हिमालयी क्षेत्रों के लिए खतरा बन रहे ग्लेशियर

 वैज्ञानिकों को पहले से ही था चमोली जैसी घटना का अंदेशा 

2013 का केदारनाथ हादसा। उस हादसे को लोग अभी तक नहीं भूल पाए थे। उस भंयकर तबाही के निशान आज भी वहां देखने को मिलते हैं। धीरे-धीरे ही सही, वह ईलाका उस हादसे से उबरने की कोशिश कर ही रहा था, पर एक और बड़ा हादसा। उसी तरह की तबाही के निशान, जिसने केदारनाथ हादसे के जख्मों को एक बार फिर ताजा कर दिया। चमोली में जिस तरह ग्लेशियर टूटने के बाद धौली और अलकनंदा नदी में भंकयर बाढ़ आई, उसका अंदेशा  भू-वैज्ञानिकों को पहले से ही था। ऐसे हादसों को लेकर भू-वैज्ञानिक आठ महीने पहले आगाह भी कर चुके थे। 



दरअसल, देहरादून में स्थित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी दी थी। बकायदा, उन्होंने पिछले साल जून-जुलाई के महीने में एक अध्ययन के जरिए जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों द्बारा नदियों के प्रवाह को रोकने और उससे बनने वाली झील के खतरों को लेकर यह चेतावनी जारी की थी। इन वैज्ञानिकों ने 2019 में क्षेत्र में ग्लेशियर से नदियों के प्रवाह को रोकने संबंधी शोध आइस डैम, आउटबस्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनिटी ऑफ ग्लेशियर में सेटेलाइट इमेजरी, डिजीटल मॉडल, ब्रिटिशकालीन दस्तावेज, क्षेत्रीय अध्ययन की मदद से वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस दौरान इस इलाके में कुल 146 लेक आउटबस्ट की घटनाओं का पता लगाकर उसकी विवेचना की गई थी। शोध में पाया गया था कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।

वहीं, दूसरी तरफ पीओके वाले काराकोरम क्षेत्र में कुछ ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है। इस कारण ये ग्लेशियर विशेष अंतराल पर आगे बढ़कर नदियों का मार्ग अवरुद्घ कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की बर्फ तेजी से ग्लेशियर के निचले हिस्से की ओर आती है।

भू-वैज्ञानिक बताते हैं कि भारत की श्योक नदी के ऊपरी हिस्से में मौजूद कुमदन समूह के ग्लेशियरों में विशेषकर चोंग कुमदन ने 1920 के दौरान नदी का रास्ता कई बार रोका था, इससे उस दौरान झील के टूटने की कई घटनाएं भी हुईं। वहीं, 2020 में क्यागर, खुरदोपीन सिसपर ग्लेशियर ने काराकोरम की नदियों के मार्ग को रोक झील बनाई है। इन झीलों के एकाएक फटने से पीओके समेत भारत के कश्मीर वाले हिस्से में जानमाल की काफी क्षति हो चुकी है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि भले ही अभी निश्चित तौर पर यह नहीं बताया जा सकता है कि इस घटना का कारण क्या रहा, एवलांच या फिर ग्लेशियर का फटना। लेकिन यह कहा जा सकता है कि ऊपरी क्षेत्र में यह ग्लेशियर फटने या एवलांच जैसी घटना ही रही होगी। आपको बता दें-एवलांच हिमालयी ग्लेशियर का एक बड़े आकार का टुकड़ा होता है, जो किसी कारण ग्लेशियर से टूटकर नीचे की ओर लुढ़कने लगता है। ग्लेशियर का यह टुकड़ा अपने रास्ते में काफी तबाही मचाता है। नीचे उतरने के साथ ही एवलांच पिघलने लगता है और इसका पानी अपने साथ मिट्टी, गाद आदि समेट लेता है। निचले क्षेत्रों में पहुंचने तक इसकी तीव्रता काफी बढ़ जाती है और यह काफी मारक हो जाता है। 

पर इस बार चमोली में आई ऐसी त्रासदी में तत्काल शुरू किए गए राहत बचाव कार्यों से ऐसी स्थिति नहीं आई। खासकर, निचले हिस्सों को लेकर। निचले हिस्सों तक पानी आते-आते अपनी सामान्य स्थिति में गया। ऐसा इसीलिए हो पाया क्योंकि केंद्र के साथ ही राज्य सरकार ने केदारनाथ की त्रासदी से सबक लेते हुए तत्काल बचाव राहत कार्य शुरू कर दिए थे। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बंगाल और असम दौरे पर होने के बाद भी लगातार इस त्रासदी की मॉनटरिंग करते रहे। वह प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लगातार अपडेट लेते रहे। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी राज्य सरकार के संपर्क में रहे। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ की टीमें तत्काल मौके पर पहुंची। वहीं, पुलिस-प्रशासन की टीमों ने नदी के आसपास रहने वाले लोगों को समय रहते अलर्ट जारी कर दिया था। यानि पूरा ही अमला बचाव राहत कार्य में फौरन जुट गया था। आईटीबीपी के जवानों ने जिस तरह बचाव राहत कार्यों के दौरान अपना अदम्य साहस दिखाया, उसकी बदौलत ही टनल में फंसे कई लोगों की जान बच गई। अभी कई लोगों के फंसे होने की सूचना है, पर जिस तरह बचाव राहत टीमें दिन-रात राहत कार्यों में जुटी हुईं हैं, उससे उम्मीद बनी हुई है कि जल्द फंसे हुए लोगों को निकाल लिया जाएगा। 

पर कुल मिलाकर हमें ऐसी त्रासदियों को गंभीरता से लेना ही पड़ेगा। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को कम करना होगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के साथ ग्लेशियरों के टूटने फटने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। ऐसी घटनाओं को कैसे कम किया जाए, इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। 


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