अब क्यों उठे लगे हैं योगी मॉडल पर सवाल ?
बिशन पपोला
हर जगह योगी मॉडल की चर्चा की जा रही है। आप चाहे लॉ-इन-ऑर्डर को ले
लीजिए। बदमाशों को मुठभेड़ में मारने की घटनाओं को ले लीजिए या फिर कोरोना संकट में
निपटने की बात हो। सभी जगहों में यह बात फैलाई जा रही है। यूपी में सबसे बेहतर काम
हो रहा है। ऐसा हो भी रहा था। ऐसा मान लेते हैं। योगी मॉडल अन्य राज्यों से बेहतर
साबित हो रहा था।
पर अब योगी मॉडल को क्या हो गया है। क्यों योगी मॉडल पर सवाल उठने लगे हैं। हाल के कुछ दिनों से लॉ-इन-ऑर्डर को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं और कोरोना संकट से निपटने में भी शासन-प्रशासन की खामियां सामने आईं हैं। महिलाओं की सुरक्षा की तो आप यूपी में बात ही नहीं कर सकते। छात्राएं तक सुरक्षित नहीं हैं। इनमें आप चाहे हाल ही में बरेली के न्याय के मंदिर यानि कोर्ट परिसर में एक वकील के चैंबर में छात्रा के साथ रेप की घटना ले लीजिए या फिर यूपी में 12वीं का फॉर्म भरने जा रही एक छात्रा के साथ रेप की घटना हो। लखीमपुर खीरी में 13 साल की बच्ची के साथ रेप और हत्या की घटना हो। और भी तमाम ऐसी घटनाएं हैं, जो योगी मॉडल पर सवाल उठाती हैं। आप बलिया की ही घटना ले लीजिए। जहां सहारा समय टीवी चैनल के पत्रकार रतन सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस समय यूपी पत्रकारों के लिए सबसे अधिक खतरनाक जगह मानी जा रही है। जहां सीएम अधिकारियों को पत्रकारों के साथ अच्छा ट्रीट करने का निर्देश देते हैं, वहीं यूपी में इस वक्त पत्रकारों के साथ सबसे अधिक अत्याचार हो रहे हैं। उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। पत्रकारों की सरेआम हत्याएं हो रही हैं।
इन सबके बीच अगर, यह बात फैलाई जाए कि योगी मॉडल अच्छा है तो इसे आंख मूंदकर कैसे मान लिया जाए ? जिस प्रकार यूपी सरकार ने हाल के दिनों में बदमाशों को ठिकाने लगाया, उससे तो अपराधियों व बदमाशों के मन में खौफ पैदा हो जाना चाहिए था। पर ऐसा क्यों नहीं हो रहा है। जितने बदमाश मारे जा रहे हैं, उसी अनुपात में बदमाशी भी बढ़ रही है। खुलेआम गोलियां चलेंगी, महिलाओं और छात्राओं का रेप होगा तो इसे क्या कहा जाएगा। अगर, अपराध बढ़ रहे हैं तो इसमें सफेदपोशों और सरकारी रोटियां तोड़ने वाले अधिकारियों की मिलीभगत नहीं है ? कानपुर के अपराधी विकास दुबे वाले प्रकरण को ही हम ले लेते हैं। जब सांप सिस्टम में ही बैठे हों तो जहर निकालने की बात किससे की जाए। विकास दुबे का इंकाउंटर हुआ। यह अच्छा था, लेकिन इसके पीछे की कहानी कितनी भयानक थी। कितनों के घरों को उजाड़ा गया होगा। किसकी सह पर ? इन्हीं सफेदपोशों और खाकीवर्दी में छुपे लोगों की शह पर। यहां सवाल यह है कि एक तरफ सिस्टम ही अपराधी पैदा करता है और दूसरी तरफ सिस्टम ही उसका इनकाउंटर कर वाहवाही लूटने का काम करता है। यह कैसा मॉडल है ?
आइए अब, कोरोना संक्रमण की बात करते हैं। यह सच है कि यूपी बड़ा राज्य है। कोरोना संक्रमण के जो मामले सामने आ रहे हैं, उनमें अभी यूपी महाराष्ट्र , कर्नाटका व कुछ अन्य राज्यों से पीछे है। पिछले 24 घंटे में यूपी में 3578 मामले सामने आए। 31 लोगों की मौत भी हुई। राज्य में अभी सक्रिय रूप से मामलों की संख्या 26,204 हो गई है और 1456 लोगो की मौत हो चुकी है। ये आकड़े भले ही अन्य राज्यों से बेहतर दिख रहे हैं। पर अब कोरोना से निपटने में जो सच यूपी का सामने आ रहा है, उसमें नहीं लगता कि अधिकारियों द्बारा आकड़ों की बाजीगरी नहीं की जा रही होगी। कोरोना के नाम पर प्रदेश में कितनी लूट अस्पतालों व अधिकारियों द्बारा की जा रही है, क्या सरकार इसका सच जानने की कोशिश कर रही है ? यह बहुत बड़ा सवाल है। ऐसा नहीं किया जाएगा, क्योंकि कहीं मॉडल की बात खराब न हो जाए। सो कॉल्ड मीडिया भी ऐसी हकीकत की बात नहीं करेगा, क्योंकि कहीं सिस्टम का शिकार न होना पड़ जाए।
पर सवाल है तो इसे उठाना भी चाहिए। ईमानदारी भी इसे ही कहा जाएगा। जिस राज्य में दो-दो मंत्री कोरोना की वजह से अपनी जान गंवा चुके हों, वहां आम लोगों की क्या स्थिति होगी। क्या यह अपने आप में सवाल नहीं है ? हाल में ही सपा के एक एमएलसी सुनील सिंह सज्जन का सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, कोरोना पॉजिटिव होने के चलते वह भी उसी एसजीपीजीआई में भर्ती थे, जिसमें देश के पूर्व दिग्गज क्रिकेटर और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान भी भर्ती थे। मेडिकल टीम द्बारा चेतन चौहान के साथ किए गए व्यवहार की जो कहानी उन्होंने बताई, उससे प्रदेश में कोरोना से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों की भयानक तस्वीर सामने आती है। जब इतने बड़े दिग्गज शख्स के साथ, यह सलूख किया जा रहा हो, वहां आमलोगों के साथ कैसा व्यवहार होता होगा। इसका सहज लगाया जा सकता है। यूपी की एक अन्य मंत्री कमला रानी की भी कोरोना के चलते मौत हो चुकी है। यानि कोरोना के चलते दो-दो मंत्रियों की मौत। जो यूपी मॉडल पर सवाल उठाने के लिए काफी हैं।
सोशल मीडिया पर एक और ओडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वाराणसी में अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महानगर अध्यक्ष राकेश जैन और प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की बातचीत हो रही है। व्यापारी सीएम को अवगत करा रहे हैं कि वाराणसी में प्राइवेट अस्पताल कोरोना के नाम पर कितनी लूटपाट कर रहे हैं और प्रशासन शासन द्बारा दुकानों को खोलने और बंद करने की टाइमिंग को शासनादेश के खिलाफ जाकर अपनी मनमर्जी से तय कर रहा है। सीएम योगी ने भले ही उन्हें आश्वस्त किया कि वह प्रशासन से बात कर खामियों को दूर कराते हैं। वह किसी दिन वहां आने का कार्यक्रम भी रखते हैं। क्या आप सोच सकते हैं। वाराणसी कोई आम जगह नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। जब वहां ये हाल हो सकता है तो अन्य जगहों की क्या स्थिति होगी। इन सबके बीच प्रशासन की दादागिरी भी देखिए। सीएम से बातचीत का आडियो वायरल होने के बाद वाराणसी के डीएम ने व्यापारियों की दिक्कतों को दुरूस्त करने के बजाय व्यापारी को ही नोटिस भिजवा दिया। तीन दिन में यह जबाव दीजिए कि कैसे आपने सीएम के साथ बातचीत का ओडियो वायरल कर दिया। क्या यह साबित नहीं करता कि यूपी में अधिकारी कितने बेलगाम हैं ? शासनदेश तक को नहीं मानते हैं ? अपने अनुसार चीजें तय कर लेते हैं। इससे आमलोगों, व्यापारियों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता होगा।
सवाल और कहानियां और भी बहुत हैं, जो उत्तर प्रदेश की वर्तमान स्थिति को उजागर करती हैं। उनका उल्लेख करने से बेहतर है कि सवालों को समझा जाए। उसके पीछे की वजह को समझने की कोशिश की जाए। क्या वास्तव में ऐसा आगामी चुनावों के मद्देनजर हो रहा है या फिर वाकई सरकार विफलता की ओर अग्रसर हो रही है। जिस मॉडल को देश का नबंर-वन मॉडल माना जा रहा हो, उसे अब ग्रहण क्यों लग रहा है। लॉ-इन-ऑर्डर की हालत क्यों खराब हो रही है। क्यों ब्यूराक्रेसी भी शासनादेश के खिलाफ काम कर रही है ? जिस सिस्टम को बेहतर करने की बात सीएम योगी आदित्यनाथ करते हैं, उसी के अंदर इतने सांप कैसे बैठे पड़े हैं, जो स्लो प्वांजन की तरह सिस्टम को खोखला करने में जुटे हुए हैं। आकड़ेबाजी का गेम कहीं सिर्फ कागजों तक तो सीमित नहीं रखा जा रहा है। कहीं जमीनी हकीकत उससे बिल्कुल अलग तो नहीं है। इस वास्तविकता को क्यों छुपाने की कोशिश हो रही है। यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है। प्रवासियों को रोजगार, राज्य में विदेशी निवेश को लेकर भी जो बड़ी-बड़ी बातें हुईं थीं, उनका भी जमीनी स्तर पर कुछ होता नहीं दिखाई दे रहा है। भले ही खुलेआम नहीं, पर कहीं न कहीं इसके खिलाफ लोगों के बीच सवाल उठ ही रहे हैं।
इन परिस्थितियों में प्रदेश की हालातों की समीक्षा करना बेहद जरूरी है। 2022 में राज्य में चुनाव होने हैं। ऐसे में, यह भी हो सकता है कि सरकार को मिलकर बदनाम करने की कोशिश की जा रही हो। सिस्टम में भी ऐसे लोग हों, जो केवल सामने से ही सरकार के साथ हों। बेहतर सिस्टम से ही सरकार की छवि बनती है। लिहाजा, सिस्टम में बैठे ऐसे चेहरों की तलाश की जाए, जो सिस्टम के ही दुश्मन बने हुए हैं। सरकार को भी केवल हवाबाजी में ध्यान देने के बजाय जमीनी हकीकत को भी जानने की कोशिश करनी चाहिए। तभी मॉडल विरासत के रूप में इतिहास के पन्नों में जगह बना पाएगा और भविष्य में भी उसे मिशाल के तौर पर लिया जाएगा।
Post a Comment