सारा देश तिरंगे से प्यार करता है : राकेश टिकैत
कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर राजधानी दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन लगातार नए स्वरूप की तरफ बढ़ रहा है। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद जिस तरह किसान आंदोलन कटघरे में खड़ा हो गया था, उससे लग रहा था कि अब यह आंदोलन लंबा नहीं चलेगा, क्योंकि उस रात को बहुत सारे किसान दिल्ली से अपने घरों को वापस लौट गए थे, पर मीडिया से बातचीत के दौरान जिस तरह किसान आंदोलन के मुखिया व भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत का रोते हुए वीडियो वायरल हुआ तो आंदोलन ने एक बार फिर यू-टर्न ले लिया और किसानों को गाजीपुर में फिर से जमावड़ा लग गया, जिसकी उम्मीद सरकार को भी नहीं थी। पर अब हालात ये हैं कि आंदोलन नई दिशा की तरफ बढ़ने लगा है। किसानों में आत्मविश्वास दिख रहा है। ऐसा कतई नहीं लगता कि बिना अपनी मांग मनवाए किसान अखाड़ा छोड़ने वाले हैं। ऐसे ही, कुछ सवालों को लेकर हमने किसान आंदोलन का चेहरा राकेश टिकैत से बातचीत की। किसानों की आगे की क्या रणनीति है, इस पर उन्होंने खुलकर अपनी बात रखी।
सवाल: प्रधानमंत्री द्बारा मन की बात कार्यक्रम में 26 जनवरी को तिरंगे के अपमान के संबंध में दिए गए बयान को आप किस तरह लेते हैं ?
उत्तर: हम पूछना चाहते हैं कि तिरंगा सिर्फ प्रधानमंत्री का है क्या ? सारा देश तिरंगे से प्यार करता है, जिसने तिरंगे का अपमान किया है सरकार उसे पकड़े। हम तो कह ही रहे हैं कि तिरंगे का अपमान करने वालों को नहीं छोड़ा जाना चाहिए। यह काम सरकार का है, वह तलाशे कि वो लोग कौन थे, जिन्होंने तिरंगे का अपमान किया। 26 जनवरी को जो कुछ भी हुआ, वह एक साजिश का नतीजा था। टिकैत ने कहा कि इसकी व्यापक जांच होनी चाहिए क्योंकि तिरंगा सबसे ऊपर है। हम कभी तिरंगे का अपमान नहीं होने देंगे। सदैव उसे ऊंचा रखेंगे। यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सवाल: सरकार से बातचीत को लेकर अब आपकी क्या योजना है ?
उत्तर: हम सरकार के साथ बातचीत करने को तैयार हैं, पर बंदूक की नोक पर बातचीत कतई नहीं हो सकती। सरकार को अपना रवैया बदलना होगा। किसानों के बारे में खराब मानसिकता से उसे बाहर निकलना होगा। हम बिल्कुल नहीं चाहते कि सरकार या संसद हमारे आगे झुके, लेकिन सरकार किसानों के आत्म-सम्मान की भी रक्षा करे। सरकार से हमारी यही मांग है कि हमारे जो लोग जेल में बंद हैं, वो रिहा हो जाएं, फिर बातचीत होगी।
सवाल: अगर, सरकार इस एंगल पर बातचीत को तैयार नहीं हुई तो ?
उत्तर: इस पर सरकार को सोचने की जरूरत है। हमारी मांग बिल्कुल साफ हैं। जहां तक आंदोलन और किसानों का सवाल है, सरकार के रवैये से किसानों को न तो कमजोर होने की जरूरत है और न ही हताश होने की। किसानों का मनोबल गिराने के लिए जो षड़यंत्र रचा गया था, किसान अब उससे बाहर निकल चुका है। किसानों का मनोबल कम नहीं होगा। किसान अपनी लड़ाई पूरी मजबूती से लड़ेगा। इस लड़ाई में किसान की हार नहीं होगी, बल्कि किसान जीतकर जाएगा। हम इतना साफ तौर पर बता देते हैं कि किसान अपना हक लेने के लिए दिल्ली आया है और उसे लिए बगैर वह किसी भी सूरत में वापस लौटकर नहीं जाएगा।
सवाल: आगे आंदोलन का स्वरूप क्या होगा ? फिर से हिंसा तो देखने को नहीं मिलेगी ?
उत्तर: हमारे आंदोलन का स्वरूप बिल्कुल साफ है। शुरू से ही अहिंसात्मक आंदोलन चलता आया है और आगे भी इसी रास्ते पर आंदोलन चलेगा। जहां तक आप हिंसा की बात कर रहे हैं, उससे हमारा कोई भी लेना-देना नहीं है। हिंसा करने वाले कौन लोग थे, उसका हमें भी मालूम नहीं। हिंसा का हम भी विरोध करते हैं, इसीलिए हम बार-बार कह रहे हैं कि ऐसे लोगों को पुलिस चिन्हि्त करे, उनके खिलाफ कार्रवाई करे।
सवाल: क्या आपको लगता है कि सरकार कृषि कानूनों को वापस लेगी ?
उत्तर: इस संबंध में सरकार ही बता सकती है। वह इस संबंध में क्या सोचती है, क्या नहीं। पर हम अपने बारे में इतना जरूर सोचते हैं कि जब तक कृषि कानून वापस नहीं लिए जाएंगे, हम अपना आंदोलन बिल्कुल भी खत्म नहीं करेंगे। अगर, सरकार चाहेगी कि किसानों पर किया जा रहा अत्याचार खत्म हो तो वह काले कानूनों को वापस ले।
सवाल: कई दौर की बातचीत के बाद भी रास्ता क्यों नहीं निकल रहा है ?
उत्तर: इसके पीछे सरकार का अड़ियल रवैया जिम्मेदार है। वह किसानों पर काले कानून थोपना चाहती है। जिसे बिल्कुल भी होने नहीं दिया जाएगा। किसान इस देश का अन्नदाता है। अगर, उसे अपनी बपौती समझकर अत्याचार किया जाएगा तो उसका पूरजोर विरोध किया जाएगा। किसानों की मांगों में कहीं भी खोट नहीं है, इसीलिए सरकार को चाहिए कि किसानों की मांगें पूरी की जाएं और काले कानूनों को वापस लिया जाए।
सवाल: अगर, सरकार कानूनों को वापस नहीं लेगी तो फिर क्या विकल्प है ?
उत्तर: यही आंदोलन का विकल्प। हम पहले भी कह चुके हैं कि जब तक काले कानून सरकार वापस नहीं लेगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। भले ही, इसमें कितना ही वक्त क्यों न लग जाए। अब सरकार को इस पर सोचना है कि आखिर वह कब तक इन काले कानूनों को वापस लेती है। किसान तो मूड बनाकर आया कि जब तक उसे बर्बाद करने वाले कानून वापस नहीं लिये जाते हैं, तब तक वह पीछे नहीं हटेगा।
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