नये परिसीमन की जरूरतों को पूरा करेगा नया संसद भवन I New Parliament House will fulfill the needs of new delimitation
50 साल पहले किया गया था परिसीमन
कितने सांसदों की बैठने की होगी व्यवस्था, सांसदों के लिये क्या होगी सुविधा
संसद। यानि लोकतंत्र का मंदिर। राजनीतिक शब्दों में कहें तो-देश की सबसे बड़ी पंचायत। यहीं वह जगह है, जहां से देश का भविष्य तय होता है। भविष्य तय करने वाले लोग जनता द्बारा चुनकर यहां भेजे जाते हैं, जो उनके मुद्दे को पंचायत में उठाकर उनके अनुरूप उन्हें लागू कराने की कोशिश करते हैं। इसीलिए लोकतंत्र में संसद की गरिमा बेहद महत्वपूर्ण है। पर जिस तरह से देश की आबादी बढ़ रही है, उसके अनुरूप सांसदों की संख्या भी बढ़ेगी। ऐसे में, पुराने संसद भवन में सांसदों की बढ़ती संख्या के हिसाब से स्पेश कम पड़ रहा है। इसके अलावा जो दूसरी महत्वपूर्ण चीज है, वह यह है कि जब हर चीज का आधुनिकीकरण हो रहा है तो संसद का भी होना चाहिए, क्योंकि संसद देश का आइना भी होता है। इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार द्बारा संसद की नई इमारत का शिलान्यास और नई एनेक्सी में सीटों की संख्या में बढ़ोतरी पर चर्चा होना जरूरी है। समय की जरूरत के हिसाब से संसद भवन की जरूरत है। चाहे उसके पीछे सांसदों की बढ़ती संख्या हो, संसद में आधुनिकतम उपकरणों का इस्तेमाल हो या फिर सुरक्षा का दृष्टिकोण हो। ये सब परिस्थितियां नये संसद भवन की जरूरत को इंगित करते हैं।
क्या नई संसद में होगा 'बीजेपी का राज’
क्या नई संसद में होगा 'बीजेपी का राज’। क्या उसे नये परिसीमन का फायदा मिलेगा। यह सवाल भी पानी में तिनके की तरह तैर रहा है। नया संसद भवन बनने जा रहा है तो नई लोकसभा के हिसाब से। ये सब
2026 मेंं लोकसभा के 'डीलिमिटेशन’ (परिसीमन) की ही तैयारी है। इस संख्या तक कैसे पहुंचे ? हालांकि ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है। जैसा नियम कहते हैं कि हर 10 लाख की आबादी पर 1 सांसद होना चाहिए। 2019 के आम चुनावों में लगभग 88 करोड़ वोटर थे, इसका मतलब है कि उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए 888 सांसद होने चाहिए। लेकिन पुराने संसद भवन में इतनी सीटिंग ही नहीं है। लिहाजा, जो नया संसद भवन बनेगा वह आगामी 150 सालों के हिसाब से बनेगा, जो नये परिसीमन के आवश्यकता को पूर्ण तो करेगा ही बल्कि नये ढांचागत जरूरतों को भी पूरा करेगा, चाहे इसमें तकनीकी जरूरतें शामिल हों या फिर संसद भवन की सुरक्षा का मुददा हो। आबादी के हिसाब से परिसीमन क्यों जरूरी है, आइए इसे भी समझ लेते हैं।
परिसीमन के तहत होगा सीमांकन
दरअसल, परिसीमन का मतलब लोकसभा और विधानसभाओं की सीमाओं को फिर से सीमांकित करना होता है, ताकि आबादी में होने वाले बदलावों को सही तरीके से प्रतिनिधित्व मिल सके। संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार, लोकसभा के संयोजन में आबादी में होने वाले बदलाव नजर आने चाहिए, हालांकि
1976 में जो डिलिमिटेशन किया गया था, उसका आधार 1971 की जनगणना थी और उस समय सीटों की संख्या कमोबेश पहले जैसी ही थी। राज्य की सीटों की संख्या और आबादी का अनुपात सभी राज्यों मेंं लगभग एक सा होना चाहिए, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि हर राज्य को एक बराबर प्रतिनिधित्व मिल सके। हालांकि, 60 लाख से कम आबादी वाले छोटे राज्यों को इस नियम से छूट दी जाती है। हर राज्य व केंद्र शासित प्रदेश को कम से कम एक सीट आवंटित है, भले ही उसकी जनसंख्या कितनी भी हो। उदाहरण के लिए लक्षद्बीप की आबादी एक लाख से कम है, लेकिन संसद में वहां से एक लोकसभा सांसद है।
दक्षिण के राज्यों में परिवार नियोजन को मिला बढ़ावा
जहां तक दक्षिण के राज्यों का सवाल है, वहां परिवार नियोजन को बढ़ावा दिया गया है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्हें कम सीटें न मिलें,
2001 तक वहां परिसीमन काम इस आधार पर रोक दिया था कि देश में 2026 तक आबादी की एक समान वृद्धि दर हासिल कर ली जायेगी, जहां तक नए संसद में सांसदों के संख्या बल का सवाल है, नई लोकसभा में 888 सांसद में सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश के सांसदों की रहेगी, जो 143 होगी। इसके बाद महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल का स्थान आता है, हालांकि पूर्वोत्तर के राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के सांसदों की संख्या में इजाफा नहीं होगा।
10 राज्यों के सांसदों में होगी सबसे अधिक बढ़ोतरी
जिन 10 राज्यों के सांसदों में सबसे अधिक बढ़ोतरी होगी, उनमें उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और तेलंगाना शामिल रहेंगे। सांसदों की संख्या में जो बढ़ोतरी होगी, उसका लगभग 80 प्रतिशत तो इन्हीं 10 राज्यों मेंं बढ़ेगा, लेकिन लोकसभा का क्षेत्रवार सीट वितरण के तहत ऐसे क्षेत्र भी होंगे, जिनके प्रतिनिधित्व में गिरावट भी आयेगी। परिसीमन के बाद नई लोकसभा का क्षेत्रवार विश्लेषण बताता है कि दक्षिण
(-1.9 प्रतिशत) और पूर्वोत्तर (-1.1 प्रतिशत) के प्रतिनिधित्व में गिरावट होगी, वर्तमान लोकसभा में उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व 27.8 प्रतिशत है और उसके प्रतिनिधित्व में 1.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। वहीं, डिलिमिटेशन के बाद नई लोकसभा में उसका हिस्सा 29.4 प्रतिशत होगा। इसी तरह पूर्वी भारत (+0.5 प्रतिशत), पश्चिमी भारत (+0.5 प्रतिशत) और मध्य भारत (+0.5 प्रतिशत) को भी उच्च प्रतिनिधित्व मिलेगा।
नये परिसीमन से बीजेपी को लाभ
जब से नये संसद भवन का शिलान्यास किया गया है, जब से नये परिसीमन से बीजेपी को लाभ मिलने की बात भी चर्चा का विषय बना हुआ है। पर आज के परिपेक्ष्य में यह बिल्कुल सही है, क्योंकि बीजेपी उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में बहुत मजबूत है, पर दक्षिण में कमजोर है। अगर बीजेपी, कांग्रेस और अन्य की सीटों की मौजूदा संख्या के हिसाब से नई लोकसभा की सीटों का आकलन किया जाए तो बीजेपी के 515
सांसद होंगे, कांग्रेस के 75 और क्षेत्रीय दलों एवं स्वतंत्र के 296
सांसद। राज्यों के क्षेत्रीय संयोजन में बदलाव के बाद उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी, जहां बीजेपी मजबूत है। संसद के निचले सदन में इस समय बीजेपी सांसदों का हिस्सा
55.8 प्रतिशत है, जो कि नई लोकसभा (परिसीमन के बाद) में बढ़कर 58.1 प्रतिशत हो जाएगा। लेकिन कांग्रेस का हिस्सा 9. राज्यों से जीतकर आए हैं। क्षेत्रीय दलों की संख्या भी गिर जाएगी, क्योंकि उनके भी लगभग 40 प्रतिशत सांसद दक्षिण भारत से चुने गए हैं।
प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय असमानता क्यों
इन सब परिस्थितियों में यह सवाल जरूर उठ सकता है कि प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय असमानता क्यों और उत्तर भारत को ही फायदा क्यों ? हालांकि अभी परिसीमन में समय है, पर इसको समझना जरूरी है। दरअसल,
2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 2026 के बाद होने वाली जनगणना, जोकि 2031 में होगी, तक लागू रहेगी, बशर्ते उसमें संशोधन कर दिया जाए या जनगणना पहले कर ली जाए। हालांकि प्रतिनिधित्व में जो क्षेत्रीय अंतर है, वह बताता है कि उत्तर भारत को सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है और दक्षिण भारत को नुकसान। वैसे देखा जाए तो राजनीति में 11 साल काफी लंबा समय होता है। इसीलिए इस मुद्दे पर भी बहस जरूरी है कि इस समयावधि तक बीजेपी अपना प्रभुत्व कायम रख पाती है या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर मौजूदा रुझानों के हिसाब से देखें तो ऐसा लगता है कि इस परिसीमन का सबसे ज्यादा फायदा उसे ही होने वाला है। निचले सदन में उसी के सांसदों की संख्या बढ़ने वाली है।
संसद की सुरक्षा है मुख्य मकसद
हालांकि यह सब राजनीतिक गणित है। समय के अनुसार बदलता रहता है, पर नये संसद के निर्माण से जो भविष्य में बने रहने वाली बात होगी, वह है संसद की सुरक्षा। संसद की सुरक्षा इसीलिए भी जरूरी है क्योंकि देश का कोई नागरिक 13 दिसंबर
2001 की उस घटना को कभी नहीं भूल सकता है, जब पांच आंतकियों से संसद भी हमला बोल दिया था। यह बहुत सवाल है कि आखिर कैसी आंतकी संसद भवन परिसर तक पहुंच गये। ये सभी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद गैंग के थे। इस हमले में 9 लोग मारे गये थे। भारतीय इतिहास की उस काली तारीख की आज 19 बरसी है। 19 बरसी से ठीक पहले नये संसद भवन का शिलान्यास करने का मतलब है कि नये संसद भवन में इस तरह की घटनाएं कभी दोहराई नहीं जा सकेंगी। ऐसी सुरक्षा के लिहाज से नया संसद भवन पूरी तरह से वेल अपडेटेड होगा, जो ऐसे नापाक इरादों को भंपाने के सारे इंतजाम होंगे। वहीं, सांसदों के बैठने की जगह, उनके हाईफाई ऑफिसेज, कांफ्रेंस हाल, लाइब्रेरी से लेकर आधुनिक कैंटीन भी होगी। इस सब परिस्थितियों में नया संसद भवन नये लुक में नजर आयेगा, जो भारत की गरिमामय तस्वीर को दर्शायेगा।
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