बांग्लादेश की अस्थिरता और भारत की भूमिका
पिछले कुछ वक्त से bangladesh में शेख़ हसीना सरकार के लिए सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा था। नौकरी में आरक्षण को लेकर जिस तरह वहां प्रदर्शन चल रहा था और हालत बेकाबू हो रहे थे, उसमें आखिरकार प्रधानमंत्री शेख हसीना को न केवल इस्तीफा देना पड़ा, बल्कि देश भी छोड़ना पड़ा। बांग्लादेश की सेना ने देश में अंतरिम सरकार का गठन करने की घोषणा कर दी है और उसके बाद देश में लोकतंत्र बहाली के लिए चुनाव कराए जाने की बात कही जा रही है।
एक दौर था, जब bangladesh की सेना का वहां प्रभुत्व था, लेकिन सेना दशकों से सत्ता में नहीं रही है। अब प्रदर्शन के बाद पैदा हुए ऐसे हालात सेना के सामने आ गए कि उसे सत्ता पाने हाथ में लेनी पड़ी है, हालांकि, सेना देश में स्थिरता की बात कर रही है, लेकिन सवाल यह जरूर उठा कि आख़िर, सेना का इस तरह से सामने आना क्या इशारा किया है? क्या उसे खुद सत्ता में आना था ? लेकिन जिस तरह वहां अंतरिम सरकार बनाने के बाद चुनाव कराए जाने की बात की जा रही है, उससे नहीं लगता है कि बांग्लादेश की सेना वहां सत्ता पर काबिज होना चाहती है। वर्तमान परिस्थितियों में सेना इसलिए सामने आई, क्योंकि सिर्फ़ वही है, जो हालात को नियंत्रण में ला सकती थी। आर्मी चीफ़ ने भी कहा कि वो कोशिश कर रहे हैं कि स्थिरता लाई जाए, इसके बाद चुनाव कराए जाएंगे। इससे साफ संकेत मिलता है कि सेना भी वहां लोकतंत्र की बहाली चाहती है। श्रीलंका में भी बिलकुल ऐसा ही हुआ था। प्रदर्शनकारियों ने वहां पर भी राष्ट्रपति आवास पर नियंत्रण हासिल कर लिया था, लेकिन अब वहां हालात सामान्य हैं।
पड़ोसी देश होने के नाते bangladesh के हालातों का भारत पर असर पड़ना जायज है, इससे निश्चित ही पाकिस्तान और चीन जैसे विरोधी देश खुश होंगे, क्योंकि ये दोनों देश भारत को डिस्टर्ब करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं। बांग्लादेश में आज जो हालात हैं, उसके लिए ये दोनों ही देश जिम्मेदार भी हैं। चीन तो श्रीलंका और नेपाल में भी इस तरह के हालात पैदा कर चुका है। मालदीप भी चीन की शह पर भारत को आंख दिखाने का प्रयास कर चुका है, लेकिन उसे अब चीन की हकीकत पता लग चुकी है, इसीलिए फिर उसकी निर्भरता भारत की तरफ बढ़ गई है।
भारत हमेशा चाहता है कि bangladesh समेत उसके पड़ोसी देश स्थिर हों और वहां पर लोकतंत्र बना रहे, इसीलिए भारत की कोशिश बांग्लादेश में भी स्थिरता लाने की रहेगी। सियासत से इतर भारत के बांग्लादेश के साथ कारोबारी रिश्ते बेहद मजबूत हैं। दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। भारत ने पिछले एक दशक में बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, बंदरगाहों के निर्माण के लिए हज़ारों करोड़ रुपये दिए हैं। ऐसे में, बांग्लादेश में मची इस हलचल पर भारत पूरी नज़र बनाए हुए है।
अगर, बांग्लादेश में नया सैन्य नेतृत्व स्थिरता बनाए रखने में असमर्थ रहता है, तो इसका असर सीमा पार आतंकवाद, अवैध प्रवास और व्यापारिक गतिविधियों पर पड़ सकता है। भारत को अपनी सुरक्षा नीतियों को पुनः संशोधित करना पड़ सकता है और सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा को बढ़ाना पड़ सकता है। बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंध भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता व्यापारिक गतिविधियों पर सीधा प्रभाव डाल सकती है। दोनों देशों के बीच वस्त्र और वस्त्र-निर्माण जैसे प्रमुख उद्योगों में सहयोग होता है। बांग्लादेश में राजनीतिक संकट के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे भारतीय कंपनियों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, बांग्लादेश में आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न मानवाधिकार संकट और संघर्ष भारत में आर्थिक प्रवाह और निवेश के जोखिम को भी बढ़ा सकता है।
इसका भी पूरा अंदेशा है कि बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद सुरक्षा हालात में उथल-पुथल हो सकती है, जिससे भारत की सीमाओं के पास सुरक्षा स्थितियां और भी जटिल हो सकती हैं। सीमा पर उथल-पुथल और अस्थिरता से सीमा पार आतंकवाद और तस्करी की घटनाएं बढ़ सकती हैं, जिसे नियंत्रित करने के लिए भारत को अतिरिक्त उपाय अपनाने की आवश्यकता होगी। भारत की सुरक्षा बलों को बांग्लादेश की सीमा पर अतिरिक्त निगरानी और जांच को प्राथमिकता देनी होगी।
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और तख्तापलट से उत्पन्न मानवाधिकार संकट भी भारत पर असर डाल सकता है। अस्थिरता के कारण बांग्लादेश से शरणार्थियों का प्रवाह बढ़ सकता है, जो भारत के पूर्वी राज्यों में सामाजिक और आर्थिक दबाव पैदा कर सकता है। शरणार्थी प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए भारत को प्रभावी उपाय अपनाने होंगे ताकि स्थानीय संसाधनों और समाज पर अतिरिक्त दबाव को कम किया जा सके।
ऐसे हालातों में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के कदम काफी महत्वपूर्ण होंगे। भारत को इस स्थिति में अपना कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना होगा। अंतर्राष्ट्रीय दबाव और समर्थन के आधार पर, भारत को बांग्लादेश के नए नेतृत्व के साथ संपर्क बनाए रखने और उसकी स्थिरता में सहयोग करने का प्रयास करना होगा। भारत को एक सधी हुई कूटनीति अपनानी होगी, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके और बांग्लादेश के राजनीतिक संकट के प्रभाव को कम किया जा सके, लेकिन इन सबसे पहले भारत को इस अस्थिरता के सभी संभावित प्रभावों का बारीकी से आकलन करना होगा और अपनी नीतियों को उसी अनुसार संशोधित करना होगा। भारत को सुरक्षा, आर्थिक और कूटनीतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर, क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी, क्योंकि बांग्लादेश के भविष्य की दिशा तय करने में भारत की ही भूमिका निर्णायक होगी, लिहाजा इस प्रकार, भारत को इस चुनौती को धैर्यपूर्वक और सुसंगठित तरीके से संभालना होगा।
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