#झारखंड# में सियासी सरगर्मी तेज होने लगी है,
क्योंकि 2024 के पूर्वाध में
लोकसभा चुनाव होने हैं, जबकि 2024 के ही नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों
के मध्येनजर #बीजेपी# खेमे में ज्यादा हलचल दिखाई दे रही है, इसका कारण यह है कि
हाल के दिनों में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा स्वयं केन्द्रीय
गृहमंत्री अमित शाह भी यहां रैलियां कर चुके हैं।

बीजेपी के लिए आदीवासी खेमे को
साधना इसीलिए चुनौतीपूर्ण लग रहा है,
क्योंकि हेमंत सोरेन ने झारखंड में #1932 का खतियान बिल# को
विधानसभा में पारित कराकर बहुत बड़ा राजनीतिक दांव खेला। इसका बीजेपी जानबूझकर
बहुत अधिक विरोध भी नहीं कर पाई, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है, बल्कि हेमंत सोरेन
सरकार ने इस बिल को पास कराने के लिए केन्द्र सरकार और राज्यपाल के पास भेजा, लेकिन राज्यपाल ने
इस बिल पर संविधान के कुछ प्रावधानों का हवाला देकर हस्ताक्षर करने से साफ मना कर
दिया और बिल सरकार को वापस लौटा दिया। ऐसी परिस्थिति में सियासी तौर पर बीजेपी
घिरती हुई नजर आ रही है और चुनावों में हेमंत सोरेन और उनका गठबंधन इसी को मुद्दा
बनाकर बीजेपी को घेरने की कोशिश करेगा। मजे की बात यह है कि बीजेपी को इसकी काट
ढूढ़ना मुश्किल लग रहा है। अगर, उसे झारखंड में हेमंत सोरेन और उनके गठबंधन को अगले साल हराना
है तो इसकी काट ढूढ़ना बहुत ही आवश्यक होगा।
लोकसभा की बात करें तो बिहार से अलग हुए इस राज्य में लोकसभा
की 14 सीटें हैं। यहां राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के
अलावा स्थानीय पार्टियों का बोलबाला अधिक है। यही कारण भी है कि झारखंड मुक्ति
मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। झारखंड मुक्ति
मोर्चा के अलावा भी यहां अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जिनमें झारखंड विकास
मोर्चा, ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन पार्टी भी शामिल हैं। इनके अलावा
बीजेपी और कांग्रेस को छोड़कर छोटी-बड़ी आधा दर्जन से अधिक पार्टियां चुनाव में
हिस्सा लेती हैं, जिनमें जेडीयू,
राजद,
टीएमसी,
एनसीपी,
सीपीआई,
सीपीएम जैसी बड़ी पार्टियां शामिल हैं, जो खासकर लोकसभा
चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारती हैं। राज्य में विधानसभा की 82 सीटें हैं, जिनमें एक मनोनीत
सदस्य होता है। पिछले चुनावों में झामुमो 30 सीट लेकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि कांग्रेस को 18 सीटें मिली थीं और
सीपीआई (एमएल) एक, राजद एक सीट जीतने में कायमाब हुई थी। ये सभी पार्टियां सरकार
में शामिल हैं। विपक्ष के पास 30 सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी के पास 26,
एजेएसयू के पास दो और दो निर्दलीय सीट
हैं। इससे पहले राज्य में रघुवर दास के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार थी, लेकिन गठबंधन ने हेमंत
सोरेन के चेहरे पर चुनाव लड़ा तो गठबंधन राज्य में सरकार बनाने में कामयाब रही।
राज्य में 1932 के खातियान का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण रहा। बीजेपी ने इसे
लागू नहीं किया था, लेकिन हेमंत सोरेन ने अपने घोषणा-पत्र के अनुसार इसे विधानसभा
में पारित कराकर लागू करने का साहस दिखाया,
लेकिन इस बिल को राज्यपाल और केन्द्र
सरकार की तरफ से हरी झंडी नहीं मिल पाई,
इसीलिए लोकसभा के साथ ही विधानसभा
चुनावों में यह बड़ा मुद्दा बनेगा। इस मुद्दे पर चुनावी मंचों से बीजेपी को जवाब
देना निश्चित रूप से भारी पड़ेगा। यही वजह है कि बीजेपी हाईकमान अभी से राज्य में
सियासी विकल्पों को लेकर सक्रिय हो गया है,
लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि
आखिरकार क्या बीजेपी #1932 खातियान# मसले का कोई ढूढ़ पाएगी या नहीं, यह सबसे बड़ा सवाल
है।
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