दिग्गजों के बगैर चुनावी समीकरण कैसे साध पाएगी बीएसपी !
- लालजी वर्मा और राम अचल
राजभर को निष्कासित कर मायावती ने किया खुद का नुकसान
- दोनों नेताओं का
पिछड़ावर्ग में है अच्छा जनाधार
बहुजन समाज पार्टी यानि
बसपा सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में धांधली करने के आरोप
में अपने दो दिग्गज नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की है। यानि इन दोनों नेताओं को
उन्होंने पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इनमें विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा
और पूर्व प्रदेा अध्यक्ष व राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर शामिल हैं। लाल जी
वर्मा विधानमंडल दल के नेता थे, इसीलिए उनके निष्कासन के बाद आजमगढ़ के मुबारकपुर से विधायक
शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को विधायक दल का नेता चुना गया है।
यहां आपको बता दें कि ये
दोनों ही नेता काफी प्रभावााली हैं और पिछड़ावर्ग में इनका बड़ा जनाधार माना जाता है
और ये पार्टी के लिए भी नए नहीं थे, बल्कि कांशीराम के जमाने से ही पार्टी से जुड़े
हुए थे। बसपा सुप्रीमों मायावती ने इन दोनों ही नेताओं को तब निष्कासित किया है,
जब अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और बीजेपी और सपा जैसी पार्टियां
लगातार राज्य में अपनी चुनावी जमीन बनाने में जुटे हुए हैं। इसके उलट अगर, मायावती
दिग्गज नेताओं को बाहर कर रही हैं तो यह निश्चित ही आगामी चुनाव में उनके सियासी
प्रभाव को कम करेगा। हालात ये भी बन सकते हैं कि वह चुनाव में सिंगल डिजिट पर सिमटकर
न रह जाएं, क्योंकि जिस तरह बड़े-बड़े दिग्गज या तो स्वयं पार्टी से किनारा कर गए
हैं या फिर मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाला है, उसमें समीकरण इसी तरफ ईाारा कर
रहे हैं। जिस तरह पार्टी कमजोर होती जा रही है, उसमें सवाल यहां चुनावी हार-जीत भर
का भी नहीं है, बल्कि पार्टी के भविष्य का भी है, क्योंकि पार्टी के पास अब सतीश मिश्र के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं बचा है, जिसे पार्टी के सेकेंड लाइन का नेता
कहा जाए।
एक समय था, जब
उत्तर-प्रदेश में कांशीराम के जमाने में एक शेर कहा जाता था-मैं अकेला ही चला था
जानिब-ए-मंजिल, मगर...लोग मिलते गए और कारवां बनता गया, लेकिन मायावती के
परिपेक्ष्य में यह उल्टा हो गया है। यानि लोग निकलते गए और कारवां सिमटता गया। आज
आलम यह है कि पार्टी संस्थापक कांशीराम के मूवमेंट और उसके बाद जुड़े ज्यादातर नेता
अब पार्टी में नहीं हैं। लालजी वर्मा और राम अचल राजभर के निष्कासन के साथ ही बसपा
स्थापना से लेकर संघर्ष से जुड़े ज्यादातर नेता बसपा से बाहर हो चुके हैं। इनमें से
कई नेता तो ऐसे थे, जिनका प्रदेश स्तर पर अच्छा प्रभाव होता था। मायावती के बढ़ते प्रभाव के बाद एक-एक
नेता बाहर हो गए हैं।
इस सूची में बाबू सिह
कुशवाहा से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे दिग्गज भी शामिल हैं। साल 2011 में
एनएचएम घोटाले में नाम आने के बाद बीएसपी सरकार में मंत्री रहे बाबू सिह कुशवाहा
पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो पार्टी ने उन्हें मंत्री पद से हटा दिया था।
इसके अगले साल यानि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो कुशवाहा खुद पार्टी से अलग
हो गए। इसका असर चुनावों में भी दिखा, क्योंकि पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा और
पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी का और भी बुरा
हश्र हुआ, उसे लोकसभा की एक सीट भी हासिल नहीं हो सकी। इसके बाद पार्टी की स्थिति
और भी खस्ता होती चली गई। 2017 तक पार्टी के साथ चल रहे तत्कालीन विधानसभा में
विपक्ष के नेता दिग्गज स्वामी प्रसाद मौर्या ने भी पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी
जॉइन कर ली थी। इसका असर उस साल राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में भी दिखा और
विधानसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या महज 19 तक सिमट कर रह गई।
लालजी वर्मा और राम अचल
राजभर के पार्टी में रहने से पार्टी का दलितों व पिछड़ों में कुछ जनाधार बचा हुआ
था, खासकर, जिस क्षेत्र से ये नेता आते हैं, लेकिन इनके जाने के बाद पार्टी की इस
क्षेत्र में पकड़ निश्चित ही कमजोर पड़ जाएगी। ये दोनों ही नेता मायावती के काफी करीबी
थे। वर्मा अंबेडकरनगर के कटेहरी और राजभर अकबरपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं।
आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लहर के बावजूद ये दोनों ही
नेता अपनी-अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। राजभर 1993 में पहली बार बसपा के
टिकट पर विधायक बने थे, तब से उनकी जीत का सिलसिला जारी रहा। वहीं, वर्मा 1986 में
पहली बार एमएलसी बनाए गए थे। इसके बाद उन्होंने 1991, 1996, 2002, 2007 और 2017 का
विधानसभा का चुनाव भी जीता।
2022 में होने वाले चुनाव
से पहले इन दोनों दिग्गज नेताओं को हटाकर भले ही मायावती ने सख्ती का संदेा दिया
हो, लेकिन उन्होंने अपना बड़ा नुकसान भी किया है, सूबे में 2007 में जब बीएसपी पहली
बार सत्ता में आई थी तो उसके पीछे एक बड़ा कारण दलित, पिछड़ा और ब्राह्मण गठजोड़ था,
क्योंकि पार्टी के पास इन चुनावी समीकरणों को साधने के लिए दिग्गज नेताओं की टीम
थी, लेकिन इस बार मायावती इन समीकरणों को कैसे साध पाएंगी, क्योंकि जिनके भरोसे वह
सूबे में मजबूत जनाधार रखतीं थीं, अब वे सभी विरोधी पार्टियों में अपना प्रभुत्व
जमा चुके हैं। शुरूआत के दिनों से देखें तो राजबहादुर, आरके चौधरी, नसीमुद्दीन
सिद्दीकी, दद्दू प्रसाद, दीनानाथ भाष्कर, सोनेलाल पटेल, रामवीर उपाध्याय, जुगुल
किशोर, ब्रजेश जयवीर सिह, इन्द्रजीत सरोज जैसे नेताओं की लंबी-चौड़ी सूची है। अब इस
सूची में स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाह के अलावा लालजी वर्मा और राम अचल
राजभर का नाम भी शामिल हो गया है।
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