आपके मन में भी कोरोना वैक्सीन को लेकर ये सवाल हैं, तो जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

  ये  विशेषज्ञ  हैं नीति आयोग के सदस्य डावीके पॉल और एम्स के निदेशक डारणदीप गुलेरिया 

भारत कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है, लेकिन यह लहर धीरे-धीरे कम हो रही है। जहां साढ़े चार लाख तक मामले प्रतिदिन रहे थे, अब यह संख्या एक लाख से नीचे चुकी है। यह संख्या और कैसे नीचे आए, इसके लिए सरकार वैक्सीनेशन पर पूरा जोर दे रही है। केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि अब वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी उसी की होगी और बचे हुए लोगों का मुफ्त वैक्सीनेशन किया जाएगा। यह ऐलान सोमवार शाम को देश के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। यह देश के लोगों के लिए बड़ी राहत की बात है, लेकिन यहां सबसे बड़ी समस्या यह है कि वैक्सीनेशन को लेकर लोगों के मन में अभी भी बहुत सारे सवाल हैं। इनमें चाहे गर्भवती महिलाओं को वैक्सीन लगाने का सवाल हो या फिर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को वैक्सीन लगाने की बात हो। इसके अलावा भी बहुत सारे सवाल हैं, जिनमें क्या एलर्जी वाले लोगों को वैक्सीन लगाया जा सकता है ? क्या वैक्सीन लगाने के बाद एंटीबॉडी बनता है या नहीं ? क्या वैक्सीन का इंजेकन लगने के बाद खून का थक्का बनना सामान्य बात है ? अगर, कोरोना संक्रमण हो गया है तो कितने दिनों के बाद वैक्सीन लगवाया जा सकता है ?

आप भी अगर, ऐसे ही सवालों से परेशान हैं तो आइए जानिए कि इन सवालों के जबाब में नीति आयोग (स्वास्थ्य) के सदस्य डा. वीके पॉल और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने क्या कहा। दरअसल, उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम दौरान इन सभी सवालों के जबाब दिए, जिससे लोगों के बीच वैक्सीन को लेकर फैल रही भ्रांतियां खत्म हो सके। 

Dr. Randeep Guleria                               Dr. VK Paul 


क्या एलर्जी वाले लोगों को वैक्सीन लगाई जा सकती है ? इस सवाल के जबाब में नीति आयोग के सदस्य डा. वीके पॉल ने कहा-अगर, किसी को एलर्जी की समस्या है तो वह चिकित्सीय सलाह के बाद कोविड की वैक्सीन लगवा सकता है। अगर, सामान्य सर्दी, त्वचा की एलर्जी जैसी सामान्य एलर्जी है तो बिना संकोच वैक्सीन लगाया जा सकता है। वहीं, एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि अगर, कोई एलर्जी की पहले से दवा ले रहा है तो उसे दवा को रोकना नहीं चाहिए। वैक्सीन लगवाने के बाद भी नियमित लेते रहना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि वैक्सीन के कारण उत्पन्न होने वाली एलर्जी के प्रबंधन के लिए सभी वैक्सीन सेंटरों पर व्यवस्था की गई है। ऐसे में, हम सलाह देते हैं कि यदि, किसी को भी गंभीर एलर्जी है तो भी वह दवा लेते रहे और वैक्सीन लगवाएं।

दूसरा, गर्भवती महिलाओं को कोविड-19 वैक्सीन लगाई जा सकती है या नहीं ? इसको लेकर भी संशय है। पर इन संबंध में दोनों ही विशेषज्ञों ने गर्भवती महिलाओं को वैक्सीन नहीं लगाने की सलाह दी। इस संबंध में डा. पाल का कहना है कि हमारे वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को वैक्सीन नहीं लगाई जानी चाहिए। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि चिकित्सकों और वैज्ञानिक समुदाय द्बारा वैक्सीनों के परीक्षणों से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर अभी गर्भवती महिलाओं को वैक्सीन लगाने की सिफारिश करने का निर्णय नहीं लिया जा सका है, हालांकि, भारत सरकार नए वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर आगामी कुछ दिनों में इस स्थिति को स्पष्ट करेगी। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं के लिए कई कोविड-19 वैक्सीन सुरक्षित पाए जा रहे हैं। ऐसे में, हम भी उम्मीद करते हैं कि हमारे दोनों वैक्सीन के लिए भी रास्ता खुल जाना चाहिए। फिलहाल, लोगों को थोड़ा धैर्य रखना होगा। खासकर, यह देखते हुए कि वैक्सीन बहुत कम समय में विकसित किए गए हैं और गर्भवती महिलाओं को आमतौर पर सुरक्षा चिताओं के कारण प्रारभिंक परीक्षणों में शामिल नहीं किया जा रहा है। उधर, एम्स के निदेशक डा. गुलेरिया का कहना है कि कई देशों ने गर्भवती महिलाओं के लिए वैक्सीनेशन का काम शुरू कर दिया है। अमेरिका के एफडीए ने फाइजर और मॉडर्ना जैसी कंपनियों की वैक्सीन को इसके लिए मंजूरी दे दी है। हमारे यहां भी को-वेक्सीन और कोवि-शील्ड से संबंधित आंकड़े जल्द आएंगे। कुछ डेटा पहले से ही जरूर उपलब्ध है। पर हमें उम्मीद है कि कुछ दिनों में, हम पूर्ण आवश्यक आंकड़े प्राप्त करने और भारत में भी गर्भवती महिलाओं के वैक्सीनेशन को मंजूरी देने में सफल होंगे। 



अब आते हैं तीसरे सवाल पर। क्या स्तनपान कराने वाली महिलाएं वैक्सीन लगवा सकती हैं? इस संबंध में डॉ पॉल कहते हैं कि इस बारे में बहुत स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि वैक्सीन स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए बिल्कुल सुरक्षित है। इसको लेकर किसी प्रकार का डर मन में रखें। वैक्सीन से पहले या बाद में स्तनपान कराने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। उधर, वैक्सीन लगाने के बाद पर्याप्त एंटीबॉडी बनने के संबंध में भी लोगों के मन में सवाल रहते हैं। क्या वैक्सीन लगवाने के बाद पर्याप्त एंटीबॉडी बनती है या नहीं ? इस सवाल का जबाब देते हुए एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमें वैक्सीनों की प्रभावशीलता का आकलन केवल उससे उत्पन्न होने वाली एंटीबॉडी की मात्रा से नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैक्सीन कई प्रकार की सुरक्षा प्रदान करते हैं, जैसे-एंटीबॉडी, कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा तथा स्मृति कोशिकाओं के माध्यम से, जो हमारे संक्रमित होने पर अधिक एंटीबॉडी उत्पन्न करते हैं। इसके अतिरिक्त अब तक, जो प्रभावोत्पादकता परिणाम सामने आए हैं, वे परीक्षण अध्ययनों पर आधारित हैं, जहां प्रत्येक परीक्षण का अध्ययन डिजाइन कुछ अलग है।

उन्होंने कहा कि अब तक उपलब्ध आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि सभी वैक्सीनों के प्रभाव-चाहे को-वेक्सीन हो या कोवि-शील्ड या स्पूतनिक-वी हो, कमोबेश सब बराबर हैं। इसलिए हमें यह नहीं कहना चाहिए कि यह वैक्सीन या वह वैक्सीन। जो भी वैक्सीन आपके क्षेत्र में उपलब्ध है, उसे आगे बढ़कर लगवाएं, जिससे आप और आपका परिवार सुरक्षित रहे। इस संबंध में नीति आयोग के सदस्य डॉ. पॉल ने कहा कि कुछ लोग वैक्सीन के बाद एंटीबॉडी परीक्षण करवाने की सोच रहे लगते हैं, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अकेले एंटीबॉडी किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा का संकेत नहीं देते। दरअसल, ऐसा टी-कोशिकाओं या स्मृति कोशिकाओं के कारण होता है, जब हम वैक्सीन लगवाते हैं तो इनमें कुछ परिवर्तन होते हैं और वे मजबूत भी होते जाते हैं और प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। साथ ही, टी-कोशिकाओं का एंटीबॉडी परीक्षणों से पता नहीं चलता, क्योंकि वे अस्थि मज्जा में पाए जाते हैं। 

अत: हमारी अपील है कि वैक्सीन से पहले या बाद में एंटीबॉडी परीक्षण करने की प्रवृत्ति में पड़ें। जो भी वैक्सीन उपलब्ध है, उसे लगवाएं और दोनों खुराक सही समय पर लें और कोविड उपयुक्त आचरण का पालन करें। उन्होंने आगे कहा-लोगों को यह गलत धारणा भी नहीं बनानी चाहिए कि यदि, आपको कोरोना हो चुका है तो वैक्सीन लगवाने की आवश्यकता नहीं है। कोरोना से ठीक होने के बाद वैक्सीन अवश्य लगवाएं। डॉ. गुलेरिया ने कहा-नवीनतम दिशा-निर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिस व्यक्ति को कोरोना का संक्रमण हुआ है, वह ठीक होने के दिन से तीन महीने बाद वैक्सीन लगवा सकता है। ऐसा करने से शरीर को मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद मिलेगी और वैक्सीन का असर बेहतर होगा। लोगों में यह भी भ्रांति है कि क्या वैक्सीन का इंजेक्शन लगने के बाद खून का थक्का बनना सामान्य बात है ?

इस सवाल के जबाब में नीति आयोग के सदस्य डा. पॉल ने कहा कि इस जटिलता के कुछ मामले सामने आए हैं, खासकर एस्ट्रा-जेनेका वैक्सीन के संबंध में, पर यह जटिलता भारत में नहीं, यूरोप में हुई, जहां यह जोखिम उनकी जीवनशैली, शरीर और आनुवंशिक संरचना के कारण उनकी युवा आबादी में कुछ हद तक मौजूद पायी गईं, लेकिन मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमने भारत में इन आंकड़ों की व्यवस्थित रूप से जांच की है और पाया है कि रक्त के थक्के जमने की ऐसी घटनाएं यहां लगभग नगण्य हैं- इतनी नगण्य कि किसी को इसके बारे में चिंता करने की आवश्यकता है ही नहीं। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों में, ये जटिलताएं हमारे देश की तुलना में लगभग 30 गुना अधिक पाई गईं है। एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि यह पहले भी देखा गया है कि सर्जरी के बाद रक्त का थक्का बनना भारतीय आबादी में अमेरिका और यूरोपीय आबादी की तुलना में बहुत कम होता है। वैक्सीन प्रेरित थ्रोम्बोसिस या थ्रोम्बोसाइटोपेनिया नाम का यह दुष्प्रभाव भारत में बहुत दुर्लभ है, जो यूरोप की तुलना में यहां बहुत कम अनुपात में पाया जाता है। इसलिए इससे डरने की कोई भी जरूरत नहीं है। इसके लिए उपचार भी उपलब्ध हैं, जिन्हें जल्दी निदान होने पर अपनाया जा सकता है।

 कुल मिलाकर दोनों विशेषज्ञों  ने जोर देकर आश्वस्त किया कि हमारी वैक्सीन आज तक भारत में देखे गए म्यूटेंट पर पूरी तरह प्रभावी हैं, इसीलिए वैक्सीन लगाने को लेकर मन में कोई भी आशंका   रखें और स्लॉट अनुसार क्षेत्र में जो भी वैक्सीन उपलब्ध है, उसे लगा लें। 


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