक पार्टी के सदस्यों की संख्या जहां चार करोड़ थी, वहीं, अब यह लगभग 1 करोड़ से कम रह गई है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मणिपुर समेत अन्य राज्यों में कांग्रेस में नेताओं की खींचतान का असर पार्टी के कार्यकर्ताओं पर पड़ा है। तीसरा बड़ा कारण है-कांग्रेस का महज 6 राज्यों तक सिमट जाना। कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, झारखंड और महाराष्ट्र में ही बची है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिधिया के बगावत के बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई। राजस्थान की स्थिति अब भले ही शांत हुई है, लेकिन वहां के राजनीतिक घमासान से भी सभी वाकिब हैं। ऐसे में, जब तक कांग्रेस के अंदर बदलाव नहीं होगा, पार्टी का अस्तित्व कमजोर होता जाएगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पारिवारिक पृष्ठभूमि के बीच पली-बढ़ी पार्टी के अंदर यह सब हो पाएगा। क्या सीबीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद पार्टी का कोई नया चेहरा सामने आएगा या फिर छटपटाहट में जी रहे नेताओं को मनाकर सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष बनाए रखा जाएगा। 


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