क्या यूपी में भी दिख सकता है नेतृत्व परिवर्तन ?
देश के किसी भी राज्य में चुनाव नजदीक हों और बीजेपी के अंदर बैचेनी शुरू न हो, ऐसा नहीं हो सकता है। जब बात देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर-प्रदेश की हो तो बैचेनी अधिक होना स्वाभाविक है। जी हां, उत्तर-प्रदेश में कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है, ऐसा इसीलिए भी हो रहा है, क्योंकि वह प्रदेश में एक सत्तारूढ़ पार्टी तो है ही पर पश्चिम बंगाल में चुनाव हारने के बाद उसके सामने सूबे में अगले साल
2022 में होने वाले चुनावी रण में विजय हासिल करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण दिखाई दे रहा है, क्योंकि वर्तमान परिस्थितियां बीजेपी के पक्ष में नहीं दिख रही हैं। लोग कोरोना ही नहीं बल्कि कई अन्य मुद्दों को लेकर बीजेपी से नाराज हैं। यही कारण है कि बीजेपी के अंदर चुनाव को लेकर छटपटाहट तेज हो गई है और जमीनी हकीकत की हर मोर्चे पर जानकारी जुटाई जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो हर जिले का दौरा कर ही रहे हैं, बल्कि राज्य की वास्तविक स्थितियों को जानने के लिए बीजेपी हाईकमान के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक यानि आरएसएस भी फीडबैक जुटाने में जुटा हुआ है। पर इस फीडबैक को लेकर जो सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है, वह यह है कि हाईकमान योगी के इतर यह फीडबैक जुटा रहा है, यानि योगी के राज्य में उन्हें बाईपास कर यह फीडबैक जुटाई जा रही है। यह स्थिति तब है, जब योगी न केवल कोरोना की लड़ाई में आगे हैं बल्कि देश के सबसे सफल मुख्यमंत्री की सूची में भी टॉप पर हैं। ऐसी स्थिति में भी
योगी को अलग कर यह जानकारी जुटाई जा रही है तो इससे यह सवाल भी राजनीतिक हलकों में उठने लगा है कि क्या योगी अब मोदी और शाह की नजर में अखरने लगे हैं ? क्या यह राज्य में नेतृत्व परिवर्तन का संकेत तो नहीं है। जैसा बीजेपी का इतिहास भी रहा है और वह चुनाव से पहले कई राज्यों में इस तरह का प्रयोग भी कर चुकी है। उत्तराखंड ताजा उदाहरण है ।
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यह सवाल इसीलिए भी उठ रहा है, क्योंकि कुछ दिन पहले बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने यूपी का दौरा किया और उन्होंने मंत्रियों से अलग-अलग बातचीत कर प्रदेश की वास्तविक हकीकत के बारे में जानकारी ली। बताया जा रहा है कि उन्होंने इस पूछताछ के बाद एक फीडबैक रिपोर्ट तैयार की है, जिसे वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपने वाले हैं। शायद, इसी के आधार पर पार्टी हाईकमान कोई निर्णय ले। संगठन महामंत्री ने सबसे पहले दोनों उप-मुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य व डा. दिनेश शर्मा से बात की। इसके बाद मंत्री सिद्घार्थनाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा, स्वामी प्रसाद मौर्य, रमापति शास्त्री आदि से भी बातचीत की। बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश द्बिवेदी भी उनसे मिलने पहुंचे, पर वह मीडिया से बचते हुए निकल गए। ऐसा माना जा रहा है कि राष्ट्रीय महामंत्री के सामने उन्होंने हाल ही में अपने भाई की नियुक्ति को लेकर लगे आरोपों पर अपना पक्ष रखा यानि सफाई दी।
बैठक के बाद जो बातें छनकर सामने आईं हैं, उसके मुताबिक राष्ट्रीय महामंत्री के सामने मंत्रियों ने अपनी तो खूब तारीफ की, लेकिन कामकाज में लापरवाही का ठीकरा अधिकारियों के सिर फोड़ दिया। जब मंत्रियों से कार्यकर्ताओं की नाराजगी को लेकर सवाल किए गए तो कई मंत्रियों ने यहां तक भी कहा कि अधिकारी उनकी सुनते ही नहीं, वह कार्यकर्ताओं का काम कहां से करेंगे। इस फीडबैक लेने वाली पूछताछ को इसीलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि बंद कमरे में हुई इस बैठक में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल तक नहीं थे। राष्ट्रीय महामंत्री ने मंत्रियों को एक-एक कर कमरे में बुलाया। उनसे ये सवाल भी किए गए कि सीएम दफ्तर से उन्हें कितना सहयोग मिलता है ? अधिकारी उनकी कितना सुनते हैं। इस पर एक मंत्री ने कहा कि वह अपने विभाग में कोई फैसला लेते हैं तो अधिकारी या तो उसे बदल देते हैं या उस पर अमल ही नहीं करते हैं।
एक मंत्री ने अपने एक पूर्व प्रमुख सचिव के बारे में जमकर गुस्सा निकाला और वह सारी कहानी बता डाली कि किस तरह उस प्रमुख सचिव ने उनके कई फैसलों को बदल दिया। एक अन्य मंत्री ने यहां तक बताया कि वह अपने विभाग में अधिकारियों की तैनाती भी अपने मन से नहीं कर सकते हैं। उन्होंने अधिकारियों पर फाइलें तक लटकाने के आरोप लगाए और यह भी कहा कि विभागीय तबादलों में भी उनकी मंजूरी नहीं ली जाती है। कुल मिलाकर मंत्रियों से जिस तरह फीडबैक मिला है, उससे साफ जाहिर है कि परिस्थितियां पार्टी के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं हैं, नाराजगी का अनुपात इसीलिए भी बढ़ रहा है, क्योंकि हाईकमान से पार्टी के कार्यकर्ता तक खुश नहीं हैं। जब पार्टी का कार्यकर्ता ही खुश नहीं है तो जनता कैसे खुश हो सकती है। जब जनता खुश नहीं रहेगी तो चुनाव कैसे जीता जा सकेगा। इसे पार्टी हाईकमान तो जानता ही है, बल्कि योगी के मंत्री भी जानते हैं, इसीलिए उनकी तरफ से राष्ट्रीय महामंत्री को यही कहा गया कि जब सभी जुटेंगे, तभी जीत मिल सकेगी।
बीजेपी दफ्तर में मंत्रियों से बात करने के बाद राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष सीधे राजेंद्र नगर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कार्यालय यानि भारती भवन पहुंचे। यहां उन्होंने दोनों क्षेत्र प्रचारकों और प्रांत प्रचारक से भी बात की और उनसे सरकार के कामकाज के साथ ही जनता की नाराजगी के बारे में जानकारी हासिल की। अब इंतजार इस बात का है कि क्या इस फीडबैक के बाद सूबे के राजनीतिक हलकों में क्या परिवर्तन देखने को मिल सकता है। अगर, नेतृत्व व संगठन में परिवर्तन किया जाता है तो निश्चित ही योगी के प्रति मोदी और शाह की नाराजगी की बात सामने आना गलत नहीं होगा। इसके बीच आरएसएस का रवैया भी मायने रखेगा, क्योंकि योगी को प्रदेश के सीएम का ताज पहनाने में आरएसएस का हाथ रहा है। इसीलिए यहां आरएसएस का रवैया देखना भी जरूरी होगा। शायद, आरएसएस नरम दिखेगा तो प्रदेश में कोई नेतृत्व परिवर्तन न हो। इन हालातों में भी परिवर्तन होता है तो यह भी मानना ही पड़ेगा कि मोदी और शाह की तरह ही आरएसएस के अंदर भी योगी के प्रति विश्वास कम हुआ है। पर ओवर ऑल स्थिति देखी जाए तो जमीनी स्तर पर काम करने में योगी लगातार मेहनत कर रहे हैं। बिना इसका आकलन किए बीजेपी हाईकमान कोई निर्णय लेता है तो यह उसके लिए ही आत्मघाती साबित होगा।
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