Hindenburg reports : साजिश थी या फिर निवेशकों का बचाने की कोशिश !
हिंडनबर्ग #(Hindenburg Report)# की रिपोर्ट आने के बाद भारतीय बाजार में खलबली मची हुई है, खासकर जिस तरह भारत के दिग्गज कारोबारी गौतम अडानी के शेयर पिछले दिनों में गिरे हैं, उसने अडानी को दुनिया के धनी लोगों की लिस्ट में बहुत नीचे पायदान पर पहुंचा दिया है। इस पूरे प्रकरण को लेकर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं, जहां कई लोग यह मान रहे हैं कि पीएम मोदी की बदौलत अडानी को लाखों करोड़ रुपए का लोन दिया गया, वहीं बहुत सारे लोगों का यह भी मानना है कि एक साजिश के तहत अडानी के कारोबार को प्रभावित करने की कोशिश की गई है। इस पूरे खेल के पीछे बहुत सारी चीजें हो सकती हैं, जिसका असर अडानी के कारोबार पर तो पड़ ही रहा है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
लिहाजा, हमें यह समझने की जरूरत है कि हिंडनबर्ग जैसी रिसर्च कंपनियां का मकसद क्या
होता है। एक तरफ तो माना जाता है कि हिंडनबर्ग जैसी शॉर्ट सेलिंग
कंपनियां अपने रिसर्च से निवेशकों का पैसा डूबने से बचाती हैं जैसा कि उनका दावा
है, या फिर
वो शेयर बाज़ार को नुक़सान पहुंचाकर अपनी जेब भरती हैं ? लिहाजा, बहुत सारे लोगों की राय इन दोनों खांचों में फंसी हुई है। कुछ लोग मानते
हैं कि इस रिपोर्ट के बाद मोदी और अडानी की मिलीभगत का पर्दाफाश हुआ है, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि भारत को पीछे धकलने के तहत इस तरह की रिपोर्ट
को पेश किया गया है, लेकिन इस पूरे प्रकरण में जो भी चीजें
सामने आईं हों, लेकिन यह तो सच है कि इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था
पर पड़ने वाला है, क्योंकि इस प्रकरण को लेकर अभी बहस खत्म
होने वाली नहीं है। हिंडनबर्ग के आलोचक कह रहे हैं कि उसकी रिपोर्ट 'तेज़ी से आगे बढ़ते भारत को
नीचे खींचने की कोशिश' है। आमतौर
पर शेयर के दाम ऊपर जाने पर पैसा बनता है, लेकिन शॉर्ट सेलिंग में दाम
गिरने पर पैसा कमाया जाता है, इसमें किसी ख़ास शेयर में
गिरावट के अनुमान पर दांव लगाया जाता है।
दरअसल, हिंडनबर्ग जैसे एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स कुछ ख़ास कंपनियों
के शेयर की क़ीमत में गिरावट पर दांव लगाते हैं, फिर उनके बारे में रिपोर्ट
छापकर निशाना साधते हैं। जानकार कहते हैं कि वे इस काम के लिए ऐसी कंपनियों
को चुनते हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है
कि उनके शेयरों की क़ीमत वास्तविक मूल्य से बहुत ज़्यादा है, या फिर उनकी नज़र में वो कंपनी
अपने शेयर-धारकों को धोखा दे रही हैं। हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि हिंडनबर्ग प्रतिष्ठित संस्था है
और उनकी रिसर्च को भरोसेमंद माना जाता है, जिसकी वजह से अमेरिका में कई मौक़ों
पर भ्रष्ट कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई है।
विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि हिंडनबर्ग
रिसर्च जैसी ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म के रिपोर्ट जारी करने के दो प्रमुख
कारण होते हैं। पहला यह कि ग़लत काम की कलई खोलकर मुनाफ़ा
कमाना और दूसरा, न्याय और
उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बहुत ही निराशाजनक है कि चंद
लोग शेयरधारकों की क़ीमत पर अमीर हो रहे हैं। कुछ लोगों
ने इसे धोखेबाजी तक करार दिया है। ऐसे विशेषज्ञों के मुताबिक शॉर्ट सेलिंग की रिपोर्टें एक
तरह की खोजी पत्रकारिता है, किंतु
मुनाफ़े की प्रेरणा थोड़ी अलग है। लिहाजा, हिंडनबर्ग
की रिपोर्ट की सराहना की जानी चाहिए। ऐसी रिपोर्टों का दूसरा पहलू यह भी है कि एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर रिपोर्ट
के साथ ही सोशल मीडिया का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कई आम निवेशक एक्टिविस्ट
शॉर्ट सेलिंग फ़र्म्स को पसंद नहीं करते, क्योंकि दाम नीचे गिरने से उनके
निवेश पर बुरा असर पड़ता है। मजे
की बात यह है कि कई
कंपनियां भी उन्हें पसंद नहीं करतीं हैं। बहुत कम लोगों को याद होगा कि साल 2021 में एलन मस्क ने शॉर्ट सेलिंग
को एक घोटाला बताया था। लेकिन, इस पूरे प्रकरण में यह बेहद ही रोचक तथ्य है कि अडानी और एनरॉन दोनों
इन्फ़्रास्ट्रक्चर कंपनियां हैं, जिनके मज़बूत राजनीतिक संबंध
रहे हैं। आपको याद होगा कि वर्ष 2001 में एनरॉन भारी आर्थिक नुक़सान
छिपाने के बाद दीवालिया हो गई थी, उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश और एनरॉन प्रमुख
केन ले के बीच करीबी संबंध थे, हालांकि
अडानी की आर्थिक स्थिति एनरॉन ले जैसी नहीं है, किंतु उन पर एनरॉन
ले की तरह सरकार से करीबी रिश्ता होने के आरोप जरूर लग रहे हैं। दरअसल, मज़बूत और साफ़-सुथरी कंपनियों
को शॉर्ट सेलर रिपोर्टों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। अगर, कोई व्यक्ति माइक्रोसॉफ़्ट, गूगल, फ़ेसबुक जैसी कंपनियों के बारे
में लिखेगा तो लोग उस पर हंसेंगे और स्टॉक पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि ऐसी कंपनियों की बहुत ही
मजबूत साख होती है, उनकी एक अलग ही विश्वसनीयता होती है। लिहाजा,
इस तरह की कई रिपोर्टें भी प्रकाशित हो जाएं तो ऐसी विश्वसनीय
कंपनियों की साख पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा।
हालांकि, इस पूरे प्रकरण के सामने आने के बाद
गौतम अडानी समूह ने हिंडनबर्ग के आरोपों को सिरे से खारिज किया है, लिहाजा अडानी समूह ने उसके 88 में से 62 सवालों का जवाब ही नहीं दिया है।
दरअसल, जब
हिंडनबर्ग की यह रिपोर्ट सामने आई तो बहुत सारे विशेषज्ञों को आश्चर्य भी हुआ, क्योंकि हिंडनबर्ग ने पूर्व में आमतौर पर ऐसी कंपनियों को निशाना
बनाया है, जो बहुत छोटी हों या फिर जिनके
बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी ही उपलब्ध ना हो, किंतु अडानी एक बड़ा भारतीय
कंपनी समूह है, जिसके बारे
में पूरी दुनिया जानती है।
पिछले कुछ
वर्षों में अडानी लगातार सवालों के घेरे में रहे हैं और उनकी कंपनियों पर फ्रॉड के
आरोप लगते रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मामले को लेकर पीएम मोदी को भी
निशाने पर लिया गया और उन पर आरोप लगा कि वह अडानी की कंपनियों को फायदा पहुंचा
रहे हैं, जिसकी वजह से अडानी दुनिया के धनी लेगों की सूची
में लगातार आगे बढ़ते रहे हैं। इन सब परिस्थितियों के बीच आने वाले दिनों की तस्वीर
क्या होगी, इस देखना और समझना काफी महत्वपूर्ण होगा। क्या
अडानी के शेयरों में इसी तरह गिरावट बनी रहेगी या फिर आने वाले दिनों में कोई चमत्कार
होगा।
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