दवा के प्रमोशन के लिए इसलिए विवादों का सहारा लेते हैं बाबा रामदेव
अक्सर, हम लोग देखते हैं, जब भी योगगुरू बाबा रामदेव की पंतजलि आयुर्वेद कोई दवा बाजार में उतारती है तो उससे पहले विवाद खड़ा हो जाता है। जैसा, हम सब कोरोनिल के बारे में पिछले एक साल से देख रहे हैं। इस दवा को लांच करते वक्त शुरू हुआ विवाद अभी तक खत्म नहीं हुआ है। बीच-बीच में कुछ-न-कुछ अफवाह भरी बातें सामने आ ही जाती हैं। बहुत से लोग सोच सकते हैं कि लोग जान-बूझकर बाबा रामदेव की दवा पर सवाल उठाते हैं, पर ऐसा नहीं है, बल्कि बाबा रामदेव स्वयं ऐसा माहौल क्रिएट करते हैं, वह इसीलिए क्योंकि विवादित चीजें बहुत जल्दी प्रचारित होती हैं। जैसा, आजकल फिल्मों के प्रमोान के लिए भी यही तरीका अपनाया जाता है। किसी फिल्म को हिट करना है तो उससे पहले उसके किसी सीन, पटकथा और कहानी को लेकर खूब विवाद पैदा किया जाता है। इस विवाद में यह फिल्म इतनी प्रचारित हो जाती है कि लोग उस फिल्म को देखना अपनी मजबूरी मान लेते हैं।
बाबा रामदेव ने कोरोनिल के संबंध में ठीक यही मार्केटिंग स्ट्रेटजी अपनाई और लोगों तक कोरोनिल की खूब पहुंच बनाई। क्योंकि बाबा रामदेव ने इसे शुरू से ही कोरोना का ईलाज बताया। थोड़ा रामदेव की मार्केटिंग स्ट्रेटजी का कमाल था और थोड़ा लोगों का आयुर्वेद में विश्वास। इसीलिए जब लोग बीमार पड़े तो उन्होंने एैलोपैथिक दवा के साथ कोरोनिल का भी जमकर इस्तेमाल किया, क्योंकि वे जानते थे कि इसका कोई साइड इफैक्ट तो होना नहीं। कोरोनिल, कोरोना से बचाव नहीं करेगी तो कम से कम इम्युनिटी तो बूस्ट करेगी ही। जब कोरोना की पहली या दूसरी लहर पीक पर रही तो लोगों ने कोरोनिल की जमकर खरीददारी की। आलम यह रहा कि कई बार तो कोरोनिल आउट ऑफ स्टॉक भी हो गई थी। फिर भी हम सबने देखा कि लोगों की लंबी-लंबी कतारें बाबा रामदेव के पंतजलि स्टोरों के बाहर खड़ी है। लांच के पहले चार महीने में ही बाबा रामदेव की पंतजलि आयुर्वेद कोरोनिल की 25 लाख किट बेचने में सफल रही थी। यानि उन्होंने महज इन चार महीनों में 250 करोड़ रूपए का कारोबार किया। करोड़ों का यह कारोबार तब हुआ, जब सरकार ने भी इसे कोरोना का ईलाज मानने के बजाय केवल इम्युनिटी बूस्टर के रूप में बेचने की अनुमति दी थी। लांच के शुरूआती महीनों में ही कोरोनिल ने जिस तरह का कारोबार किया, उससे भी कहीं अधिक कारोबार हमें कोरोना की पहली और दूसरी लहर के पीक के दौरान देखने को मिला, इसीलिए आसानी से कहा जा सकता है कि कोरोनिल ने हजारों करोड़ का कारोबार अब तक कर लिया होगा।
फिर भी, बाबा रामदेव अपनी मार्केटिंग स्ट्रेटजी के तहत इसके प्रमोशन में जुटे पड़े हैं, क्योंकि हाल के महीनों में पंतजलि आयुर्वेद ने इसको लेकर न केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ से मान्यता मिल जाने की अफवाह फैलाई, बल्कि इसी साल फरवरी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन की मौजूदगी में इसे एक बार फिर कोरोना का ईलाज बताया गया। पंतजलि आयुर्वेद ने जिस तरह कोरोनिल को डब्ल्यूएचओ से मान्यता मिलने की बात प्रचारित की, उससे लोगों के बीच यह कन्फूजन क्रिएट हुआ कि शायद, डब्ल्यूएचओ ने कोरोनिल को कोरोना की दवा के रूप में मान्यता दी है। पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। जब इसकी सच्चाई सामने आई तो यह कहानी, उस कहानी से बिल्कुल अलग थी, जो पंतजलि आयुर्वेद द्बारा फैलाई गई। दरअसल, यह मान्यता कोरोनिल को कोविड की दवा के रूप में नहीं, बल्कि गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस यानि जीएमपी प्रमाण-पत्र के मामले में मिली थी, जो डब्ल्यूएचओ सर्टिफिकेशन स्कीमों के अनुरूप होता है और भारत का शीर्ष ड्रग रेगुलेटर ही डब्ल्यूएचओ से मान्यता प्राप्त एक स्कीम के तहत जीएमपी सर्टिफिकेशन देता है। यह निर्यात के मकसद से उत्पादन मानकों को सुनिश्चित करने के लिए दिया जाता है। यानि पंतजलि आयुर्वेद अब भारत के अलावा विदेशों में भी कोरोनिल का निर्यात कर सकता है। पर, इसका मतलब यह नहीं है कि डब्ल्यूएचओ ने कोरोनिल को कोविड की दवा के रूप में मान्यता दी है।
जहां तक, पंतजलि आयुर्वेद द्बारा इसी साल 19 फरवरी को आयोजित कार्यक्रम का सवाल है, वह भी विवादों में ही रहा। भले ही, पंतजलि आयुर्वेद ने उस कार्यक्रम में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन को अतिथि के रूप में बुलाकर सफल बनाने की कोशिश की हो। यह विवाद भी किसी और चीज को लेकर नहीं था, बल्कि कोरोनिल को लेकर ही था। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में यह दावा फिर दोहराया गया कि कोरोनिल कोविड-19 से बचाव और उसका इलाज कर सकती है। केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में कोरोनिल को इस तरह प्रचारित करना, सवाल इसीलिए खड़ा करता है, क्योंकि सरकार ने इसे कोरोना की दवा मानने के बजाय केवल इम्युनिटी बूस्टर ही माना था, इसीलिए डॉ हर्षवर्धन की इस मौजूदगी की भारत में डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानि आईएमए ने आलोचना की थी। संस्था ने कहा था कि स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में एक 'अवैज्ञानिक दवा' का प्रचार भारत के लोगों का अपमान है।
शायद, आईएमए की इस आलोचना का ही नतीजा था कि बाबा रामदेव ने हाल ही में एैलोपैथ पर जमकर निशाना साधा। पर जब विरोध हुआ तो अपने बयान से पलटी मार दी और मामले में अपनी सफाई देकर मामले को ठंडा करने की कोशिश की और एलौपैथ के तरीफों के पुल बांध डाले, लेकिन वास्तव में, एलोपैथ को लेकर बाबा रामदेव का यह पहला विरोध नहीं था, बल्कि वह शुरू से ही इसको लेकर एग्रेसिव रहे हैं। पहले भी एलोपैथ को लेकर स्वामी रामदेव और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बीच गरमा-गरमी होती रही है। पतंजलि आयुर्वेद के ट्विटर टाइमलाइन पर भी उन्होंने कई ऐसी बातें लिखी हैं, जिनमें साफ तौर पर योग और आयुर्वेद को एलौपैथ के मुकाबले बेहतर बताया गया है। कुल मिलाकर, बाबा का कारोबारी अंदाज भी फिल्म उद्योग की तरह ही चलता है। वह जानबूझकर ठीक वही मार्केटिंग स्ट्रैटजी अपनाते हैं, जैसे फिल्म के लोग अपनाते हैं यानि उनकी भी मार्केट स्ट्रैटजी का मूल मंत्र उसी तरह विवाद खड़ा करना होता है, जैसा कि फिल्मों के प्रदर्शन से पहले किसी सीन, पटकथा और कहानी को लेकर किया जाता है। अब कोरोना की तीसरी लहर आने की बात भी कही जा रही है, ऐसे में इस लहर में भी बाबा कोरोनिल का अधिक कारोबार करने से चूकेंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
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