कोरोना ने बढ़ाई पोषक युक्त खाने की मांग I Corona increased demand for nutritious food
प्राकृतिक और जैविक खाद्य उत्पादों से आसान होगी पूर्ति
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पोषक युक्त खानपान है जरूरी
वैक्सीन आने के बाद भले ही कोरोना का खतरा कम हो जायेगा, लेकिन पोषण युक्त खाने की मांग लगातार बढ़ने
वाली है। व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण यानि सीएनएनएस के आकड़ों के अनुसार, अधिक वजन, गैर-संचारी रोग अब वयस्क आबादी तक ही सीमित नहीं रह गये हैं, बल्कि बच्चों तक भी इसका खतरा लगातार बढ़ रहा है। इस खतरे को कम करना है तो पोषण पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। और सरकार को इसके लिये प्राकृतिक और जैविक खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देने की तरफ गंभीरता से पहल करनी होगी।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 पूरी दुनिया के लिये खतरा बना हुआ है। इस संक्रमण की चपेट में वही लोग आ रहे हैं, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। चिकित्सक भी लगातार सलाह दे रहे हैं कि अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ायें। अपने खानपान में पोषक तत्वों को शामिल करें। पर पोषक तत्वों से युक्त खाने से अधिकांश
लोग कोषों दूर हैं। यह स्थिति भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देाों में भी है। कई अध्ययन इस बात की तस्दीक करते हैं कि बच्चों की अधिकाां मौतें और वयस्कों में अपंगता का सबसे बड़ा कारण पोषक विहीन खानपान यानि कुपोषण है। कुपोषण तभी दूर हो सकता है, जब पोषक युक्त खानपान हर व्यक्ति तक पहुंचेगा।
इंटनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फार द सेमी-एरिड ट्रापिक्स से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार दवाइयां हमें रोगों से लड़ने की ताकत नहीं दे सकती हैं, बल्कि हमारा पोषक युक्त खानपान व जीवनशैली ही हमें बीमारियों से बचा सकती है। कोविड-19 के इस दौर में हमारी यह समझ और बढ़ीं है कि महामारी से बचने का सबसे सही तरीका अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को तत्काल बढ़ाना और स्वस्थ रहना है। उन्होंने कहा कि यह तभी संभव है, जब प्राकृतिक और जैविक खाद्य उत्पादों को बढ़ावा दिया जायेगा। इसके लिये सरकार की तरफ से की जाने वाली पहल ज्यादा मायने रखेगी। बशर्ते, सरकार ने स्वस्थ और पोषक युक्त खाने की मांग को बढ़ाने के लिये ईट राइड इंडिया और स्मार्ट फूड जैसी पहलें शुरू की है। पर इनको यहीं तक सीमित नहीं रखना है बल्कि लोगों तक पहुंचाना होगा, तभी सुरक्षित खानपान समाज के कमजोर तबके तक सुनिचित हो पायेगा।
लचीली और टिकाउ खाद प्रणाली जरूरी
कोविड-19 ने वक्त की नजाकत को समझने, लचीली और टिकाऊ खाद्य प्रणाली की दिशा में नीतियों को दोबारा बनाने की आवश्यकता पर एक बार फिर जोर दिया है, क्योंकि उपभोक्ताओं की संस्कृति, स्वाद और भोजन संबंधी प्राथमिकताओं के लिये बेहतर और पोषक खाना जरूरी है। अर्थाास्त्रियों के मुताबिक इसके लिये लेबलिंग और प्रोत्साहनों के माध्यम से सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों में खाद्य सुरक्षा संबंधी मापदंड़ों का निर्माण किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिये पोषण अभियान, ईट राइट, इंडिया अभियान, मिलेट मिशन और स्वस्थ्य भारत अभियान की तरह ही पोषण के अच्छे नतीजे हासिल करने के लिये अच्छी गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं और साथ ही कारोबारियों को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि वे खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिये बेहतर निवेश कर सकें।
बढ़ेगी मध्यम तबके की आबादी
भारत में अभी गरीब तबके की आबादी अधिक है। यही वह वर्ग है जो देश की अर्थव्यवस्था को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विश्व आर्थिक मंच द्बारा किये गये उपभोक्ता सर्वेक्षण की भविष्यवाणी पर गौर करें तो उसके अनुसार
2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को गरीब तबका नहीं बल्कि मध्यम वर्ग चलायेगा। यह इसीलिये क्योंकि तब तक लगभग 80 प्रतिशत भारतीय मध्यम वर्ग में शामिल हो जायेंगे। वर्तमान में यह संख्या 50 फीसदी है। सर्वेक्षण से जुड़े विशेषज्ञों ने माना है कि 2030 तक उपभोक्ताओं द्बारा किये जाने वाले कुल खर्च का 75 फीसदी इसी वर्ग द्बारा किया जायेगा, जिससे यह सुनिचित होने में थोड़ी आसानी होगी कि लोगों तक पोषक युक्त खाद्य तत्व पहुंच रहे हैं।
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